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जैन पुराणकालीन भारत में कृषि
डॉ० देवी प्रसाद मिश्र
किसी भी समाज या सम्प्रदाय का उत्कर्ष उसकी आर्थिक सम्पन्नता पर निर्भर करता है । व्यक्ति के सांसारिक एवं भौतिक सुख का सम्बन्ध अर्थ से नियंत्रित होता है । ऐहिक दृष्टि से मानव के जीवन में अर्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यद्यपि जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है, तथापि इसमें भी अर्थ की उपेक्षा नहीं की गयी है । सांसारिक जीवन को चलाने के लिये जैन ग्रन्थों में यत्र-तत्र सामग्री उपलब्ध होती है । महापुराण में वर्णित है कि अर्थार्जन मनुष्य के जीवन का सदोद्देश्य होना चाहिए ।" इसी पुराण में मनुष्य की आजीविका के लिये छ: प्रमुख साधनों का उल्लेख हुआ है, जिसमें असि ( शस्त्रास्त्र या सैनिक वृत्ति), मसि ( लेखन या लिपिक वृत्ति), कृषि ( खेती और पशुपालन ), शिल्प ( कारीगरी और कला - कौशल ), विद्या (व्यवसाय) और वाणिज्य (व्यापार) हैं ।
प्राचीन काल से ही लोगों का प्रधान पेशा कृषि एवं पशुपालन था । उसके बाद ही अन्य व्यवसाय को अपनाया गया। प्राचीन काल से भारत में कृषि होती थी और आज भी भारत कृषि-प्रधान देश है । प्राचीन काल में कृषि देश के आर्थिक विकास का मूलाधार थी । इसी पर लगभग सभी का जीवन आश्रित रहता था । आज भी ८०% लोग कृषि पर अपनी आजीविका निर्भर करते हैं । प्राचीन काल में पर्वतीय एवं ऊँची-नीची भूमि को समतल कर, जंगलों को साफ कर तथा भूमि को खोद कर कृषि कार्य किया जाता था । जैनपुराणों में क्षेत्र शब्द व्यवहृत हुआ है तथा खेत ( भूमि ) को हल के अग्रभाग से जोतने का उल्लेख मिलता है । * प्राचीन समय में हल प्रतिष्ठा का द्योतक होता था । उस समय जिसके पास जितनी अधिक संख्या में हल होते थे, वह व्यक्ति उतना ही प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न माना जाता था । जैन ग्रन्थों में चक्रवर्ती राजा भरत के पास एक करोड़ हल होने का उल्लेख मिलता है । ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि सामान्य कृषकों के पास जो भी हल होते थे, वे सभी राजा के हल माने जाते होंगे । जैनेतर ग्रन्थों में हल के अतिरिक्त अन्य कृषि यन्त्रों में हेंगा ( मत्य एवं कोटीश ), खनित्र ( अवदारण), गोदारण ( कुन्दाल ), खुरपी, दात्र, लवित्र ( असिद ), हँसिया आदि का उल्लेख मिलता है । इन्हीं कृषि यन्त्रों के माध्यम से खेती होती है ।
१. महापुराण ४६,५५
२ . वही १६ । १७९
३. वही १६।१८१ ; विष्णुपुराण १।१३।८२; बृहत्कल्पभाष्य ४।४८९१
४. पद्मपुराण २३, ३।६७; हरिवंश पुराण ७ ११७
५. वही ४ । ६३; महापुराण ३७।६८
६. द्रष्टव्य - लल्लन जी पाण्डेय - पूर्व मध्यकालीन उत्तर भारत में कृषि व्यवस्था ( ७००-१२०० ); राजबली पाण्डेय स्मृति ग्रन्थ, देवरिया १९७६, पृ० २६५
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