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________________ जैन आचार में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न 299 34. धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पायकंबलं। निशीसूित्र, 2/23, उद्धृत भगवती आराधना, विजयोदया टीका, सेज्जमुच्चारभूमिं च संथारं अदुवासणं।। गाथा 423, पृ० 324. दशवैकालिक, 8/17, नवसुत्ताणि, सं० युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन 41. भगवती-आराधना, विजयोदया टीका, गाथा 423, पृ० 324. विश्वभारती, लाडनूं, 1967, पृ० 68. 42. भगवती-आराधना में उल्लिखित प्रस्तुत सन्दर्भ वर्तमान आचारांग में 35. आचारांग, 1/5/89, सं० युवाचार्य मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन अनुपलब्ध है। उसमें मात्र स्थिरांग मुनि के लिये एक वस्त्र और एक समिति, व्यावर। पात्र से अधिक रखने की अनुज्ञा नहीं है। सम्भवतः यह परिवर्तन 36. (अ) एसेहिरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं तत्थ एसे परवर्ती -काल में हुआ है। जुग्नि देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं। 43. (अ) हिरिहेतुकं व होइ देहदुगुंछंति देहे जुग्गिदगे। आचारांग, वस्त्रैषणा-उद्धृत भगवती आराधना, विजयोदया टीका, धारेज्ज सिया वत्थं परिस्सहाणं च ण विहासीति।। गाथा 423, पृ० 324. कल्पसूत्र से उद्धृत- भगवती आराधना, विजयोदया टीका. गाथा जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके विरसंघयणे, से एगं वत्थं 423, पृ० 324. . धारेज्जा, णो बितियं। (ब) प्रस्तुत सन्दर्भ उपलब्ध बृहत्कल्पसूत्र में प्राप्त नहीं होता है। यद्यपि -आचारचूला, द्वितीयश्रुतस्कन्ध, 2/5/1/2, पृ० 161 / वस्त्र धारण करने के इन कारणों का उल्लेख स्थानांगसूत्र, स्थान 3 37. (अ) हिरिमणे वा जुग्गिदे चावि अण्णगे वा तस्स णं कप्पदि वत्थादिकं में निम्न रूप में मिलता है- कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पादचारित्तए इति। तओ वत्थाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तंजहा- जंगिए, भंगिए, - वही, गाथा 423, पृ० 324 / खोमिए। (ब) जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं -ठाणांग, 3/345 / धारेज्जा, णो बीयं। 44. आचारांग, शीलांकवृत्ति, 1/7/4, सूत्र, 209, पृ० 251 / -आचारांगसूत्र, आचारचूला, 2/6/1/2 / 45. (अ) भगवती आराधना, विजयोदया टीका, पृ० 325-326. 38. संवच्छरं साहियं मासं, जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं। तुलनीय आवश्यकचूर्णि, भाग 1, पृ० 276. अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे।। (ब) आवश्यकसूत्रं (उत्तरभाग) चूर्णि सहित, ऋषभदेव, केशरीमल -आचारांग, 1/9/1/4 / श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, 1929. 39. (अ) ण कहेज्जो धम्मकहं वत्थपत्तादिहेदुमिति। 46. भगवती-आराधना, विजयोदया टीका, पृ० 326-327, पालित्रिपिटक, - सूत्रकृतांग, पुंडरीक अध्ययन, उद्धृत भगवती आराधना, कन्कोडेंन्स, पृ० 345. विजयोदया टीका, गाथा 423, पृ० 324. 47. भगवती-आराधना, भाग 1 (विजयोदया टीका), गाथा 157 की (ब) णो पाणस्स (पायस्स) हेउं धम्ममाइक्खेज्जा। णो वत्थस्स हेर्ड टीका, पृ० 205. . धम्माइक्खेज्जा। - सूत्रकृताङ्ग, 2/1/68, पृ० 366. 48. (अ) शाकटायन व्याकरणम्, स्त्री-मुक्तिप्रकरणम् 7, सम्पादक 40. (अ) कसिणाई वत्थकंबलाइं जो भिक्खू पडिग्गहिदि आपज्जदि पं० शम्भुनाथ त्रिपाठी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी, मासिगं लहुगं। 1971, पृ० 1 / ... - निशीथसूत्र, 2/23, उद्धृत भगवती आराधना, विजयोदया (ब) बृहत्कल्पसूत्र 6/9, सम्पादक मधुकर मुनि, ब्यावर, 1992 // टीका, गाथा 423, पृ० 324. 49. (अ) बृहत्कल्पसूत्र 6/20. (ब) जे भिक्खू कसिणाई वत्थाई धरति, धरेतं वा सातिज्जति। (ब) पञ्चकल्पभाष्य (आगमसुधासिन्धु), 816-822 / Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210586
Book TitleJain Achar me Achelakatva aur Sachalekatva ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf
Publication Year1998
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Achar
File Size2 MB
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