________________
पृच्छना का फल सूत्र (शास्त्र) तथा तत्प्रतिपादित अर्थ इन दोनों से सम्बन्धित सन्देह की निवृत्ति, संशय, विपर्यय आदि का निराकरण, तथा कांक्षामोहनीय कर्म का क्षय आदि पृच्छना के फल है।
५३
गृहीत ज्ञान
३. परिवर्तना (या आम्नाय) स्थायी बनाने हेतु किसी सूत्र का या पठित शास्त्र का, आचारविद, व्रती द्वारा स्वयं किया गया बारबार शुद्ध (पाठ-दोषों से रहित) पाठ' 'परिवर्तना' है । ५४ परिचित श्रुत का मर्म समझने, तथा स्मृति में पूर्णतः स्थिर करने हेतु यह एक प्रकार का परिशीलन या पर्यालोचन भी है। ५५ पठित ग्रन्थ का शुद्ध-शुद्ध उच्चारण करते हुए बारबार पाठ से तत्सम्बद्ध अर्थ मन में दृढ़ता से बैठता जाता है ।
आम्नाय, घोषविशुद्ध, परिवर्तन (ना),
५३.
५४.
-
स्तुति भी (परिवर्तना) स्वाध्याय है निरन्तर अर्हन्त भगवान् के ध्यान में लीन रहता हुआ 'जो अर्हन् शं वो दिश्यात्' (अर्हन्त भगवान तुम्हारा कल्याण करें ) इत्यादि स्तुति वचन उचारता है, वह भी स्वाध्याय है, क्योंकि इस स्तुति से भी परम्परया मोक्ष - प्राप्ति मानी गई।
५७
५५.
५६.
-
परिवर्तन का फल शास्त्रों में परिवर्तना का फल अक्षरों की उत्पत्ति, अर्थात् स्मृति की परिपक्वता और विस्मृत की स्मृति, तथा व्यंजन - लब्धि (वर्णविद्या) की यानी पदानुसारिणी बुद्धि की प्राप्ति बताया गया है। ५८
५७.
५८.
Jain Education International
गुणन, रूपादान- ये सभी शब्द एकार्थक हैं
-
दशवै. चूर्णि, पृ. २८
(क) तत्त्वार्थ. ९.२५ श्रुतसागरीयवृत्ति ।
(ख) राजवार्तिक ९.२५.४
(ग) चारित्रसाग- पृ. ८७,
(घ) भगवती आरा. टीका, १३९
(ड) अनगार धर्मामृत ७८७
(च) तत्त्वार्थसार, ७.१९
धवला, ९.४.१.५५।
(क) तत्वा. सू. ९.२५ भाष्य
(ख) भगवती आरा. १०४ टीका ।
(क) अनगार धर्म. ७.९२ ।
(ख) आ. भद्रबाहु, आव. नियुक्ति, १०७३।
उत्त. २९.२ ।
५६,
(८८)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org