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(१) आक्षेपिणी (२) विक्षेपणी (३) संवेगिनी (४) निर्वेदिनी - धर्मकथा अभीप्सा मानव में आदिकाल से रही। है। वेद, उपनिषद् महाभारत के ये चार भेद बताए हैं।
आगम और त्रिपिटक की हजारों लाखों कहानियाँ इस बात की साक्षी औपदेशिक कथा संग्रह
हैं कि मानव कितने चाव से कहानी को कहता व सुनता आया है चरणकरणानुयोग विषयक साहित्य धर्मोपदेश या औपदेशिक
और उसके माध्यम से धर्म और दर्शन, नीति और सदाचार, प्रकरणों के रूप में उद्भूत एवं विकसित हुआ है। धर्मोपदेश में संयम,
बौद्धिक-चतुराई और प्रबल पराक्रम, परिवार और समाज सम्बन्धी शील, तप, त्याग और वैराग्य आदि भावनाओं को प्रमुखता दी गई
गहन समस्याओं को सुन्दर रीति से सुलझाता रहा है। है। जैन साधु प्रवचनारम्भ में कुछ शब्दों या श्लोकों में अपनी धर्मदेशना
काश्रमण भगवान महावीर जहाँ धर्म-दर्शन व अध्यात्म के गम्भीर का प्रसंग बता देता है और फिर एक लम्बीसी मनोरंजक कहानी कहने प्ररूपक थे, वहाँ एक सफल कथाकार भी थे। वे अपने प्रवचनों में लगता है जिसमें अनेक रोमांचक घटनाएँ होती है और अनेक बार जहाँ दार्शनिक विषयों की गम्भीर चर्चा-वार्ता करते थे वहाँ लघु रूपकों कथा के भीतर कथा निकलती जाती है। इस प्रकार ये औपदेशिक एवं कथाओं का भी प्रयोग करते थे। प्राचीन निर्देशिका से परिज्ञात प्रकरण अत्यन्त महनीय कथा साहित्य से आपूर्ण हैं जिसमें उपन्यास, होता है कि नायाधम्म कहा में किसी समय भगवान महावीर द्वारा दृष्टान्तकथा, प्राणिनीतिकथा, पुराण कथा, परिकथा नानाविध कौतुक कथित हजारों रूपक व कथाओं का संकलन था। और अद्भुत कथाएँ उपलब्ध होती हैं। जैन मनीषियों ने इस प्रकार स आर्यरक्षित ने अनुयोगों के आधार पर आगमों को चार भागों के विशाल औपदेशिक कथा साहित्य का सृजन किया है। धर्मोपदेश में विभक्त किया था। उसमें धर्मकथानुयोग भी एक विभाग था। प्रकरण के अन्तर्गत जो उपदेश माला, उपदेश प्रकरण, उपदेश दिगम्बर साहित्य में धर्मकथानुयोग को ही प्रथमानुयोग कहा है। रसायन, उपदेश चिन्तामणि, उपदेश कन्दली, उपदेशतरंगिणी, प्रथमानयोग में क्या-क्या वर्णन है,उसका भी उन्होंने निर्देश किया भावनासागर आदि अर्धशतक रचनाओं का विवरण 'जैन साहित्य के बृहद् इतिहास' चतुर्थमाग में संकलित है। दिगम्बर साहित्य में यद्यपि
बताया जा चुका है कि तीर्थंकर महावीर एक उच्च कोटिके ऐसे औपदेशिक प्रकरणों की कमी है जिनपर कथा-साहित्य रचा गया
सफल कथाकार भी थे। उनके द्वारा कही गई कथाएँ आज भी हो फिर भी कुन्दकुन्द के षटप्राभृत की टीका में, वट्टकेर के 'मूलाचार'
आगम-साहित्य में उपलब्ध होती हैं। कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जो मे, शिवार्य की भगवती आराधना तथा रत्नकरण्डश्रावकाचारादि की
भिन्न नामों से या रूपान्तर से वैदिक व बौद्ध साहित्य में ही उपलब्ध टीकाओं में औपदेशिक कथाओं के संग्रह सुलभ होते हैं।
नहीं होती अपितु विदेशी साहित्य में भी मिलती हैं। उदाहरणार्थ - कतिपय कथाकोशों का विवरण
