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डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी एवं डॉ० कमलगिरि
सूरिकृत शारदास्तवन ( लगभग १४वीं शती ई०) जैसे तान्त्रिक रचनाओं में शान्तिक, पौष्टिक, स्तम्भन, मारण, उच्चाटन जैसे तान्त्रिक साधनाओं में सरस्वती साधना के प्रचुर उल्लेख हैं । तांत्रिक साधनाओं के अन्तर्गत उनके सकलीकरण, अर्चन, यंत्रविधि, पीठ स्थापना, सौभाग्यरक्षा एवं वश्य मंत्रों के भी पर्याप्त उल्लेख हैं । १०वी-११वीं शती ई० में सरस्वती के भयंकर स्वरूपों वाले साधना मंत्र भी लिखे गए । भारतीकल्प, अर्हदासकृत सरस्वतीकल्प, शुभचन्द्रकृत सारस्वतमंत्रपूजा (लगभग १०वी शती ई०) एवं एकसंधिकृत जिन संहिता में त्रिनेत्र एवं अर्द्धचन्द्र से युक्त जटाधारी सरस्वती को भयंकर स्वरूपा और हुंकारनाद करने वाली बताया गया है ।" उपर्युक्त विशेषताएँ देवी की शिव से निकटता भी दर्शाती हैं । बप्पभट्टि ने सरस्वतीकल्प में देवी का आह्वान भी गौरी नाम से हीं किया है। उल्लेख्य है कि स्कन्दपुराण के सूतसंहिता (लगभग १३वीं शती ई०) में भी जटा से शोभित सरस्वती त्रिनेत्र तथा अर्द्धचन्द्र युक्त निरूपित हैं । सरस्वती के करों में अंकुश और पाश का उल्लेख भी उनके शक्ति स्वरूप को ये आयुध सम्भवतः सरस्वती द्वारा अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करने तथा नियंत्रण के भाव को व्यक्त करते हैं । जैन ग्रन्थों में सरस्वती को काली, कपालिनी, कौली, विज्ञा, त्रिलोचना, रौद्री खड्गिनी, कामरूपिणी, नित्या, त्रिपुरसुन्दरी, चन्द्रशेखरी, शूलिनी, चामुण्डा, हुंकार एवं भैरवी जैसे नामों से भी सम्बोधित किया गया है जो उनके तांत्रिक स्वरूप को और भी स्पष्ट करती हैं । " विद्यानुशासन ( लगभग १५वीं शती ई०) में भयंकर दर्शना त्रिनेत्र वागीश्वरी को तीक्ष्ण और लम्बे दांतों तथा बाहर निकली हुई जिह्वा वाली बताया गया है । वर्द्धमानसूरि (लगभग १४१२ ई०) ने आचारदिनकर में सरस्वती की गणना ६४ योगिनियों में भी की है।
कुछ जैन ग्रन्थों में ही प्रकट करता है | उस पर देवी के पुर्ण
सरस्वतीकल्प, भारतीकल्प एवं सरस्वतीयंत्रपूजा में सरस्वती को साधना के लिए विभिन्न चामत्कारिक यंत्रों के निर्माण से सम्बन्धित विस्तृत उल्लेख भी मिलते हैं । " सरस्वती यंत्रों में
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अभयज्ञानमुद्राक्षमालापुस्तकधारिणी ।
त्रिनेत्रा पातु मां वाणी जटाबालेन्दुमण्डिता ॥ - भारतीकल्प श्लोक २
सारस्वतयंत्रपूजा (यू०पी० शाह के लेख आइकनोग्राफी ऑव सरस्वती के पृ० २०१, पाद टिप्पणी २९, पृ० २११, पाद टिप्पणी ७१ से उद्धृत |
सरस्वती-कल्प -- श्लोक ६, भैरवपद्मावती कल्प के १२वें परिशिष्ट के रूप में ।
टी० ए० गोपीनाथ राव, एलिमेण्ट्स ऑव हिन्दू आइकनोग्राफी, खण्ड १, भाग २, दिल्ली, १९७१ (पु० मु० ), पृ० ३७८
अंकुश और पाश क्रमशः इन्द्र और वरुण ( और यम) के मुख्य आयुध रहे हैं जो तांत्रिक देवों के भी प्रमुख आयुध हैं । सरस्वती के हाथों में इन आयुधों का दिखाया जाना भी उनके शक्ति पक्ष को प्रकट करता है ।
श्रीसरस्वतीस्तोत्र, जैन स्तोत्र सन्दोह, खण्ड १, १०७, पृ० ३४५-४६.
यू० पी० शाह के लेख - 'सुपर नेचुरल बीइंग्स इन दि जैन तंत्राज', आचार्य ध्रुव स्मृति ग्रन्थ, भाग ३, अहमदाबाद, १९४६, पृ० ७५.
आचारदिनकर, भाग २, प्रतिष्ठाविधि ( भगवती मण्डल), बम्बई, १९२३, पृ० २०७.
यू० पी० शाह, 'आइकनोग्राफी ऑव सरस्वती', पृ० २११-१२.
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