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________________ जैनदर्शन का कर्मविज्ञान (महासती डॉ. सुप्रभाकुमारी 'सुधा') जैनदर्शन में कर्म-विज्ञान के संबंध में पर्याप्त विश्लेषण किया जैसे कि संबंध यदि सादि है तो पहले गया है। जैनदर्शन में प्रतिपादित कर्म व्यवस्था का जैसा वैज्ञानिक कौन? आत्मा या कर्म या दोनों का रूप है, वैसा अन्य किसी भी भारतीय दर्शन में नहीं है । यद्यपि बौद्ध संबंध है? प्रथम तो पवित्र, निर्मल एवं वैदिक दर्शन में भी कर्म विज्ञान संबंधी विचार एवं विश्लेषण है आत्मा कर्म बन्ध नहीं करती तथा दूसरे किन्तु वह अत्यल्प है तथा उसका कोई विशिष्ट स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध में कर्म कर्ता के अभाव में बनते नहीं नहीं है। इसके विपरीत जैनदर्शन में कर्म विज्ञान का अति सूक्ष्म हैं। तीसरे में युगपत् जन्म लेने वाले सुव्यवस्थित एवं विस्तृत वर्णन है। यदि कर्म विज्ञान को जैनदर्शन कोई भी पदार्थ परस्पर कर्ता, कर्म नहीं साहित्य का हृदय कह दिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। बन सकते । अत: कर्म और आत्मा का जैनदर्शन की भाँति अन्य दर्शनों में भी कर्म को स्वीकार किया ___महासती (डॉ.) सुप्रभाकुमारी अनादि सम्बन्ध का सिद्धान्त अकाट्य गया है । वेदान्त दर्शन में माया, अविद्या और प्रकृति शब्दों का प्रयोग किया गया है। सांख्यदर्शन कर्म को ही प्रकृति कहता है। मीमांसा इसी विषय को स्पष्ट करने हेतु प्रसिद्ध विद्वान् हरिभद्रसूरि का दर्शन में 'अपूर्व' शब्द प्रयुक्त हुआ है। बौद्ध दर्शन में 'वासना और एक सुन्दर उदाहरण हैअविज्ञप्ति' शब्दों से अभिहित करते हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शन का वर्तमान समय का अनुभव होता है फिर भी वर्तमान अनादि है, में 'अदृष्ट' संस्कार और धर्माधर्म शब्द विशेष रूप में प्रचलित हैं। क्योंकि अतीत अनंत है। और कोई भी अतीत वर्तमान के बिना नहीं दैव, भाग्य, पुण्य पाप आदि ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका प्रयोग सामान्य बना। फिर भी वर्तमान का प्रवाह कब से चला, इस प्रश्न के प्रत्युत्तर रूप से, सभी दर्शनों में हुआ है। में अनादित्व ही अभिव्यक्त होता है। इसी भाँति आत्मा और कर्म का जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक संसारी जीव कर्मों से आबद्ध है। संबंध वैयक्तिक दृष्ट्या सादि होते हुए भी प्रवाह की दृष्टि से अनादि भारतवर्ष दर्शनों की जन्म स्थली है, यहाँ पर अनेक दर्शनों ने जन्म है, कर्म और आत्मा का सम्बन्ध स्वर्ण मृत्तिका की तरह अनादि सान्त लिया, उन दर्शनों में से एक लोकायत दर्शन के सिवाय सभी दर्शनों है। अग्नि प्रयोग से स्वर्ण-मिट्टी को पृथक्-पृथक् किया जा सकता. ने कर्म-विज्ञान को स्वीकार किया है। इस विराट-विश्व में विषमता, है, इसी प्रकार शुभ अनुष्ठानों से कर्म के अनादि सम्बन्ध को खण्डित विचित्रता और विविधता जो दिखाई दे रही है, उसका मूल कर्म ही कर आत्मा को शुद्ध किया जा सकता है। है। कर्म विज्ञान को समझने के लिए आत्मा का स्वरूप समझना जैन मान्यतानुसार जो जैसा करता है, वही उसका फल भोगता आवश्यक है। है। एक प्राणी दूसरे प्राणी के कर्म का अधिकारी नहीं हो सकता, जैसा जैन दर्शन में आत्मा निर्मल तत्त्व है, शुद्ध सोना है। अपने मूल कि कहा हैस्वरूप से सभी आत्माएँ शुद्ध हैं, एक स्वरूप हैं। अशद्ध कोई “स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा, नहीं है। जो अशुद्धता है, विरूपता है, भेद है, विभिन्नता है, वह सब _फलं तदीयं लभते शुभाशुभम् । विभाव से—पर्याय दृष्टि से है। जिस प्रकार जल में उष्णता बाहर के परेण दत्तं यदि लभ्यते स्फुटं, तेजस् पदार्थों के संयोग से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार आत्मा में भी स्वयं कृतं कर्म निर्रथकं तदा ॥" काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, सुख-दु:ख आदि विरूपता-विभिन्नता बाहर उपर्युक्त तथ्य को ही उत्तराध्ययन सूत्र में इस प्रकार स्पष्ट किया से आती है। अन्दर में तो प्रत्येक आत्मा में चैतन्य का प्रकाश जगमगा . रहा है। अप्पा कत्ता विकत्ताय, दुहाण य सुहाण य । वैदिक दर्शन में ब्रह्मत्त्व विशद्ध है। कर्म के साहचर्य से वह अप्पामित्तममित्तं च, दुष्पट्ठिय सुपुट्ठिओ ॥ मलिन होता है। किन्तु कर्म और आत्मा का संयोग कब हुआ? संसारी आत्मा सदैव कर्मयुक्त ही होता है। जब आत्मा कर्म से क्योंकि आदि मानने पर अनेक विसंगतियाँ उपस्थित हो जाती हैं। मुक्त हो जाता है, तब वह मुक्त आत्मा कहलाता है। कर्म आत्मा से मुक्त हो जाता है तब वह कर्म नहीं पुद्गल कहलाता है। कर्म के कर्तृत्व सचे सुद्धा हु सुद्धणया-द्रव्य संग्रह । और भोक्तृत्व का संबंध आत्मा और पुद्गल की सम्मिश्रण की अवस्था एगे आया - स्थानांग सू.१। में है। श्रीमद् जयंतसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथ/वाचना धर्म अहिंसामय सदा, धर्म सत्य का धाम । जयन्तसेन अनादि से, चलता आया नाम ॥ www.jainelibrary.org Jain Education Interational For Private & Personal Use Only
SR No.210661
Book TitleJain Darshan ka Karmvigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherZ_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf
Publication Year
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Karma
File Size2 MB
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