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________________ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं। णमो उवज्झामाणं, णमो लोए सव्व साहूणं / / मंत्र का सेद्धान्तिक और प्रायोगिक विवेचन 'शक्ति' सिद्धान्त के स्वीकार से ही सम्भव है - जैसा कि ऊपर देखा जा चुका है। यह शक्ति साधना से जागृत होती है - जो मंत्रों में निहित है। जैनशास्त्र के विभिन्न ग्रन्थों में णमोकार मंत्र की सर्वाधिक प्रमुखता दी ही गई है - शान्तिक और पौष्टिक कर्मो के निमित्त अन्य तमाम मंत्रों का भी साधनविधि के साथ विस्तार से विवरण मिलता है। मंत्र-जप से पूर्व रक्षामंत्र का जप-विधान है। जो लोग रक्षामंत्र का जप किये बिना ही मंत्रसिद्ध करने बैठते हैं वे लोग या तो व्यन्तरों आदि की विक्रिया से डरकर मंत्र जपना छोड़ देते है या पागल हो जाते हैं। यह रक्षामंत्र भी कर्म प्रकार का है - विशेषत: चार प्रकार का। यह रक्षा मंत्र जपसिद्धि में आने वाली विघ्न-बाधाओं के निवारणार्थ होता है। एक मंत्र है जिसे पढ़कर साधक अंगुली से वज्रमय कोट की रेखा खींचता है और उसके ऊपर चारों तरफ चुटक पढ़कर साधक अंगुली से वज्रमय कोट की रेखा खींचता है और उसके ऊपर चारों तरफ चुटकी बजाता है। इसका आशय यह होगा कि उपद्रवकारी 'वले जाये, साधक वजशिला पर आसीन है। __ अन्त में एक बात और ध्यान दिलाना चाहता हूं कि मंत्र की शक्ति का भौतिक उपलब्धियों के निमित्त उपयोग अपनी साधना और मंत्र की शाक्तियों का दुरुपयोग है। उससे प्रदर्शन की भावना और सर्वधाती अहंकार बढ़ता है। अत: सात्विक साधक को चाहिए कि वह आत्मशक्ति - स्वभावशक्ति की पुन: प्राप्ति के लिये। मंत्र साधना करे और प्रदर्शन की भावना से मुक्त होकर आत्महित की ओर प्रवृत्त हो। उज्जे (म.प.) * अभिमान के झूले में झकोले लेने वाला रावण महाज्ञानी, प्रतिज्ञानी था किंतु इतना होते हुए भी वह अपने श्रेय-हित का भी विचार नही कर सका। न होने वाले अशुभ कर्मो के उदयकाल से भटककर संपूर्ण जाति, कुल वंश, वैभव और देश के विनाश का स्वयं कारण बना। 252 मानवता के विकास से हो देवत्व, साधुत्व, आचार्यत्व, विद्धवत्व का सृजन-विकास हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210869
Book TitleJain Shastra aur Mantra Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherZ_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf
Publication Year1990
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mantra Tantra
File Size476 KB
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