________________
४१०
+++
Jain Education International
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
++++++
शकुनविचार (दोहा) - अपभ्रंश में। इसमें किसी पशु के दायें या बायें होकर निकलने के शुभाशुभ फल
दिये हैं ।
सामुद्रिक-ग्रन्थ
अंगविज्जा ( अंगविद्या ) ( ३ री ४थी शती) - अज्ञातकर्ता के रचना है। पिंडनियुक्ति टीका आदि प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख है। इसमें शरीर के विभिन्न लक्षणों और चेष्टाओं के द्वारा शुभाशुभ फलों का विचार किया गया है । इसके अनुसार अग, स्वर, लक्षण, व्यंजन, स्वप्न, छींक, भौम और अन्तरिक्ष-ये आठ महानिमित्त के आधार हैं। इनके द्वारा भूत-भविष्य का ज्ञान होता है। इसमें ६० अध्याय हैं । इसकी भाषा गद्य-पद्य मिश्रित प्राकृत है ।
करलक्खण ( करलक्षण ) — अज्ञातकर्तृक । इसे सामुद्रिक शास्त्र भी कहते हैं । इसमें हस्तरेखाओं का महत्त्व बताया है। मनुष्य की परीक्षा कर 'व्रत' देने का स्पष्टीकरण मिलता है ।
दुर्लभराज (११वीं शती) – यह गुजराज के सोलंकी राजा भीमदेव के मंत्री थे । इन्होंने ४ ग्रन्थ लिखे हैं - १. गजप्रबंध (गजपरीक्षा),
२. तुरंग प्रबंध,
३. पुरुष - स्त्री लक्षण (समुद्रतिलक),
४. शकुनशास्त्र ।
समुद्रतिलक - इसमें ५ अधिकार हैं। इसमें पुरुष व स्त्री के लक्षणों का वर्णन है। इस ग्रन्थ को दुर्लभराज के पुत्र जगदेव ने पूरा किया था।
सामुद्रिक - अज्ञातकर्तृ । संस्कृत में । हस्तरेखाओं और शारीरिक संरचना के आधार पर शुभाशुभ फल बताये है। सामुद्रिकशास्त्र - अज्ञातकक इसमें ३ अध्याय हैं। पहले में हस्तरेखाओं का दूसरे में शरीरावयवों का और तीसरे में स्त्री- लक्षणों का वर्णन है।
अंगविद्याशास्त्र - अज्ञातकक इसमें ४४ श्लोकों में अशुभस्वप्नदर्शन, संज्ञक अंग, स्त्री-संज्ञक जंग आदि का वर्णन है ।
रामचन्द्र (१६६५ ई०) - यह खरतरगच्छीय जिनसिंहरि के शिष्य पद्मकीर्ति के शिष्य पचरंग के शिष्य थे। यह वैद्यक और ज्योतिष के विद्वान् थे । इन्होंने मेहरा (पंजाब) में सं० १७२२ में सामुद्रिक भाषा नामक पद्यमय भाषा ग्रन्थ लिखा है । इनके वैद्यक पर वैद्यविनोद (सं० १७२६, मरोट) और रामविनोद (सं० १७२०, सक्कीनगर ) ग्रन्थ हैं ।
नगराज (१८वीं शती) - यह खरतरगच्छीय जनयति थे । इन्होंने अजयराज के लिए सामुद्रिक भाषा की १८८ पद्यों में रचना की, इसमें स्त्री व पुरुष के शुभाशुभ लक्षण बताये हैं ।
लक्षण -शास्त्र पर निम्न ग्रन्थ भी हैंलक्षणमाला - आचार्य जिनभद्रसूरिकृत ।
लक्षणसंग्रह — रत्नशेखरसूरिकृत (वि० १६वीं शती) लक्ष्यलक्षण विचार - हर्ष कीर्तिसूरि कृत ( वि० १७वीं शती)
लक्षण - अज्ञातक।
लक्षण-अवचूरि- अज्ञात कर्तृ । अज्ञातकर्तृक
लक्षणपंक्तिकथा - दिगम्बराचार्य श्रुतसागरसूरिकृत ।
प्रश्नशास्त्र (चूड़ामणि)
दुविनीति (५वीं शती) यह द्रविड़ देश का राजा था। इसने प्राकृत गद्य में विस्तृत चूड़ामणि प्रन्थ की रचना की है। यह अप्राप्त है। इससे तीनों कालों का ज्ञान होता है ।
भद्रबाहु ( ६ठी शती) - भद्रबाहु स्वामी के नाम से प्राकृत में अहंच्चूडामणिसार नामक ग्रन्थ मिलता है । इसे चूडामणिसार या ज्ञानदीपक भी कहते हैं। इसमें वर्णों का विभाजनकर उनकी जायें दी गयी है। प्रश्नों के अक्षरों के उन वर्गों के आधार पर जय-पराजय, लाभाभाभ, जीवन-मरण फलों का ज्ञान होता है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.