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________________ 566 जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ सन्दर्भ 18. भगवती आराधना, गाथा, 987-88 व 995-96 1. दव्वाभिलावचिन्धे वेए भावे य इत्थिणिक्खेवो / 19. वही, गाथा, 989-94 अहिलावे जह सिद्धि भावे वेयम्मि उवउत्तो // 20. तए णं से कण्हे वासुदेव बहाए जाव विभूसिए देवईए देवीए -सूत्रकृतांग नियुक्ति, 54. पायवंदाये हब्बमागच्छइ / - अन्तकृद्दशा सूत्र, 18 2. अभिधान राजेन्द्रकोष, भाग२, पृ०६२३. 21. नो खलु मे कप्पइ अम्मापितीहि जीवंतेही मुण्डे भवित्ता 3. यद्वशात् स्त्रियाः पुरुषं प्रत्यभिलाषो भवति, यथा पित्तवणा अगारवासाओ अणगारियं पव्वइए-कल्पसूत्र, 91 मधुरद्रव्यं प्रति स फुफुमादाहसमः यथा यथा चाल्यते तथा तथा ज्वलति (एवं) गब्भत्थो चेव अभिग्गहे गेण्हति णाहं समणे होक्खामि जाव बृंहति च / एवमबलाऽपि यथा यथा संपृश्यते पुरुषेण तथा तथा अस्या एताणि एत्थ जीवंतित्ति / अधिकतरोऽभिलाषो जायते, भुज्यमानायां तु छन्नकरीषदाहतुल्योऽभिलाषोः -आवश्यकचूर्णि, प्रथम भाग, पृ० 242, प्र० ऋषभदेव जी केशरीमल, मन्द इत्यर्थः इति स्त्रीवेदोदयः / - वही, भाग६, पृष्ठ, 1430 श्वेताम्बर सं० रतलाम 1928. 4. संमत्तंतिमसंधयण तियगच्छेओ बि सत्तरि अपुवे / 22. तए णं मल्ली अरहा........केवलनाणदंसणे समुप्पन्ने / हासाइछक्कअंतो छसट्ठि अनियट्टिवेयतिगं / / - ज्ञाताधर्मकथा, 8/186 5. देखें - कर्मप्रकृतियों का विवरण। - कर्मग्रन्थ, भाग 2, गाथा, 18 23. अज्जा वि बंभि-सुन्दरि-राइभई चन्दणा पमुक्खाओ। 6. णाम ठवणादविए खेत्ते काले य पज्जणणकम्मे / कालतए वि जाओ ताओ य नमामि भावेणं / / भोगे गुणे य भावे दस ए ए इत्थीणिक्खेवो / / -ऋषिमण्डलस्तव, 208 -सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा, 54. 24. देवीओ चक्केसरी अजिया दुरियारी कालि महाकाली। 7. तन्दुलवैचारिक, सावचूरि सूत्र, 19 (देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धार अच्चुय संता जाला सुतारया असोय सिरिवच्छा / / ग्रन्थमाला) पवर वजियं कुसा पण्णत्ती निव्वाणि अच्च्या धरणी / 8. वही। वइरोट्टऽच्छुत गंधारि अंब उपमावई सिद्धा / / 9. समुद्रवीचीचपलस्वभावाः संध्याभ्रमरेखा व मुहूर्तरागाः / -प्रवचनसारोद्धार, भाग१, पृ० 375-76, देवचन्द लालभाई स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं निपीडितालक्तकवद् त्यजन्ति / जैन पुस्तकोद्धार संस्था, सन् 1922 उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० 65, ऋषभदेवजी केशरीमल संस्था रत्नपुर 25. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं / (रतलाम) 1933 ई०. अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइयो / / 10. पगइत्ति सभाओ / स्वभावेन च इत्थी अल्पसत्वा भवति / - उत्तराध्ययन सूत्र, 22/48 - निशीथचूर्णि, भाग 3, पृ० 584, आगरा, 1957-58 (तथा) दशवैकालिकचूर्णि, पृ० 87-88, मणिविजय सीरीज भावनगर / 11. सा य अप्पसत्तत्ताणओ जेण वातेण वत्थमादिणा। 26. भगवं वंभी-सुन्दरीओ पत्थवेति ....इमं व भणितो। अप्पेणावि लोभिज्जति, दाणलोभिया य अकजं पिकरोति / / ण किर हत्थिं विलग्गस्स केवलनाणं उप्पज्जई / / -वही, भाग 3, पृ० 584 / ___ -आवश्यकचूर्णि, भाग 1 पृ० 211 12. आचारांगचूर्णि, पृ०३१५ / 27. वंतासी पुरिसो रायं, न सो होई पसंसिओ। 13. एवं पि ता वदित्तावि अदुवा कम्मुणा अवकरेति / माहणेणं परिचत्तं धणं आदारमिच्छसि / - सूत्रकृतांग, 1/4/23 - उत्तराध्ययन सूत्र, 14/38 एवं उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० 230 14. दुग्रहियं हृदयं यथैव वदनं यद्दपणान्तर्गतम् (ऋषभदेव केशरीमल संस्था रतलाम, सन् 1933) ____ भाव: पर्वतमार्गदुर्गविषमः स्त्रीणां न विज्ञायते / 28. भगवती, 12/2 / -सूत्रकृतांग, 1/4/23, प्र० सेठ छगनलाल, मूंथा बंगलोर 1930 29. जइ वि परिचित्तसंगो तहा वि परिवडइ / 15. सुट्ठवि जियासु सुट्ठवि पियासु सुट्ठवि लद्वपरासु / महिलासंसग्गीए कोसाभवणसिय व्व रिसी / / अडई महिलियासु य वीसंभो नेव कायव्यो / -भक्तपरिज्ञा,गा० 128 उब्भेउ अंगुली सो पुरिसो सयलंमि जीवलोयम्मि / (तथा ) कामं तएण नारी जेण न पत्ताइं दुक्खाई // तुम एत सोयसि अप्पाणं णवि, तुम एरिसओ चेव होहिसि, ___ -वही, विवरण 1/4/23 उवसामेति लद्धबुद्धी, इच्छामी वेदावच्चंति गतो, पुणोवि आलोवेत्ता 16. वही, 1/4/2 विरहति // 17. एए चेव य दोसा पुरिससमाये वि इत्थियाणं पि / __ आवश्यकचूर्णि 2, पृ० 187 -सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा, 61 ण दुक्कर तोडिय अंबपिंडी, ण दुक्करंणच्चितु सिक्खियाए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210771
Book TitleJain Dharm me Nari ki Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf
Publication Year1998
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Woman
File Size3 MB
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