________________ // श्री जेन्न दिवाकर - स्मृति-छल्थ : 485 : जैन-परम्परा में पूर्वज्ञान : एक विश्लेषण श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ या विवर्धक है। इसे पूर्वान्तर्गत अध्ययन-स्थानीय ग्रन्थों के रूप में माना गया है / 1 श्रोताओं की अपेक्षा से सूक्ष्म जीवादि भाव-निरूपण में भी 'वस्तु' शब्द अभिहित है। ऐसा भी माना जाता है, सब दृष्टियों की उसमें अवतारणा है। वस्तुओं की संख्या प्रथम पूर्व में दश, दूसरे में चौदह, तीसरे में आठ, चौथे में अठारह, पाँचवें में बारह, छठे में दो, सातवें में सोलह, आठवें में तीस, नौवे में बीस, दशवें में पन्द्रह, ग्यारहवें में बारह, बारहवें में तेरह, तेरहवें में तीस तथा चौदहवें पूर्व में पच्चीस वस्तुएँ हैं, इस प्रकार कुल 10+14++ 18+12+2+16+30+20+1+12+13+30+25=225 दो सौ पच्चीस वस्तुएं हैं। विस्तृत विश्लेषण यहाँ सापेक्ष नहीं है। पूर्व वाङ्मय का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत निबन्ध का विषय है। --------------------------------------------------------2 जहा सूई ससुत्ता, पडिआ वि न विणस्सइ / तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ / / No.-0--0--0-0------- जावंतऽविज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा / लुप्पंति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतए / n-or-o--------------------0--0--0--0-0----0-0--0--0--0--0-0-5 1 पूर्वान्तर्गतेषु अध्ययनस्थानीयेषु ग्रन्थ विशेषेषु / -अभिधान राजेन्द्र, षष्ठ भाग, पृ० 876 2 श्रोत्रापेक्षया सूक्ष्मजीवादि भावकथने / 3 सर्व दृष्टीनां तत्र समवतारस्तस्य जनके / -अभिधान राजेन्द्र, चतुर्थ भाग, पृ० 2516 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org