________________ जैन आयुर्वेद साहित्य : एक समीक्षा | 475 बाचरस (1500 ई.) ने अश्ववैद्यक की रचना की। इसमें अश्वों की चिकित्सा का वर्णन है। पद्मरस ने (1627 ई. में) 'हयसारसमुच्चय' (अश्वशास्त्र) नामक ग्रंथ की रचना मैसूर नरेश चामराज के आदेशानुसार की थी। इसमें भी अश्वों की चिकित्सा का वर्णन है / दक्षिण के ही जैन देवेन्द्र मुनि ने 'बालग्रहचिकित्सा' पर कन्नड़ी में ग्रंथ लिखा था / रामचन्द्र और चंद्रराज ने 'अश्ववैद्य' कीर्तिमान चालुक्य राजा नो 'गोचिकित्सा', वीरभद्र ने पालकाप्य के गजायुर्वेद पर कन्नड़ी भाषा में टीका लिखी थी। हवीं शती में अमृतनन्दि ने 'वैद्य कनिघण्टु' की रचना की थी। साल्व ने रसरत्नाकर और वैद्यसागत्य तथा जगदेव ने 'महामंत्रवादि' लिखा था / 28 तामिल आदि भाषाओं के जैन वैद्यकग्रन्थों का संकलन नहीं हो पाया है। प्रस्तुत लेख लेखक के "जैन आयुर्वेद साहित्य" नामक ग्रन्थ की लघुकति है। ग्रन्थ में विस्तारपूर्वक जैन विद्वानों द्वारा प्रणीत वैद्यक ग्रन्थों का और उनके ग्रन्थकारों का परिचय विश्लेषणात्मक रूप से उपस्थित किया है। 000000000000 000000000000 -- rmxxx C. 1 कायचिकित्साद्यष्टांग आयुर्वेदः भूतिकर्मजांगुलिप्रक्रमः / प्राणापानविभागोऽपि यत्र विस्तरेण वर्णितस्तत् प्राणावायम् / / -तत्त्वार्थ राजवार्तिक, अ० 1, सू०२० 2 डॉ० हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान', पृ० 54-55 3 डॉ० हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ०७२-७३ 4 डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, प्रास्ताविक, पृ० 5 स्थानांग सूत्र 6 / 678; निशीथ चूणि 15, पृ० 512 / 7 स्थानांग सूत्र 8, पृ० ४०४-अ; विपाक सूत्र 7, पृ० 41 8 उत्तराध्ययन 20123; सुखबोधां पत्र 266 6 उत्तराध्ययन, 2022; सुखबोधां पत्र 266 10 उत्तराध्ययन, 158 11 बृहद्वृत्ति, पत्र 11 12 बृहद्वृत्ति, पत्र 475 13 वही, पत्र 462 14 निशीथचूणि 7 / 1757 15 निशीथचूणि 11 // 3436 16 विपाकसूत्र 7, पृ० 41 17 आवश्यकचूणि पृ० 385 18 स्थानांग सूत्र 61667 16 बृहत्कल्प माष्य 34380 20 आचारांग सूत्र 6 / 11173 21 ज्ञातृ धर्मकथा 13, पृ१४३ 22 कल्याणकारक, परिच्छेद 1, श्लोक 1-11 23 कल्याणकारक, पृ० 20, श्लोक 85 24 कल्याण कारक, पृ० 20, श्लोक० 86 25 उग्रादित्य का 'कल्याणकारक' शोलापुर (महाराष्ट्र) से सन् 1940 में पं० वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ने हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित किया है / 26 Aufrecht, Catalogus Catalogomn, Part I, p. 36. 27 मो०द० देसाई, जैन साहित्य नो इतिहास, पृ० 367 28 Julius Jolly, Indian Medicine, p. 4. Kare mr S.RI -..-. ___www.jainelibrary.org