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यह व्रत खंडित हो सकता है उन्हें अतिचार कहते हैं। इनकी कुल संख्या पाँच मानी गई है५१ जीविताशंसा, २ मरणाशंसा, ३. भयानुशंसा, ४. मित्रागुराग और ५. निदानुशंसा.
१. जीविताशंसा अधिक समय तक जीवित रहने की अभिलाषा । संथारा लेने वाले साधक को मन में यह विचार नहीं रखना चाहिए कि मैं कुछ समय तक और जीवित रहता तो अच्छा होता।
२. मरणाशंसा - शीघ्र मरण की कामना । व्रत में होने वाले कष्टों से घबराकर शीघ्र मरने की कामना नहीं करनी चाहिए।
३. भानुशंसा- मैंने अपने जीवन में कई तरह के उपभोगों का भोग किया है। मैं इस प्रकार सोता था, खाता था, पीता ता आदि प्रकार के भावों का चिन्तन करना अतिचार है।
३. उत्तराध्ययन सूत्र, ७/२,३२
४. आराधनासार, २५-२८
५. आयारो, पृ. २९३.
६. तेसिं सोच्चा सपुज्जाणं संजयाणं वुसीमओ ।
न संतसन्ति मरणन्ते सीलवन्ता बहुस्सुया । ७. णिम्ममो णिरहंकारो णिक्कसाओ जिदिदिओ धीरो।
अणिदाणो दिट्ठिसंपण्णोमरंतो आराहयो होइ ॥ ८. बारसेव उ वासाई संलेहुक्कोसिया भवे । संवच्छर मज्झिमिया छम्मासा य जहन्निया ॥ ९. वही., ३६/२५२-२५४
भगवती आराधना, २५५-२५६ १०. गामे अदुवा रण्णे थंडिलं पडिलेहिया । अप्पाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी ॥
११. पाणा देहं विहिंसंति ठाणतो ण वि उब्भमे । आसवेहिं विवित्तेहिं तिप्पमाणों घियासए ।
१२. णत्थि भयं मरणसमं जम्मणसमयं ण विज्जदे दुक्खं ।
जम्मणमरणादकं छिंदि ममत्ति सरीरादो ॥
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
४. मित्रानुरागशंसा पूर्व में बाल्यावस्था में, युवावस्था में अपने मित्रों के साथ की गई गतिविधियों को याद करना एवं उससे दुःखी होना भी अतिचार है।
५. निदानानुशंसा - लोक-परलोक के विषय में चिन्तन करना तथा यह सोचना कि मेरे इस कठिन व्रत का फल क्या मिलेगा निदानानुशंसा अतिचार है।
संदर्भ स्थल
१. सहायक- आचार्य, जीवन विज्ञान विभाग, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं-३४१३०६, राजस्थान ।
२. उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतिकारे ।
धर्माय तनु विमोचन माहुः सल्लेखनामार्याः ॥
इस तरह जैन दर्शन में उल्लिखित संधारा की अवधारणा पर विचार प्रस्तुत किया गया है।
पता
सहायक आचार्य
जीवन विज्ञान विभाग
जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनू ।
- रत्नकरंडक श्रावकाचार, ५/१
-उत्तराध्ययन, ५/२९
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-मूलाचार, १०३
- उत्तराध्ययन, ३६/२५
-आचारांग (संपा. -श्रीचन्द सुराणा), ८/८/२२
-वही., ८/८/२५
-मूलाचार, ११९
१३. स्थानांग, २/४/४१४, भगवती आराधना, विजयोदया टीका, पृ. ५१, समाधिमरणोत्साह दीपक, ९१
१४. गोम्मटसार (कर्मकांड), ६०
१५. जीवितमरणासंसा मित्रानुरागसुखानुबंध निदान करणानि ॥
-तत्त्वार्थ सूत्र, ७/३२