________________ जैन सप्तभङ्गी : आधुनिक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में 29 इस प्रकार तीन मूलभूत रंगों के संयोग के चार ही मिश्रित रंग बनते हैं। इन मिश्रित रंगों का अस्तित्व अपने मूल रंगों के अस्तित्व से भिन्न है। इसलिए इन्हें मूलरंगों के नाम से अभिहित नहीं किया जा सकता है / ठीक यही बात स्याद्वाद के संदर्भ में भी है / यद्यपि सप्तभङ्गी के उत्तर के चार भङ्ग पूर्व के तीन मूलभूत भङ्गों के संयोग मात्र ही हैं, किन्तु वे सभी उक्त तीनों भङ्गों से भिन्न हैं / इसलिए उनके अलग-अलग मूल्य हैं। इस प्रकार सप्तभङ्गी के सातों भङ्ग अलग-अलग मूल्य प्रदान करते हैं / इसलिए सप्तभङ्गी सप्तमूल्यात्मक है, ऐसा मानना चाहिए। ---दर्शन विभाग, एस० सिन्हा कालेज, औरंगाबाद (बिहार ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org