________________ 646 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रस्थ: पंचम खण्ड (8) मैनासुन्दरी अपनी व्रत-साधना के बल पर अपने पति को कुष्ठरोग से मुक्त करती है। (श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी की कथा, पुण्याथव कथाकोश) (8) सती जसमा ओडण, सती ऋषिदत्ता एवं लीलापत-झणकारा, अपने पतिव्रता के भव्यरूप में विश्ववन्दनीय बनती हैं। (देखिए-अध्यात्मयोगी-श्रीपुष्करमुनि-जैन कथाएँ भाग 20 आदि)। संघर्षों के द्वन्द्वों में उन्मत्त शीर्षा नारी सर्वथा वरेण्य है, वह पूजनीय है, अनुकरणीया है एवं आलोकित प्रतिभा की धनी है / शक्तिसंगम तंत्र ताराखण्ड में प्रदत्त यह नारी प्रशस्ति शाश्वत अर्थवती है न नारीसदृशो योगो, न भूतं न भविष्यति // न नारीसदृशो मंत्रः, न नारीसदृशं तपः / न नारीसदृशं वित्तं, न भूतो न भविष्यति / 0000 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org