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________________ द्वारा जो कुछ भी कहता है, वह कवि की अपनी ही मौलिक कल्पना है। इस प्रकार का अद्वितीय, अनुपम, दुर्लभ व आशातीत काल्पनिक वर्णन न तो किसी अन्य जैन और न ही किसी जैनेतर साहित्य में प्राप्त होता है। जैन संस्कृत महाकाव्यों में युद्धों के वर्णन में भी वीर रस अधिकता से प्राप्त होता है । पद्मपुराण में सरल भाषा के प्रयोग के बावजूद यह वर्णन कि किस प्रकार एक योद्धा दूसरे योद्धा को प्रेरित कर रहा है, बहुत ही आकर्षक, हृदयग्राही और प्रभावशाली है।' मध्यम पुरुष, लोट् लकार का प्रयोग वर्णन-शोभा को बढ़ाता है । छिन्धि, भिन्धि, क्षिप, उत्तिष्ठ, तिष्ठ, दारय, धारय, चूर्णय, नाशय, सहस्व, दत्तस्व उच्छ्रय कल्पय में 'अनुप्रास' भाषा को संगीतमय बनाकर श्रुतिमय भी बना देता है। लेकिन ऐसा नहीं कि यह वीर रस के अनुचित है। क्योंकि ओज गुण उसी प्रभावशाली ढंग से विद्यमान है। जिनसेनाचार्य ने जयकुमार की दुर्लंघ्य युद्ध-शक्ति को बहुत यथार्थ व सजीव उपमा द्वारा चित्रित किया है। तिरोहित सर्प, निस्संदेह छिपे हुए शत्रु सैनिकों की तरफ संकेत करता है। चन्द्रप्रभचरित के रचियता वीरनन्दि का राजा पद्मनाभ और राजा पृथ्वीपाल के युद्ध का चित्रण एक साथ चलन:, वलन:, स्थान:, वल्गनैः और वञ्चन: के प्रयोग से और भी सुन्दर बन पड़ा है। ___ मल्लिनाथचरित में विनयचन्द्रसूरि द्वारा प्रस्तुत युद्ध-वर्णन संक्षिप्त होते हुए भी बहुत प्रभावशाली है । कवि ने अल्प शब्दों में ही युद्ध की समस्त बातों का वर्णन कर 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ किया है। यहां दन्तादन्ति, खड्गाखड्गि तथा तुण्डातुण्डि का प्रयोग दर्शनीय है। कवि बालचन्द्रसूरि ने वसन्तविलास महाकाव्य में राजा शंख और वस्तुपाल मन्त्री के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन इतने प्रभावशाली ढंग से किया है कि केवल पढ़ने मात्र से युद्ध-क्षेत्र का समस्त दृश्य हमारी आंखों के सामने ज्यों का त्यों घूम जाता है । लम्बे-लम्बे समासों, श्रुतिकटु, महाप्राण और संयुक्त शब्दों तथा ओज गुण की उपस्थिति वर्णन की शोभा को चौगुना कर देती है। इन महाकाव्यों में सेना के प्रस्थान के वर्णन में भी वीररस प्राप्त होता है। धनञ्जय ने रावण/ जरासन्ध की सेना का राम कृष्ण की सेना के प्रति प्रयाण का बहुत ही सुन्दर चित्रण अपनी अद्भुत काव्य-प्रतिभा से किया है। ___इसके विपरीत गुणभद्राचार्य ने राम की सेना का लंका के प्रति प्रयाण का वर्णन विस्तृत रूप से किया है। इसके प्रत्युत्तर में रावण के सैनिक भी उतने ही शौर्य और उत्साह से आगे बढ़े। जैसा कि पहले भी निर्देश किया जा चुका है कि वीर रस के वर्णन में कवि वीरनन्दि ने अपनी अद्भुत कल्पना शक्ति और प्रतिभा का प्रकाशन किया है। इसी प्रकार का एक वर्णन राजा पद्मनाभ के सैनिकों के विषय में दिया गया है जब उन्हें पता चलता है कि उन्हें पुनः युद्ध के लिए प्रस्थान करना है ।। इसी प्रकार बालचन्द्रसूरि द्वारा अपने वसन्तविलास महाकाव्य में विराधबल की सेना के पराक्रम तथा उत्साह का चित्रण बखूबी १. गहाण प्रहरागच्छ जहि व्यापादयोद्गिरः । छिन्धि भिन्धि क्षिपोत्तिष्ठ तिष्ठ दारय धारय ।। वधान स्फोटयाकर्ष मुञ्च चूर्णय नाशय । सहस्व दत्स्व निःसर्प सन्धत्स्वोच्छय कल्पय ।। पद्मपुराण, ६२/४०-४१ २. तदा रणांगणे वर्षन् शरधारामनारतम् । स रेजे धृतसन्नाहः प्रावृषेण्य इवाम्बुदः । तन्मुक्ता विशिखा दीपा रेजिरे समराजिरे। द्रष्टुं तिरोहितान्नागान् दीपिका इव बोधिता: ।। आदिपुराण, ३२/६९-७० ३. चलनवलन: स्थानवल्गनैमर्मवञ्चनैः ।। तयोरमूद्धनुर्युद्ध' दृप्तदोर्दण्डचण्डयोः।। चन्द्रप्रभचरित, १५१२३ ४. गजा गरयुध्यन्त योधा योधै रथा रथैः । दन्तादन्ति खड्गाखड्गि तुण्डातुण्डि यथाक्रमम् ।। मल्लिनाथचरित, २/१६६ ५. वसन्तविलास महाकाव्य, ५,५०-५३ ६. द्विसंधान महाकाव्य, १६८ ७. उत्तरपुराण, ६८/४७१-४७२ ८. उत्तरपुराण, ६८/५५७-५५८ ६. हुष्यदंगतया सद्यः स्फुटत्पूर्व रणवणः । वीरवीररसाविष्ट: संनदध मपचक्रमे ।। चन्द्रप्रभचरित, १५/५ जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210888
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo me Rasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size2 MB
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