SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ statements. To the extent to which they have not been resolved, it is very difficult to say in advance anything pertaining to the role of the Jaina logical analysis for formal studies of conceptual framework as also of its implications for social sciencesespesially action theory and analysis of conception of action. Earlier, we start realising and attempting to answer problems of this kind the better; otherwise there seems to be no way of getting out of the cobweb of confusions, लेखसार तर्कशास्त्र सम्बन्धी जैन धारणायें : कुछ विचार ___ डा० एम० पी० मराठे, पूना विश्वविद्यालय तर्कशास्त्रसे सम्बन्धित जैन धारणाओंपर विचार करनेपर दो महत्वपूर्ण बातोंपर ध्यान जाता है : जैन धारणाओं एवं विधाओंका तार्किक विश्लेषण और कर्मवादके समान समाज-विज्ञानोंकी मौलिकताके विषयमें अनुसन्धान / इन्हीं विषयोंसे सम्बन्धित कुछ विचार इस निबन्धमें दिये गये हैं / ___ जैन विचारधाराका अध्ययन करनेपर अनेक समस्याओंपर ध्यान जाता है। सर्वप्रथम तथ्य तो यह है कि यह विचारधारा दर्शन और धर्मके रूपमें द्विध्रुवी है। इस द्वि-ध्रुवताका क्षेत्र क्या है, इसका अध्ययन आवश्यक है जैनदर्शन विश्वको ध्रुवपर परिवर्तनशील मानता है। क्या यह धारणा विश्वकी रचनासे सम्बन्धित है या विश्वकी क्रियात्मकतासे सम्बन्धित है ? जैन मान्यता जीव और अजीव तत्वोंको स्वीकार करती है / क्या ये दोनों तत्व व्यावहारिक दृष्टिसे माने गये हैं और क्या ये दोनों ही सन्तत और स्वतन्त्र द्रव्य हैं ? इन मान्यताओंका आधार क्या है ? इनकी वास्तविकताका आधार क्या है ? अनेकान्त बादके रूपमें दृष्टियोंकी विविधताकी स्वीकृति कितनी तर्कसंगत है ? ये दृष्टिकोण एक-दूसरेसे कितनी सीमातक संगत हो सकते हैं ? अहिंसाका सिद्धान्त जैनदर्शनका मूल आधार है। इस विषयमें यह जानना आवश्यक है कि इस आदर्शकी धारणा क्या आदर्शके लिये स्वीकृत की गई थी या कर्म-सिद्धान्तकी प्रतिष्ठाके लिये ? स्याद्वादकी मान्यता विभिन्न तथ्योंको संगत एवं सहावस्थानके लिये स्वीकृत की गई है। पर क्या ये तथ्य तार्किक दृष्टिसे भी सम्भव हैं ? इसी प्रकार, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद और नयवादको तत्वविद्याके लिये आवश्यक अंग बताया जाता है / इसपर गम्भीरता पूर्वक विचार करनेकी आवश्यकता है। लेखकने इन्हीं कुछ प्रश्नोंको लेकर अपने विचार प्रकट किये हैं जो मननीय हैं / लेखकने अपने तीक्ष्ण चिन्तनके आधारपर जैन तर्कशास्त्रकी कुछ विसंगतियोंपर प्रकाश डाला है जिनका निराकरण और संशोधन गहन अध्ययनके बिना सम्भव नहीं है / -503 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.210613
Book TitleJain Conception of Logic Some Comments
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM P Marathe
PublisherZ_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Publication Year1980
Total Pages6
LanguageEnglish
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size626 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy