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________________ 268 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड विश्व में विद्यमान सभी पदार्थ कम-से-कम नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव से चतुष्पर्यायात्मक होते हैं / ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जो केवल नाममय हो या केवल स्थापनामय हो, अथवा द्रव्यताश्लिष्ट हो अथवा भावात्मक हो। अतएव ये चारों एक ही वस्तु के अंश माने जाते हैं। यद्यपि वस्तु विन्यास के जितने क्रम हैं. उतने ही निक्षेप हैं और ये निक्षेप प्रत्येक वस्तु पर घटित किये जा सकते हैं / ऐसा नहीं कि किसी पर घटित हों और किसी पर नहीं। यह बात जुदी है कि इनकी संख्या कहीं अधिक और कहीं न्यून हो सकती हैं, तो भी नाम आदि चार निक्षेप सर्वत्र घटित होते हैं / क्योंकि किसी वस्तु की संज्ञा नाम निक्षेप है। उसकी आकृति स्थापना निक्षेप, उस वस्तु का मूल द्रव्य या भूत-भविष्यात् पर्याय द्रव्य निक्षेप और उसकी वर्तमान पर्याय भाव निक्षेप है। निक्षेप विवेचन के कथन का सारांश यह है कि हमारा समस्त व्यवहार पर्यायाश्रित है और पदार्थ की अभिव्यक्ति का साधन भाषा है। अत: भाषा को नियतार्थक और पदार्थ को नियत शाब्दिक बनाने के लिए निक्षेप पद्धति का सहारा लिया जाता है / पदार्थ और शब्द को सापेक्ष बनाने के लिए ही निक्षेप पद्धति का विकास हुआ है / निक्षेप पद्धति का सर्वांगीण विश्लेषण सम्भव हुआ तो यथासमय करने का प्रयास किया जायेगा। सन्दर्भ-स्थल : 1 जुत्ती सुजुत्तमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु ठवणं / बज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये ।।-बृहद् नयचक्र 266 2 वस्तु नामादिषु क्षिपतीति निक्षेपः / -नयचक्र 48 3 संशयविपर्यये अनध्यवसाये वा स्थित स्तेभ्योऽपसार्य निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः।-धवला 461,3,11226 4 णिच्छए णिण्णए खिवदि त्ति णिक्खेओ ।-धवला पु० 1, पृ० 10 5 नामस्थापनाद्रव्यमावतस्तन्न्यासः ।-तत्त्वार्थ सूत्र 115 6 तत्त्वार्थ राजवार्तिक 135 की व्याख्या 7 धवला १०१,१,१शगा० 1017 8 अप्रस्तुतार्थापाकरणात् प्रस्तुतार्थव्याकरणाच्च निक्षेपः फलवान् / लघीयस्त्रय स्वो० वृ०७२ & आवश्यकादिशद्वानामर्थो निरूपणीयः स च निक्षेपपूर्वक एव स्पष्टतया निरूपितोभवति ।-अनुयोगद्वार वृत्ति अवगयणिवारणळं पयदस्स परूवणा णिमित्तं च / संसयविणासणटें तच्चत्थवधारणंठें च ।।-धवला टीका (सत्प्ररूपणाः) 11 प्रकरणादिवशेनाप्रतिपत्त्यादि व्यवच्छेदकः, यथास्थान विनियोगात् शब्दार्थरचनाविशेष: निक्षेपः / -जैन तर्क भाषा, तृतीय परिच्छेद 12 लघीयस्त्रय, पृ० 16 13 निक्षेपोऽनंतकल्पश्च चतुर्विधः प्रस्तुत-व्याक्रियार्थः।-सिद्धिविनिश्चय निक्षेपपद्धति 14 नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः।-तत्वार्थसूत्र 115 15 नत्वनन्ता पदार्थानां निक्षेपो वाच्यः इत्यसत् / नामादिष्वेव तस्यान्तर्भावात्संक्षेपरूपः / -श्लोकवातिक 115 श्लो०७१।२८२ 16 वग्गणणिक्खेवेत्ति छविहे वग्गण-णिक्खेवे-णामवग्गणा / ठवणवग्गणा, दव्ववग्गणा, खेत्तवग्गणा कालवग्गणा, भाववग्गणा / / -खं०१४॥५, 6 / सूत्र 71351 17 संज्ञाकर्म नाम / -सर्वार्थसिद्धि 115 // 17 // 4 18 सोऽयमित्यभिसम्बन्धत्वेन अन्यस्य व्यवस्थापनामात्र स्थापना / -राजवार्तिक 25 सूत्र की व्याख्या 16 (क) सद्भावेतरभदेन द्विधा तत्त्वाधिरोपतः / -श्लोकवार्तिक 21115 श्लोक 54 / 263 (ख) सायार इयर ठवणा ।-बृ० नयचक्क 263 20 षट्खंडागम आदि दिगम्बर ग्रन्थों में तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप के इस प्रकार भेद-प्रभेद बतलाये हैं तव्य तिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप के दो भेद-कर्म, नौकर्म / नो कर्म तद्व्यतिरिक्त के दो भेद-लौकिक लोकोत्तर। वर्तमान तत्पर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भावः / -सर्वार्थसिद्धि 115 22 आगम सव्व निसेहे नो सद्दो अहव देस-पडिसेहे / -'नो' शब्द के दो अर्थ होते हैं-सर्वनिषेध और देशनिषेध / 23 कथंचित् संज्ञा स्वालक्षण्यादि भेदात् तद् भेद सिद्धः।-राजवातिक १३शटीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210972
Book TitleJain Darshan ki Nikshep Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Naya
File Size882 KB
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