ज्ञाताधर्म कथा की ७ वीं चावल के पाँच दाने वाली कथा कुछ रूपान्तर औपदेशिक कथा साहित्य के अनुकरण पर अनेक कथाकोशों के साथ बौद्धों के सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु तथा बाइबिल में भी का सृजन हुआ है। इनमें कतिपय कथाकोशों का संक्षिप्त नाम देना प्राप्त होती है। इसी प्रकार जिनपाल और जिनरक्षित की कहानी यहाँ समीचीन होगा।
वलाहस्सजातकर व दिव्यावदान में नामों के हेर फेर के साथ कही (१) बृहत्कथा कोष (२) आराधना सत्कथा प्रबंध (३) कथाकोष गई है। उत्तराध्ययन के बारह वें अध्ययन हरि केशबल की कथावस्तु (४) कथा कोष प्रकरण (५) कथारत्न कोश (६) कथामणि कोश मातंग जातकच में मिलती है। तेरहवें अध्ययन चित्र संभूत की (७) कथा महोदधि (८) भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति (९) कल्पमंजरी कथावस्तु चित्तसंभूत जातक' में प्राप्तहोती है। चौदहवें अध्ययन (१०) ब्रतकथा कोश (११) कथावली (१२) कथा समास इषुकार की कथा हत्थिपाल जातक व महाभारत के शांतिपर्व में (१३) कथार्णव (१४) कथा रत्नाकर (१५) कथानक कोश उपलब्ध होती है। उत्तराध्ययन के नौवें अध्ययन 'नमिप्रवज्या' की (१६) कथा संग्रह (१७) पुण्याश्रव कथा कोश (१८) कुमारपाल आंशिक तुलना महाजन जातक' तथा महाभारत के शान्तिपर्व से प्रतिबंध (१९) धर्माभ्युदय (२०) सम्यक्त्व कौमुदी (२१) धर्मकल्पद्रुम होती है। इस प्रकार महावीर के कथा साहित्य का अनुशीलन परिशीलन (२२) दान प्रकाश (२३) उपदेश प्रासाद (२४) धर्मकथा। करने से स्पष्ट परिज्ञात होता है कि ये कथा कहानियाँ आदिकाल से प्राकृत जैन कथा साहित्य १६
ही एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय में एक देश से दूसरे देश में कथा-कहानी साहित्य की एक प्रमुख विधा है जो सबसे अधिक
यात्रा करती रही हैं। कहानियों की यह विश्वयात्रा उनके शाश्वत और लोकप्रिय और मनमोहक है। कला के क्षेत्र में कहानी से बढ़कर सुन्दर रूप की साक्षी दे रही है; जिसपर सदा ही जनमानस मुग्ध होता अभिव्यक्ति का इतना सुन्दर एवं सरस साधन अन्य नहीं है। कहानी रहा है। विश्व की सर्वोत्कृष्ट काव्य की जननी है और संसार का सर्वश्रेष्ठ मूल आगम साहित्य में कथा-साहित्य का वर्गीकरण अर्थकथा, सरस साहित्य है। कहानी के प्रति मानव का सहज व स्वाभाविक धर्मकथा और कामकथा के रूप में किया गया है। परवर्ती साहित्य आकर्षण है। फलतया जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं जिसमें में विषय, पात्र, शैली और भाषा की दृष्टि से भेद-प्रभेद किए गए कहानी की मधुरिमा अभिव्यञ्जित न हुई हो। सच तो यह है कि हैं। आचार्य हरिभद्र ने विषय की दृष्टि से अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा मानव का जीवन भी एक कहानी है जिसका प्रारम्भ जन्म के साथ और मिश्रकथा ये चार भेद किए हैं। विद्यादि द्वारा अर्थ प्राप्त करने और मृत्यु के साथ अवसान होता है। कहानी कहने और सुनने की की जो कथा है वह अर्थकथा है जिस श्रृंगारपूर्ण वर्णन को श्रवणकर
श्रीमद् जयंतसेनसरि अभिनंदन ग्रंथावाचना
अज्ञानी बन कर फंसा, किया बहुत संभोग । जयन्तसेन बिना दमन, उदित हो कई रोग ॥
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