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श्री goकरमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
लक्ष्मण की मृत्यु - राम का विक्षिप्त सा हो जाना-दीक्षा ग्रहण करना, तपस्या, केवलज्ञान की प्राप्तिहनुमान, विभीषण आदि का दीक्षा ग्रहण करना - लक्ष्मण रावण का नरक- वास । X
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मोक्ष लाभ ।
(५) दर्शन तथा पुराण
प्रायः सभी प्राचीन जातियों, देशों और धर्मों में अनेक परम्परागत कथा कहानियां होती हैं । उनमें से कुछ का न्यूनाधिक ऐतिहासिक आधार होता है। ऐसी कथाओं में प्राय: प्राकृतिक घटनाओं, मानव-जाति की उत्पत्ति, सृष्टि की रचना, प्राचीन धार्मिक कृत्यों और सामाजिक रीति रूढ़ियों के कुछ अत्युक्तिपूर्ण अथवा रूपकात्मक विवरण होते हैं । उनमें परम्परागत देवी-देवताओं और परमप्रतापी पुरुषों के जीवन वृत, राजवंशों की वंशावलियाँ आदि भी प्रस्तुत होती हैं । ऐसी बातें विशिष्ट जाति, धर्म या सम्प्रदाय की दार्शनिक, उपासनात्मक या साधनात्मक मान्यताओं के अनुकूल दिखाई देती है।
ब्राह्मण पुराणों की भाँति, जैन पुराण भी विद्यमान हैं। उनमें प्रधानतः २४ तीर्थंकरों, १२ चक्रवर्तियों, ε बलदेवों, ६ वासुदेवों और प्रतिवासुदेवों की कथाएँ हैं । इनके अतिरिक्त अनेक मुनियों, महापुरुषों, राजाओं की कथाएँ भी उनमें समाविष्ट हैं । प्राचीनकाल में जैन रामकथा भी पुराणों या पौराणिक शैली में लिखित चरितकाव्यों के रूप में प्रस्तुत की गई है। जनों के पुराणों के अनुसार, राम का मूल नाम "पद्म" (प्रा० तथा अपभ्रंश पउम, पोम ) था । इसके आधार पर रामकथा आचार्य विमलसूरि के प्राकृत "पउमचरियं" में, रविषेणाचार्य के संस्कृत 'पद्मपुराण' में तथा स्वयम्भुदेव के अपभ्रंश " पउमचरिउ" में ग्रथित है। ये तीनों रचनाएँ पौराणिक शैली में विरचित हैं । अतः कहना न होगा कि उनमें कुछ पौराणिक मान्यताएँ भी समाविष्ट है।
दर्शन वह विज्ञान है जिसमें प्राणियों को होने वाले ज्ञान या बोध, सब तत्त्वों तथा पदार्थों के मूल और आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, विश्व, सृष्टि आदि से सम्बन्ध रखने वाले नियमों, विधानों, सिद्धान्तों आदि का गम्भीर अध्ययन, निरूपण तथा विवेचन होता है । उसमें सब बातों के रहस्य, स्वरूप आदि का विचार करके तत्त्व, नियम आदि स्थिर किए हुए होते हैं ।
भारत में प्राचीन काल में दर्शनशास्त्र पर्याप्त मात्रा में विकसित हो चुका था । सांख्य, योग, वैशेषिक, न्याय, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा ( वेदान्त) नामक छः वैदिक या आस्तिक दर्शन के भेद हैं, जबकि चार्वाक्, बौद्ध और जैन दर्शन वैदिकेतर या नास्तिक दर्शन कहलाते हैं। वेदों को अस्वीकार करने के कारण, जैन दर्शन को वैदिकों ने नास्तिक दर्शन कहा है।
(६) पौराणिक पृष्ठभूमि
जैन रामकथा के लिए जिन पौराणिक और दार्शनिक मान्यताओं का आश्रय लिया गया है, उनका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जा रहा है। जैन रामकथा की दो परम्पराओं में से विमलसूरि की परम्परा की रामकथा जैनों के दोनों सम्प्रदायों में सर्वाधिक लोकप्रिय है; वह अधिक विकसित भी है। अतः जैन रामकथा की पौराणिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि का निम्नलिखित विवेचन मुख्यतः उसी के आधार पर किया जा रहा है (प्राकृत) पउमचरियं (संस्कृत) पद्मपुराण और (अपभ्रंश) पउमचरिउ आदि पौराणिक शैली में विरचित रामकथात्मक कृतियों में सृष्टि का स्वरूप, लोक-परलोक आदि के विषय में अनेक जैन मान्यताएँ समाविष्ट हैं । यद्यपि ये मान्यताएँ रामकथा के अंग नहीं हैं, फिर भी रामकथा उनके रंग में रंगी हुई है। इसलिए उनका उल्लेख यहाँ पर संक्षेप में किया जा रहा है ।
क) कथा का कृतित्व — जैनों की मान्यता के अनुसार, रामकथा रूपी सरिता तीर्थंकर वर्धमान महावीर के मुख रूपी रंध्र से निःसृत होकर क्रम से बहती हुई चली आई है । वह तीर्थंकर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी को प्राप्त हुई और मगध के राजा श्रेणिक की रामकथा - सम्बन्धी शंकाओं का समाधान करने के हेतु उन्होंने उसे सुनाई ।
(ख) राम का काल — राम, रावण आदि पात्र बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के तीर्थकाल में उत्पन्न हो गए थे । यह काल आज से सहस्रों वर्ष पूर्व पड़ता है ।
(ग) राम का स्थान- राम भरतखण्ड के साकेत अयोध्या नगर में उत्पन्न हुए थे साकेत, अयोध्या, चित्रकूट, दसपुर, दण्डकवन, किष्किन्धा, लंका आदि रामकथा में उल्लिखित स्थान जंबूद्वीप के अन्तर्गत भरतखण्ड में स्थित हैं ।
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