SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ईश्वर दयाल * गुण शरीर के साथ जुड़े हैं। शरीर मुक्त गुणातीत होगा और संख्या स्वयं एक गुण है अतः उसके भी पार ही होगा। उसे अनन्त कहें या एक-संख्या की दृष्टि से इन सब अभिधाओं का कोई अर्थ नहीं रह जाता। * पार्थक्य का आधार है व्यक्तिगत भिन्नताएँ, जो शरीर और मन के पार अपनी कोई सत्ता नहीं रखती-शेष रहती है निर्गुणात्मक सत्ता जो अभेद है, अतः अभिन्न भी है और अभिन्न है अतः एक भी है। यही है निर्वाण की परम अद्वैत स्थिति जो वेदान्त परम्परा का ब्रह्म है, सूफियों का शून्य, बुद्ध का लोकव्यापी धर्म धातुकाय, लाओ-त्जे का ताओ, कनफ्यूशियस की हार्मनी। आचारांगसूत्र जिसे हमन जैकोबी ने महावीर की प्रामाणिक वाणी का स्रोत माना है, में भगवान् ने निर्वाणस्थ आत्मा का जो चित्र प्रस्तुत किया है उसमें सिद्धशिला, अवगाहना एवं आकारमय असंख्य जीवों, ऊर्ध्वगमन आदि बातों का कोई सन्दर्भ नहीं है । वस्तुतः सिद्धशिला आत्मा की परम शुद्ध एवं सर्वोच्च पवित्रता की स्थिति तथा लोक की अग्रसत्ता के रूप में उसकी गरिमा की प्रतीक है। ऊर्ध्वगमन भावना के स्तर पर आत्मा के विकास, आत्मा-साधना की आरोहणमयी स्थिति की प्रतीक है। इन्हें परवर्ती परम्परा ने अभिधात्मक अर्थ में लेकर एकदम अनर्थ की सृष्टि कर डाली है। भगवान् ने निर्वाण की स्थिति का जो चित्र प्रस्तुत किया है वह परम प्रेरणादायी है: सव्वे सरा णियट्टन्ति तक्का जत्थ ण विजय मइ तत्थ ण गहिया ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयन्ने "सारे स्वर लौट आते हैं वहाँ से तर्क की सत्ता नहीं रहती जहाँ ग्रहण ही नहीं कर पाती जिसे बुद्धि वह निराधार निःसीम ज्ञाता तत्त्व ।' से ण दीहे, ण हस्से ण वट्टे ण तंसे ण चउरसे ण परिमंडले "वह न बड़ा है न छोटा आकार में न गोल, न त्रिकोण, न चतुष्कोण; न परिमंडल ( कोई माप नहीं जिसका, न कोई आकार ) ण किण्हे ण णीले लोहिए ण हालिद्दे ण सुक्किल्ले ण सुब्भिगंधे, ण दुब्भिगंधे । "वह न काला है न नीला, न लाल, न नारंगी, न सफेद न सुगन्धित है, न दुर्गन्धित ।" ण तित्ते ण कडुए ण कसाए णअंबिले ण महुरे ण कवखडे ण मउए ण गरूए ण लहुए ण सीए ण उण्हे ण णिद्धे ण लुक्खे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210793
Book TitleJain Nirvan Parampara aur Parivrutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwar Dayal
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year1987
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Nine Tattvas
File Size528 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy