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- यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म तीर्थंकरों की संख्या - वर्तमान, अतीत और अनागत दिगम्बर-ग्रंथ जपसेनप्रतिष्ठापाठ के नामों में कुछ भिन्नता काल के तीर्थंकर
है, उसमें इन २४ तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है - यद्यपि भागवत में विष्णु के अनन्त अवतार बताए गए
१. निर्वाण २. सागर ३. महासाधु ४. विमलप्रभ ५. हैं३९फिर भी वैष्णवों में चौबीस अवतार की अवधारणा प्रसिद्ध
शुद्धाभदेव ६. श्रीधर ७. श्रीदत्त ८. सिद्धाभदेव ९. अमलप्रभ
१०. उद्धारदेव ११. अग्निदेव १२. संयम १३. शिव १४. पुष्पांजलि है। उसी प्रकार जैन-ग्रंथ महापुराण में यद्यपि भूत और भविष्य
१५. उत्साह १६. परमेश्वर १७. ज्ञानेश्वर १८. विमलेश्वर १९. की अनन्त चौबीसियों के आधार पर अनन्त जिनों की कल्पना
यशोधर २०. कृष्णमति २१. ज्ञानमति २२. शुद्धमति २३. श्रीभद्र की गई है। फिर भी जैनों में चौबीस तीर्थंकरों की अवधारणा
२४. अनन्तवीर्य। ही अधिक प्रचलति रही है तथा विविध क्षेत्रों और कालों की अपेक्षा से अनन्त चौबीसियों की कल्पना की गई।
श्वेताम्बरग्रंथ प्रवचनसारोद्धार और दिगम्बरग्रंथ
जयसेनप्रतिष्ठापाठ में भरतक्षेत्र के उत्सर्पिणी-काल के अतीत जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में वर्तमान अवसर्पिणी-काल के
तीर्थंकरों - निर्वाण, सागर जिन, विमल, श्रीधर, दत्त, शिवगति, चौबीस तीर्थंकर इस प्रकार है४१ -
शद्धमति के नामों में समानता दिखाई देती है एवं अन्य तीर्थंकरों १. ऋषभ २. अजित ३. संभव ४. अभिनन्दन ५. समति के नामों में दोनों ग्रंथों में भिन्नता है। ६. पद्मप्रभ ७. सुपार्श्व ८. चन्द्रप्रभ ९. सुविधि-पुष्पदन्त १०. ऐरावत क्षेत्र के अवसर्पिणी-काल के अतीत तीर्थंकरों के शीतल ११. श्रेयांस १२. वासुपूज्य १३. विमल १४. अनंत १५. संबंध में हमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है। धर्म १६. शान्ति १७. कुन्थु १८. अर ११. मल्लि २०. मुनिसुव्रत
जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी-काल में २१. नमि २२. नेमि २३. पार्श्व और २४. वर्धमान।
होने वाले चौबीस तीर्थंकर५ ये हैं - जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र के वर्तमान अवसर्पिणी-काल
१. महापद्म २. सूरदेव ३. सुपार्श्व ४. स्वयंप्रभ ५. में निम्नांकित चौबीस तीर्थंकर हुए हैं -
सर्वानुभूति ६. देवश्रुत ७. उदय ८. पेढालपुत्र ९. प्रोष्ठिल १०. १. सुचन्द्र २. अग्निसेन ३. नन्दिसेन ४. ऋषिदत्त ५. शतकीर्ति ११. मुनिसुव्रत १२. सर्वभाववित १३. अमम १४. सोमचन्द्र ६. युक्तिसेन ७. अजितसेन ८. शिवसेन ९. बुद्ध १०. निष्कषाय १५. निष्पुलाक १६. निर्मम १७. चित्रगुप्त १८. देवशर्म ११. निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयांस) १२. असंज्वल १३. समाधिगुप्त १९. संवर २०. अनिवृत्ति २१. विजय २२. विमल जिनवृषभ १४. अमितज्ञानी अनन्त १५. उपशान्त १६. गुप्तिसेन २३. देवोपपात और २४. अनन्तविजय। १७. अतिपार्श्व १८. सुपार्श्व १९. मरुदेव २०. धर २१. श्यामकोष्ठ
उपर्युक्त तीर्थंकर आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत क्षेत्र २२. अग्निसेन २३. अग्निपुत्र २४. वारिषेण।
में धर्मतीर्थ की देशना करेंगे। समवायांग में तो जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में उत्सर्पिणी काल
जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में के अतीत तीर्थंकरों का विवरण उपलब्ध नहीं है, परन्तु प्रवचनसारोद्धार चौबीस तीर्थंकर होंगे४६ में निम्नांकित २४ तीर्थंकरों का विवरण उपलब्ध होता है।३ -
१.सुमंगल २.सिद्धार्थ ३.निर्वाण ४. महायश५. धर्मध्वज १. केवलज्ञानी २. निर्वाणी ३. सागरजिन ४. महायश ५. ६. श्रीचन्द्र ७. पुष्पकेत ८. महाचन्द्र केवली ९.सतसागर अर्हन विमल ६. नाथसुतेज (सानुभूति) ७. श्रीधर ८. दत्त ९. दामोदर १०. सिद्धार्थ ११. पर्णघोष १२. महाघोष केवली १३. सत्यसेन १०.सुतेज ११. स्वामिजिन १२.शिवाशी (मुनिसुव्रत) १३. सुमति
अर्हन् १४. सूरसेन अर्हन् १५. महासेन केवली १६. सर्वानन्द १४. शिवगति १५. अवाध (अस्ताग) १६. नाथनेमीश्वर १७.
१७. देवपुत्र अर्हन् १८. सुपार्श्व १९. सुव्रत अर्हन् २०. सुकोशल आनल १८. यशाधर १९. जिनकृताथ २०. धमाश्वर (जिनश्वर) अर्हन २१. अनन्तविजय अर्हन् २२. विमल अर्हन् २३. महाबल २१. शुद्धमति २२. शिवकरजिन २३. स्यन्दन २४. सम्प्रतिजिन। अर्हन और २४. देवानन्द अर्हन ।
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