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जैनकथा - साहित्य : एक चिन्तन
(उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज)
विश्व के सर्वोत्कृष्ट काव्य की जननी कहानी है। कथा के प्रति मानव का आरम्भ से ही सहज आकर्षण रहा है। फलतः जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें कहानी की मधुरिमा अभिव्यञ्जत न हुई हो। सत्य तो यह है कि मानव अपने जन्म के साथ साथ जो लाया है वह अपनी जिन्दगी की कहानी कहते हुए समाप्त करता आया है। कहने और सुनने की उत्कण्ठा सार्वभौम है। कथा के आकर्षण को सबल बनाने के लिए प्राकृतिक सुषमा कहानी साहित्य | में एक विशिष्ट उपकरण के रूप में स्वीकृत है। हमारे प्राचीनतम साहित्य में कथा के तत्त्व जीवित हैं। ऋग्वेद् में जो संसार का उपलब्ध सर्वप्रथम ग्रंथ है, स्तुतियों के रूप में कहानी के मूलतत्त्व पाये जाते हैं। अप्पला आमेयी के आदर्श नारी चरित्र ऋग्वेद् में आए हैं। ब्राह्मणग्रंथों में ही हमें अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। शतपथ ब्राह्मण की पुरुरवा और उर्वशी की कथा किस को ज्ञात नहीं है? ये कहानियाँ उपनिषदकाल के पूर्व की हैं। उपनिषद् के समय में इनका अभिनवतमरूप देखने को मिलता है। गार्गी याज्ञवल्क्य संवाद तथा सत्यकाम जाबाल आदि कथाएँ उपनिषद् काल की विख्यात कथाएँ हैं। छान्दोग्य उपनिषद् में जनश्रुति के पुत्र राजा जानश्रुति की कथा का चित्रण मिलता है। पुराणों में कहानी के खुले रूप के अभिदर्शन होते हैं । पुराण वेदाध्ययन की कुञ्जी हैं। वेदों की मूलभूत कहानियाँ पुराणों की कथाओं में पल्लवित - प्रस्फुटित हुई हैं। पुराण कथाओं का आगार है। रामायण और महाभारत में भी बहुत से प्राख्यान संश्लिष्ट हैं। रामायण की अपेक्षा महाभारत में यह वृत्ति अधिक है। एक प्रकार से देखा जाय तो महाभारत कहानियों का कोष है। इस प्रकार कथा साहित्य की एक प्राचीन परम्परा है जिसमें वसुदेव हिंदी पंचतंत्र, हितोपदेश, बैताल पंचविंशतिका, सिंहासन द्वात्रिंशिका, शुकसनति, बृहत्कथामंजरी, कथासरित्सागर, आख्यानयामिनी, जातक कथाएँ आदि विशेषतः उल्लेख्य हैं।
कथा साहित्य-सरिता की बहुमुखी धारा के वेग को क्षिप्रगामी और प्रवहमान बनाने में जैन कथाओं का योगदान महनीय है। जैन कथा उस पुनीत स्रोतस्विनी के समान है जो कई युगों से अपने मधुर सलिल से जाने-अनजाने धरती के अनन्तकणों को सिंचित कर रही है। इस कथा सरिता में सर्वत्र मानवता की ललित लोल लहरें शैली- शिल्प के मनोरम सामंजस्य से परिवेष्ठित है। यह इतनी विशद है कि इसके 'अथ' तथा 'इति' की परिकल्पना करना कठिन है। इसके 'जीवन' में आदर्शों के प्रति निष्ठा है और चिरपोषित संशयों एवं अविश्वासों के प्रति कभी मौन और कभी सन्तप्त विद्रोह है। इसके दो मनोरम तट हैं - भाव एवं कर्म। इन दोनों भव्य किनारों के सहारे इस प्रवाहिनी ने लोक जीवन की दूरी को नापा है, हर्ष-विषाद एवं
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श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज
संकीर्णता उदारता के अपरिमित मन्तव्यों को पहिचाना है, विरामहीन यात्रा के कटु अनुभवों को परखा है एवं दो विभिन्न युगों के अलगाव को भी समझा है। इस जैन-कथा-तटिनी की गाथा बड़ी सुहावनी है। " वस्तुतः जैन कथाओं की व्यापकता में विश्व की विभिन्न कथा वार्ताओं को प्रश्रय मिला है। फलतः जगत की कहानियों में जैन कथाओं की साँसें किसी न किसी रूप में संचरित होती रहती हैं। एक ओर इनमें विरक्ति और संचय सदाचार की प्रतिध्वनियाँ हैं तो दूसरी ओर जीवन के शाश्वत सुख स्वर-भी गहरी आस्था को लिए हुए यहाँ मुखर हैं। संस्कृति, जितनी अधिक कथाओं के अन्तराल में सन्निहित है, उतनी अधिक साहित्य की अन्य विधाओं में परिलक्षित नहीं हो पाई है। मानव जीवन के जिस सार्वजनिक सत्य की माटी में संस्कृति के चिरंतन तत्त्वों की प्रतिष्ठा मानी गई है उसका प्रथम उन्मेष इन्ही जैन कथाओं में सुलभ है। इन कहानियों की गरिमा एवं उपयोगिता को न काल-भेद क्षीणकर सके हैं और न व्यक्तिगत हठीला गुमान धूमिल बना सका है। प्रत्युत काल खंडों की प्राचीनता ने इन कथाओं को अधिक सफल बनाया है एवं वैयक्तिक अवरोधों ने उनकी व्यापकता को विशेषतः अपरिहार्य प्रमाणित कर दिया है।
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जैन परम्परा को मूल आगमों में द्वादशांगी प्रधान और प्रख्यात है। उनमें नायाधम्मकहा, उवासगदसाओ, अन्तगडद्सा अनुत्तरोपपातिक, तथा विपाक सूत्र आदि समग्र रूप में कथात्मक हैं। इनके अतिरिक्त उत्तराध्ययन सूयगडांग, भगवती ठाणांग आदि में भी अनेक रूपक एवं कथाएँ है जो अतीव भावपूर्ण एवं प्रभावना पूर्ण हैं। तरंगवती, समराच्चकहा तथा कुवलयमाला आदि अनेकानेक स्वतंत्र कथाग्रंथ विश्व की सर्वोत्तम कथा विभूति हैं। इस साहित्य का सविधि अध्ययन- अनुशीलन किया जाए तो अनेक अभिनव एवं तथ्यपूर्ण उद्भावनाएँ तथा स्रोत दृष्टिपथ पर दृष्टिगत होंगे। जिससे जैन कथा वाङ्मय की प्राचीनता वैदिक कथाओं से भी अधिक प्राचीनतम परिलक्षित होगी। जैनों का पुरातन साहित्य तो कथाओं से पूर्णतः परिवेष्ठित है। प्रसिद्ध शोध मनीषी डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल 'लोककथाएँ और उनका संग्रहकार्य' शीर्षक निबन्ध में लिखते हैं- "बौद्धों ने प्राचीन जातकों की शैली के अतिरिक्त अवदान नामक नये कथा-साहित्य की रचना की जिसके कई संग्रह (अवदानशतक दिव्यावदान आदि) उपलब्ध हैं। किन्तु इस क्षेत्र में जैसा निर्माण जैन लेखकों ने किया वह विस्तार,
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विषय वासना दिल बसी, काम भोग की दौड़ ।
जयन्तसेन पतंगवत, आखिर जीवन छोड़brary.org