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जैन मिथक तथा उनके आदि स्रोत भगवान् ऋषभ
डॉ० हरीन्द्रभूषण जैन
निदेशक - अनेकान्त शोधपीठ, बाहुबली ( कोल्हापुर )
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'मिथ' शब्द अंग्रेजी भाषा का है जिसका अर्थ है - पुराकथा कल्पितकथा या गप्प । इसमें संस्कृत भाषा का 'क' प्रत्यय जोड़कर 'मिथक' शब्द का निर्माण हुआ है । हमने यहाँ मिथक शब्द का व्यवहार पुराकथा अर्थात् 'पुराण' के रूप में किया है ।
जैन धर्म - परिचय एवं प्राचीनता
जैन शब्द का अर्थ है कर्म रूपी शत्रुओं को जीतनेवाला । अतः कर्मजयी सिद्धों, अरिहंतों और २४ तीर्थरों द्वारा उपदिष्ट धर्म जैनधर्म के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार भगवान् ऋषभदेव इस युग के सबसे प्रथम तीर्थङ्कर हैं । उनके काल की अवधारणा शक्य नहीं है। इसी कारण, जैन धर्म को अत्यन्त प्राचीन माना जाता है। महावीर इस युग के अन्तिम तीर्थङ्कर हैं ।
जैन साहित्य
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जैन साहित्य चार अनुयोगों में विभाजित है - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग | पुराण- पुरुषों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला द्रव्यानुयोग है । लोक और अलोक का विवेचन करनेवाला करुणानुयोग है। गृहस्थ और साधु के आचार का प्रतिपादन करने वाला चरणानुयोग है। जीव-अजीव आदि सात तत्त्वों का प्रतिपादक प्रथमानुयोग है । प्रथमानुयोग ही जैन मिथक का साहित्य है ।
प्रथमानुयोग की परिभाषा करते हुए रत्नकरण्ड श्रावकाचार ( २. २.) में कहा है 'प्रथमानुयोग मुक्तिरूप परम अथं का व्याख्यान करनेवाला, पुण्यप्रद पुराण पुरुषों के चरित्र की व्याख्या करनेवाला श्रोता की बोधि और सम का निधान, समोचीन ज्ञानरूप है ।'
प्रथमानुयोग चरित्र एवं पुराणरूप से दो प्रकार होता है। किसी एक विशिष्ट पुरुष के आश्रित कथा का नाम चरित्र है तथा त्रेसठ शलाका पुरुषों के आश्रित कथा का नाम पुराण है । ये त्रेसठ शलाका पुरुष निम्न हैं: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव तथा नौ प्रतिवासुदेव ।
षट्खण्डागम के अनुसार पुराण बारह प्रकार का है जो निम्नलिखित १२ वंशों की प्ररूपणा करता है । १ अरिहंत, २ चक्रवर्ती, ३ वसुदेव, ४ विद्याधर, ५ चारण ऋषि, ६ श्रमण, ७ कुरुवंश, ८ हरिवंश, ९ ऐक्ष्वाकुवंश' १० कासियवंश, ११ वादी और १२ नाथवंश ।
त्रेसठ शलाका पुरुषों के आश्रित कथाशास्त्र रूप पुराण में इन आठ बातों का वर्णन होना चाहिए -- लोक, पुर, राज्य, तीर्थ, दान, दोनों तप और गतिरूप फल । ऐसा कहा जाता है कि प्रारम्भ में यौवनशलाका पुरुषों की मान्यता रही है, इनमें नौ प्रतिवासुदेव जोड़कर कब यह संख्या त्रेसठ हो गई, यह अन्वेषणीय है ।
+ अखिल भारतीय मिथक संगोष्ठी, विक्रम विश्वविद्यालय में पठित लेख का संक्षेपित रूपान्तर ।
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