________________ ग है वही अपनापन है। निर्वाण में तृष्णा का भाषा उसका यथार्थ चित्र प्रस्तुत करने में समर्थ नहीं क्षय होने से राग नहीं होता, राग नहीं होने से अपना है क्योंकि भाव किसी पक्ष को बताता है और पक्ष के पन (अत्ता) भी नहीं होता / बौद्ध निर्वाण की अभावा- लिए प्रतिपक्ष की स्वीकृति अनिवार्य है जबकि निर्वाण त्मकता का सही अर्थ इस अपनेपन का अभाव है वह तो पक्षातिक्रांत है। निषेधमूलक कथन की यह विशेषता तत्व अभाव नहीं है। वस्तुतः तत्व लक्षण की दृष्टि से होती है कि उसके लिए किसी प्रतिपक्ष की स्वीकृति निर्वाण एक भावात्मक अवस्था है। मात्र वासनात्मक को आवश्यक नहीं बढ़ा सकता / अतः अनिर्वचनीय का पर्यायों के अभाव के कारण ही वह अभाव कहा जाता निर्वचन करने में निषेधात्मक भाषा का प्रयोग ही अधिक है। अतः प्रोफेसर कीथ और नलिनाक्षदत्त की यह समीचीन है। इस निषेधात्मक विबेचनाशली ने निर्वाण मान्यता कि बौद्ध निर्वाण अभाव नहीं है, बौद्ध विचारणा की अभावात्मक कल्पना को अधिक प्रबल बनाया है। की मूल विचारदृष्टि के निकट ही है। यद्यपि बौद्ध वस्तुतः निर्वाण अनिर्वचनीय है। निर्वाण एक भावात्मक तथ्य है फिर भी भावात्मक ARE 152 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |