________________ जैन रहस्यवाद बनाम अध्यात्मवाद 341 भाव, कहीं सखिभाव से बात की है तो कहीं उपालम्भ से। यहीं उनकी भावात्मक अनुभूति और अध्यात्मवाद अथवा रहस्यवाद की स्वीकृति मिलती है। अध्यात्मवादी जैन साधकों की तुलना जैनेतर साधकों से करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रारम्भ में जैनेतर साधकों और संतों ने जैन साधकों से बहुत कुछ लिया है। कबीर आदि सन्त तो निश्चित ही उनसे बहुत प्रभावित रहे हैं। मुनि योगीन्दु और रामसिंह कबीर से शताब्दियों पूर्व हए थे। कबीर ने उनके भावों को ग्रहण कर अपने काव्य में उन्हें खूब गंथा है। बाह्याडम्बर का खण्डन-मण्डन, दास्यभाव की अनुभूति आदि कुछ ऐसे तत्त्व हैं जो कबीर ने जैन साधकों से ग्रहण किये हैं। जायसी के रूपकतत्त्व, मीरा की रहस्यभावना, तुलसी की भक्ति-साधना और सूरदास का वात्सल्यरस रहस्यवाद के निश्चित ही अमूल्य रूप हैं। पर उनके मूल में भी जैन कवियों की भावप्रेरणा दृष्टव्य है। निबन्ध के विस्तारभय से उसे हम यहां प्रस्तुत नहीं करना चाहेंगे। यह तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। इस प्रकार जैन अध्यात्मवाद अपने विविध रूपों में आधुनिक रहस्यवाद तक आ पहुंचा है। उसमें विकास के अनेक चरण देखे जा सकते हैं। श्रद्धा-भक्ति और प्रेम की त्रिवेणी के संगम से जो भावधारा यहां कवियों में फूटी है, वह अन्य कवियों को प्रेरक तो बनी ही है, साथ ही सूक्ष्म भावों की प्रस्तुति का एक मानदण्ड भी प्रस्थापित हो गया है / प्रानन्द-वचनामृत मणका विवेक ही वह संजीवनी औषधि है जो कृति (कर्म में सत्कृति, संस्कृति और शुकृति का प्राण संचारण करता है। - जैसे पर्वत-शिखर पर चढ़ने के लिए चढ़ाई की, श्रम और दृढ़ अभ्यास आवश्यक है वैसे ही उन्नति एवं अभ्युदय के लिए कष्ट भोग की अनिवार्यता है। - स्वार्थ से परार्थ और परार्थ की ओर बढ़ते जाना जीवन का आध्यात्मिकता आरोहण है। तीव्र शारीरिक वेदना के क्षणों में भी मानसिक शांति की अनुभूति करने का एक सरल उपाय है-देह के साथ आत्मा की भिन्नता का अनुभव करना / देह को नश्वर जानकर अमर आत्मा का दर्शन करनेवाला किसी भी पीड़ा-वेदना एवं व्यथा से उसी प्रकार भुब्ध नहीं होता जैसे वातानुकूल (एयरकंडीसन) भवन में बैठने वाला बाहर की सर्दी-गर्मी से। जिस प्रकार पुण्य सलिला गंगा का पवित्र जल चाहे मिट्टी के घट में भरा हो, या स्वर्ण-पात्र में, वह तो सदा ही अभिषेकाह माना जाता है। उसी प्रकार महापुरुष का जीवन चरित्र चाहे ललित काव्यात्मक भाषा में लिखा हो, अथवा सामान्य शब्दावली में वह सदा ही पठनीय एवं वंदनीय होता है। AGAn i malaswatarnamaAALANATANJANAaw.AAAAJAmmunanaGOOK पासप्रवभिआचार्यप्रवर अभी मानन्द श्रीआनन्दन puranamamme Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org