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जैन ज्योतिष : प्रगति और परम्परा
गुणाकरसूरि ( १५वीं शती) - इनका जातक सम्बन्धी होरामकरन्द ग्रन्थ मिलता है। इसमें ३१ अध्याय हैं । रत्नशेखरसूरि (१५वीं शती) — इन्होंने प्राकृत में दिनसुदि ( दिनशुद्धि) नामक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा है । मेघरल (१४९३ ई०) यह वडगच्छीय विनयसुन्दरसूरि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १५५० के लगभग उस्तर लावयंत्र नामक ज्योतिषन्थ लिखा है।
इस पर संस्कृत में स्वोपश टीका है।
मुनि भक्तिलाम (१५१४ ६० ) – यह खरतरगच्छीय मुनिरत्नचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने वाराहमिहिर के 'लघुजातक' पर सं० १५७१ (१५१४ ई०) में विक्रमपुर (बीकानेर) में टीका लिखी है ।
साघुराज (१६वीं शती) - यह बरतरगच्छीय साधु थे। इन्होंने ज्योतिषचतुशिका टीका लिखी है।
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मुनि मतिसागर (१६वीं शती) — इन्होंने सं० १६०२ (१५४५ ई० ) में वराहमिहिर 'लघुजातक' पर भाषा में 'वचन' लिखी है । इन्होंने इस पर वार्तिक भी लिखा है ।
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हीरकलश (१५६४ ई० --- १६०० ई० ) – यह खतरगच्छीय हर्षप्रभ के शिष्य थे। मारवाड़ क्षेत्र (जोधपुरबीकानेर) के निवासी थे, ज्योतिष पर इनके दो ग्रन्थ हैं
(१) जोइससार (ज्योतिषसार ) यह प्राकृत में है। रचना सं० १६२१ (१५६४ ६०) नागौर ।
(२) हीरकलस जोइसहीर रचना सं० १६५७ (१६०० ई०) राजस्थानी में पदों में लिखा गया है। कृपाविजय (१५७८ ई० ) – यह तपागच्छीय मुनि थे। इन्होंने शक सं० १५०० में मोढ़ दिनकर कृत 'चन्द्रार्की' पर टीका लिखी है ।
विनयकुशल (१५६५ ई० ) – यह आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य थे। प्राकृत में खगोल- ज्योतिष सम्बन्धी मंडलप्रकरण ग्रन्थ लिखा है। इस पर स्वयं लिखी है।
मुनिसुन्दर (१५६८ ई० ) - यह रुद्रपल्लीगच्छीय जिनसुन्दरसूरि के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६५५ (१५६८ ई० ) ज्योतिष गणित पर करणराज या करणर राजगणित लिखा है। इसमें १० अध्याय हैं ।
इन्होंने सं० १६५२ (१५९५ ई०) में लेखक ने सं० १६५२ में स्वोपज्ञटीका
ही (१६०३ ई० ) - यह नागोरी तपगच्छीय आचार्य चन्द्रकीर्तिरि के शिष्य थे। राजस्थान के - निवासी थे । व्याकरण, ज्योतिष, वैद्यक, छन्द और कोष के अच्छे विद्वान् थे। ज्योतिष पर इनके तीन ग्रन्थ हैं
(१) ज्योतिस्सारसंग्रह ( ज्योतिषसारोद्धार ) – रचना सं० १६६० = १६०३ ई० (२) जन्मपत्रीपद्धति (३) विवाहपटल-बालावबोध
जयरत्नगणि (१६०५ ई० ) – यह पूर्णिमाक्ष के आचार्य भावरत्न के शिष्य थे। इन्होंने त्र्यंबावती (खंभात गुजरात) में सं० १६६२ (१६०५ ई०) में 'ज्वरपराजय' नामक वैद्यक ग्रन्थ तथा ज्योतिष पर दोषरत्नावली य : ज्ञानरत्नावली ग्रन्थ की रचना की थी ।
श्रीसारोपाध्याय (१७वीं शती) – इनका ज्योतिष पर जन्म स्त्रीविचार नामक ग्रन्थ मिलता है।
समयसुन्दर ( १६२५ ई० ) - उपाध्याय समय सुन्दर ने लूणकरणसर (बीकानेर) में अपने प्रशिष्य वाचक अपकीति के सहयोग से ० १६०५ (१६२० ई०) में ज्योतिष पर दीक्षाप्रतिष्ठाद्धि प्रन्थ लिखा है इसमें १२ अध्याय हैं ।
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कीर्तिवर्द्धन या केस (१७वीं शती) - यह आधपक्षीय मुनि दयारत्न के शिष्य थे। इन्होंने मेड़ता में जन्मप्रकाशिका ज्योतिष की रचना की है ।
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लाभोदय (१७वीं शती) यह उपाध्याय भुवनकीति के शिष्य थे। इनका ज्योतिष पर बलिरामानन्दसार संग्रह ग्रन्थ है। यह संग्रहकृति है।
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