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जैन-तर्क में अनुमान
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिन्हा,
वाराणसी.....
ज्ञान के प्रमाणों में प्रत्यक्ष के बाद अनुमान का ही है-ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना (To go From Known I, स्थान है। परोक्ष प्रमाणों में यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता Unknown)| अनुमान को पाश्चात्य तर्कशास्त्र में ऐसा महा। है। भारतीय दर्शन में मात्र चार्वाक को छोड़कर अन्य सभी दिया गया है कि पूरे तर्कशास्त्र पर यही छाया हुआ है। शाखाओं ने इसे मान्यता दी है। मुनि नथमलजी के शब्दों में--
अनुमान के संबंध में एक समस्या उठ खड़ी होती है "अनुमान तर्क का कार्य है। तर्क द्वारा निश्चित नियम के आधार
प्रत्यक्ष के अतिरिक्त स्मृति, प्रत्यभिज्ञा आदि जितने भी ज्ञान, पर यह उत्पन्न होता है।.... तर्कशास्त्र के बीज का विकास
वे सभी प्रत्यक्ष के बाद ही प्राप्त होते हैं, फिर भी इन्हें भिन्न-भिः। अनुमानरूपी कल्पतरु के रूप में होता है।
नामों से संबोधित किया जाता है। इन्हें भी अनुमान की मंज।। 'अनु' और 'मान' के मिलने से अनुमान शब्द बनता है। क्यों नहीं दी जाती है? आखिर वह कौन सा पूर्व ज्ञान है जिस। 'अनु' का अर्थ होता है ‘पश्चात्', 'बाद' तथा 'मान' का अर्थ होता कारण कुछ ज्ञान तो अनुमान की कोटि में रखे जाते हैं और है 'ज्ञान'। इस प्रकार किसी पूर्व ज्ञान के बाद होने वाले ज्ञान को अन्य के लिए विभिन्न नाम प्रस्तुत किए जाते हैं। वात्स्यायन । अनुमान कहते हैं। महर्षि गौतम ने इसीलिए कहा है--'तत्पूर्वकम् अनुमान पर प्रकाश डालते हुए कहा है - मितेन लिंगे। तत्' से तात्पर्य है-प्रत्यक्ष ज्ञान। जो ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान के बाद लिंगिनोऽर्थस्य पश्चान्मानमनुमान्। अर्थात् प्रत्यक्ष से प्राप्त लिंग उत्पन्न हो उसे अनुमान कहते हैं।
और लिंगी के ज्ञान के बाद जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे अनुमा। पहाड़ पर अग्नि है
कहते हैं। इससे इतनी जानकारी होती है कि लिंग-दर्शन और
फिर लिंगी को समझना ही वह ज्ञान है जिससे अनुमान होता।' क्योंकि पहाड़ पर धूम है
वह ऐसा पूर्व ज्ञान है जिसके कारण अनुमान किया जाता है। यह जहाँ-जहाँ धूम है, वहाँ-वहाँ अग्नि है
बात जैनाचार्य वादिराज के द्वारा अनुमान प्रतिपादन से स्मर अमुक पहाड़ पर धूम है
होती है । इसलिए उस पहाड़ पर अग्नि है।
'अनु व्याप्तिनिर्णयस्य पश्चाद्भाविमानमनुमानम्।' धूम के साथ अग्नि का प्रत्यक्ष ज्ञान पहले से प्राप्त है और
इसी के आधार पर डा. कोठिया ने कहा है-- उसी आधार पर धूम को पहाड़ पर देखकर यह अनुमान किया जा रहा है कि वहाँ अग्नि भी है। अनुमान शब्द की यह व्युत्पत्ति दो
यद्यपि पारम्पर्य से उन्हें (लिंगदर्शन, व्याप्तिस्मरण तथा पक्षधा। रूपा म मानी जाती है--(१) अनुमिति: अनमान तथा (२) अनमीयते ज्ञान को) भी अनुमान का जनक माना जा सकता है पर अनमानी
अव्यवहित पूर्ववर्ती ज्ञान व्याप्तिनिश्चय ही है, क्योंकि उन्हें अव्यवहित अनेन अति इनुमानम्। प्रथम प्रक्रिया में अनुमान शब्द भाव रूप में
उत्तरकाल में नियम से अनुमान आत्मलाभ करता है। अनुमिति प्रमाण के लिए आता है तथा द्वितीय प्रक्रिया में वह करण रूप में होता है और अनुमान प्रमाण के लिए आता है।
जैन परंपरा में प्रतिपादित अनुमान को अच्छी तरह समझ।
के लिए अन्य परंपराओं द्वारा विवेचित अनुमान को समझना ॥ अंग्रेजी में अनुमान के लिए इन्फेरेन्स (Inference) शब्द उचित जान पडता है. क्योंकि इससे विषय को स्पष्टता प्राप्त आता है। इन्फर (Infer) से इन्फेरेन्स शब्द बनता है। इन्फर का होती है. तलनात्मक दृष्टि से समानता-असमानता का बोध होना अर्थ होता है-अनुमान करना, तर्क करना, निर्णय करना, निर्णय है। अत: पहले भारतीय दर्शन की जैनेतर शाखाओं की अनुमान पर आना आदि। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में अनुमान से समझा जाता की परिभाषा संबंधी मान्यताओं को देखें--
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