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________________ जैन साहित्य वे महान अविष्कर्ता थे । उन्होंने अपनी बड़ी पुत्री ब्राह्मी को जो लिपि सिखाई वह भारत की प्राचीनतम लिपि ब्राह्मी के नाम से प्रसिद्ध हुई और छोटी पुत्री सुन्दरी को अंक आदि सिखाये, जिससे गणित का विकास हआ । पूरुषों की 72 तथा स्त्रियों की 64 कलाएँ या विद्याएँ भगवान ऋषभदेव की ही विशिष्ट देन हैं। भगवान ऋषभदेव के बड़े पुत्र भरत 6 खण्डों को विजय कर चक्रवर्ती सम्राट बने, और उन्हीं के नाम से इस देश का नाम भारत प्रसिद्ध हुआ। व्यावहारिक शिक्षा देने के बाद भगवान ऋषभदेव ने पिछली आयु में सन्यास ग्रहण किया और तपस्या तथा ध्यान आदि । साधना से आत्मिक ज्ञान प्राप्त किया । उस परिपूर्ण और विशिष्ट ज्ञान का नाम केवल 'ज्ञान' जैन धर्म में प्रसिद्ध है। इसके बाद उन्होंने आध्यात्मिकअगरचन्द नाहटा साधना का मार्ग प्रवर्तित किया, आत्मिक उन्नति और मोक्ष का मार्ग सबको बतलाया इसीलिए भगवान ऋषभदेव का जैन साहित्य में सर्वाधिक जैन धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म है । उसके महत्व है यद्यपि उनको हए असंख्यात वर्ष हो गये, प्रवर्तक और प्रचारक 24 तीर्थ कर सभी इम भारत- इसलिए उनकी वाणी या उपदेश तो हमें प्राप्त नहीं हैं, भमि में ही जन्मे, साधना करके विशिष्ट ज्ञान प्राप्त पर उनकी परम्परा में 23 तीर्थकर और हए । उन्होंने किया और जनता को धर्मोपदेश देकर भारत में ही भी साधना द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त किया और सभी निर्वाण को प्राप्त हुए। जैन परम्परा के अनुसार भग- केवलियों का ज्ञान एक जैसा ही होता है। इसलिये वान ऋषभदेव प्रथम तीर्थ कर थे। उन्होंने युगलिक ऋषभदेव की ज्ञान की परम्परा अंतिम तीर्थ कर धर्म का निवारण करके असी शास्त्र की मसी भगवान महावीर की वाणी और उपदेश के रूप में लिख कृषि, तथा विद्याओं और कलाओं की आज भी हमें प्राप्त है। समस्त जैन साहित्य का मूल शिक्षा देकर भारतीय संस्कृति को एक नया रूप दिया। आधार वही केवल ज्ञानी-तीर्थ करों की वाणी ही है। २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210928
Book TitleJain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size693 KB
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