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साथ अभिद्रोह न करना ही अहिंसा है। पातंजल प्रकार या जगत के लिए किसी प्राणी का अधिक योग के भाष्य में इस प्रकार अहिंसा की समुचित अथवा कम महत्वपूर्ण होना किसी की प्राण-हानि व्याख्या उपलब्ध होती है। वर्तमान शताब्दी में को अहिंसा नहीं बना सकता । प्राणिमात्र के प्रति महात्मा गांधी अहिंसा के अनन्य पोषक हुए हैं। समता का भाव, सभी के प्रति हितैषिता एवं गांधीजी ने इस युग में अहिंसा के नैतिक सिद्धान्त बन्धुत्व का भाव, सभी के साथ सह अस्तित्व की की अत्यन्त सशक्त पुनर्स्थापना की है। यही नहीं, स्वीकृति ही किसी को अहिंसक बना सकती है। भौतिकता के इस युग में अहिंसा के सफल व्याव- इस आधार पर करणीय और अकरणीय कर्मों में हारिक प्रयोग का श्रेय भी उन्हें ही प्राप्त है । बापू भेद करना और केवल करणीय को अपनाना ने अहिंसा को अपने जीवन में उतारा और पग-पग अहिंसाव्रती का अनिवार्य कर्तव्य है। यह एक पर उसका पालन किया। एक स्थल पर अहिंसा प्रकार का संयम है, जिसे भगवान महावीर ने 'पूर्ण के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा है- अहिंसा' की संज्ञा दी है"अहिंसा के माने सूक्ष्म जन्तुओं से लेकर मनुष्य
'अहिंसा निउणा दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो' तक सभी जीवों के प्रति समभाव है।" गांधींवाणी
अहिंसा का यह पुनीत भाव मानव को विश्वमें यह विवेचन और भी स्पष्ट रूप से उद्घाटित
बन्धुत्व एवं जीव-मैत्री के महान गुणों से सम्पन्न हुआ है । वे लिखते हैं
कर देता है । इस सन्दर्भ में यजुर्वेद का निम्न साक्ष्य "पूर्ण अहिंसा सम्पूर्ण जीवधारियों के प्रति भी उल्लेखनीय हैदुर्भावना का सम्पूर्ण अभाव है । इसलिए वह मानवेतर प्राणियों, यहाँ तक कि विषधर कीड़ों और
'विश्वस्याहं मित्रस्य चक्षुषा पश्यामि' हिंसक जानवरों का भी आलिंगन करती है।" अर्थात्-मैं समूचे विश्व को मित्र की दृष्टि से कर ___ अहिंसा के सभी तत्त्ववेत्ताओं ने प्राणिमात्र को देख। सभी शास्त्रों में अहिंसा को मानवता का समान माना है। किसी भी आधार पर अमुक मूल स्वीकारा गया है और सुखी जगत की कल्पना प्राणी को किसी अन्य की अपेक्षा छोटा अथवा बड़ा को क्रियान्वित करने का आधार माना गया है। नहीं कहा जा सकता, महत्त्वपूर्ण अथवा उपेक्षणीय अहिंसा व्यक्ति द्वारा स्व और परहित की सिद्धि नहीं कहा जा सकता । सूक्ष्म जीवों की प्राणी-हानि का महान उपाय है। जैनधर्म में तो इस अत्युच्चाको भी कभी अहिंसा या क्षम्य नहीं समझा जा दर्श का मूर्तिमन्त स्वरूप हो दीख पड़ता है । आचासकता। इस दृष्टि से हाथी भी एक प्राणी है और रांग सूत्र में उल्लेख है कि 'सब प्राणी, सब भूत,
चींटी भी एक प्राणी है। दोनों समान महत्वशाली सब जीव को न मारना चाहिए, न अन्य व्यक्ति १ हैं। दोनों में जो आत्मा है वह एक-सी है-दैहिक द्वारा मरवाना चाहिए, न उन्हें परिताप देना
आकार के विशाल अथवा लघु होने से आत्मा के चाहिए और न उन पर प्राणापहर उपद्रव करना स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आता । समस्त प्राणियों चाहिए।' वस्तुतः प्रस्तुत उल्लेख को अहिंसा से के रक्षण का विराट भाव ही अहिंसा का मूलाधार जोड़ा नहीं गया है, किन्तु व्यापक दृष्टि से इसे है। ध्यातव्य है कि सूक्ष्म जीवों की हानि में हिंसा अहिंसा का स्वरूप अवश्य स्वीकार किया जा सकता की न्यूनता और बड़े जीवों की हानि में हिंसा की है। इसी प्रकार सूत्रकृतांग में अहिंसा का एक अधिकता रहती हो-ऐसा भी नहीं है। हिंसा तो स्पष्ट चित्र इस प्रकार उभर उठा हैहिंसा ही है । आत्मा-आत्मा में ऐक्य और अभेद सम्बेहि अणजुतीहि मतिम पडलेहिया । 1 की स्थिति रहती है । अतः प्राणी के दैहिक आकार सब्वे अक्कंतदुक्खा य अंतो सव्वे अहिंसया ।
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कुभुम अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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