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(६३) स्थानांगसूत्र, पृष्ठ ३०९, ३१० (६४) भूतबली, पुष्पदन्त, षट्खण्डागम ५/५/५१
तथा जैनतर्कशास्त्र में अनुमानविचार, पृष्ठ २०६, २०७
(६५) न्यायावतार, कारिका - १७
यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ जैन दर्शन (९२) वही - ३/३७
(६६) न्यायावतार, पृ. ७०
(६७) प्रमाण-संग्रह, चतुर्थ प्रस्ताव, कारिका २९-३० (६८) प्रमेय-रत्नमाला, ३/५४, पृष्ठ १७८
(६९) वही, ३ / ५५
(७०) वही, ३/६७
(७१) वही, ३/७४
(७२) वही, ३/८२
(७३) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ ६८ (७४) प्रमाणमीमांसा १/२/१२ तथा
जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान - विचार, पृष्ठ २२० (७५) न्यायदीपिका, पृष्ठ ९५-९९
(७६) जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान - विचार, पृष्ठ २२०
(७७) न्यायसूत्र १ / २ /२५
(७८) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ २८०
(७९) न्यायावतार, अनु. विजयमूर्ति शास्त्राचार्य, पृष्ठ ७१
(८०) प्रमाणमीमांसा २/१/१३
(८१) न्यायसूत्र - १/१/२५, १/१/३६, ३७
(८२) न्यायावतार - १८
(८३) वही - १९
(८४) परीक्षामुख - १३ / ४७
(८५) प्रमाणमीमांसा - १/२/२०-२३
(८६) न्याय - दीपिका - ३८१
(८७) न्यायसूत्र - १/१/३८ (८८) जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान, पृ. ५५, १८२ (८९) प्र.स., का. ५१, अकलंक ग्रन्थ, पृष्ठ १११ (९०) परीक्षामुख - ३ / ५०
(९१) प्रमेयकमलमार्तण्ड - ३/५०, पृष्ठ ३७७
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(९३) परीक्षामुख - ३/४०
(९४) स्याद्वादरत्नाकर, पृष्ठ ६३
(९५) न्यायसूत्र - १ / १/३९
(९६) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ २८५
(९७) जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान विचार, पृष्ठ १८५
(९८) परीक्षामुख - ३ / ५१
(९९) प्रमाणनयतत्त्वालोक ३/५१-५२
(१००) प्रमाणमीमांसा - २ /१/१५
(१०१) प्रमेयकमलमार्तण्ड - ३ / ५१
(१०२) प्रमेयरत्नमाला - ३/४७
(१०३) जैन- तर्कशास्त्र में अनुमान - विचार, पृष्ठ १८६ (१०४) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ ७५ (१०५) वैशेषिकसूत्र - ३/१/१४-१५ (१०६) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ ८७ (१०७) सांख्यसूत्र - ५ / २९
(१०८) योगभाष्य, पृष्ठ ११
(१०९) वेदान्तपरिभाषा, पृष्ठ १७२
(११०) कार्यस्य स्वभावस्य च लिङ्गस्थाविनाभावः साध्यधर्मविना न भाव इत्यर्थः, भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ २२०
(१११) परीक्षामुख - ३/१२, १३
(११२) जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान, पृष्ठ १५१
(११३) जैन - तर्कशास्त्र में अनुमान, पृष्ठ १४८ (११४) वही, पृष्ठ १४९
( ११५) प्रशस्तपादभाष्य, पृष्ठ १०२ (११६) न्यायसूत्र १/२/५
( ११७) प्रशस्तपादभाष्य, पृष्ठ ३०४ (११८) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ २२९
(११९) सप्तपदार्थी - ३४
(१२०) सांख्यकारिका ५ (१२१) अनुयोगद्वारसूत्र
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