________________ 229. 230. - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म - 210. कल्पसूत्र 21 / 224. यानि च तीणि यानि च सट्ठि। सुत्तनिप समियसुत्त। 211. वही 21-26 / 225. (अ) स्थानांग 4 / 4 / 345 / (ब) भगवती 30 / 11824 / 212. समवायांग, गा. 7, आवश्यकनियुक्ति 377 / 226. किरियं अकिरियं विणियंति तइय अन्नणामहंसु च उत्थमेव। -सूत्रकृतांग 213. कल्पसूत्र 110, 112, आवश्यकचूर्णि, प्रथम भाग, पृ. 249, आ.नि.गा. 1 / 12 / 1 / 299 / 227. सूत्रकृतांग 1 / 12 / 4-8 / 214. कल्पसूत्र 120 // वही 1 / 12 / 2 / 215. वही 134-147 / उत्तराध्ययन 18133 / 216. (अ) संयुत्तनिकाय, नानातित्थिय सुत्त 2 / 3 / 10 / सूत्रकृतांग 1 / 10 / 17 / (ब) संयुत्तनिकाय, संखसुत्त 4018 // आचारांग सटीक श्रु. 1, अ. 1, उद्दे. 1, पत्र 20 / (स) अंगुत्तरनिकाय, पंचकनिपात 5 / 28 / 8 / 17 / निशीथसूत्र सभाष्य, चूर्णि भाग 1, पृ. 15 / (द) मज्झिमनिकाय, उपातिसुत्त 2 / 16 / 233. दीघनिकाय, सामञफलसुत्त / (अ) कुण्डपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्य णाह कुले। तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए / / 23 / / - जयधवला, भा. 1, पृ. 78 / / 234. वही (हिन्दी अनुवाद), पृ. 21 का सार / (ब) 'णाहोग्गवंसेस वि वीर पासा' / / 550 / / तिलोयपण्णत्ति, अ. 4 / 235. सूत्रकृतांग-टीका 1 / 6 / 4 / 236. पाप पराल को पुञ्ज वण्यो, मानो मेरु आकारो / 218. 'णातपुत्ते महावीरे एवमाह जिणुत्तमे' - सूत्रकृतांग 1 श्रु., अ., 1 उ.। ते तुम नाम हुताशन तेसी सहज ही प्रजलत सारो // 219. बुद्धचर्या, पृ. 551 / "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थिा " - उत्तराध्ययन, 4 / 3 / 220. वही, पृ. 481 / "पुरिसा ! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि?" - आचारांग 221. इण्डियन सेक्ट ऑफ दी जैनास्, पृ. 29 / 1 / 3 / 3 / "पुसि ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पसुच्चसि। 222. वही, पृ. 36 / - वही, 1 / 3 / 3 / 223. सूत्रकृतांग 1 / 1 / 2 / 23 / - तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार से साभार WWW WWWW WWWM 73 217. 37. 38. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org