________________ 4 / दर्शन और न्याय : 67 इस तरह हम देखते हैं कि विश्वकी प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक सिद्ध होती है और वह अनन्तधर्मात्मक वस्तु परस्परविरोधी धर्मद्वयके अनन्त विकल्पोंके आधारपर विविध प्रकारसे अनेकान्तात्मक सिद्ध होती है। मैंने इस लेखमें वस्तुकी अनन्तधर्मात्मकता और अनेकात्मकतापर यथाशक्ति प्रकाश डाला है। आशा है इससे सर्वसाधारणको जैन तत्वज्ञानको समझनेकी दिशा प्राप्त होगी। वास्तवमें आज जैन तत्त्वज्ञानका प्रत्येक अंग विवादग्रस्त बन गया है / इसमें मैं सारा दोष विद्वानोंका मानता हूँ। हमेशा विद्वान ही तत्त्वज्ञानके संरक्षक रहे हैं / आज भी विद्वानोंको ऐसा ही प्रयास करना चाहिए / यद्यपि आजका प्रत्येक विद्वान कहता है कि मेरा प्रयास तत्त्वसंरक्षणके लिये ही है / परन्तु यह प्रयास कैसा, जिसमें आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, उमास्वाति, पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्द आदि महर्षियोंके वचनोंमें भी परस्पर विरोध दीखने लग जाय / प्रत्येक विद्वानको इस प्रश्न पर गहराईके साथ ही दृष्टिपात करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org