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________________ ८० अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल ज्यामिति को समाहित कर लिया। अग्रवाल ने लिखा है कि त का अभिप्राय क्षेत्रगणित से है। क्षेत्रगणित में पल्य सागर आदि का ज्ञान अपेक्षित है। आरम्भ में इस गणित को सीमा केवल क्षेत्र परिभाषाओं तक ही सीमित थी पर विकसित होते-होते यह समतल ज्यामिति के रूप में वृद्धिगत हो गई है।'' आयंगर के अनुसार : Rajju is the ancient Hindu name for geometry which was called Sulva in the Vedic literature. अर्थात् रज्जु रेखागणित की प्राचीन हिन्दु संज्ञा है जो कि वैदिक काल में शुल्व नाम से जानी जातो थी। कात्यायन शुल्वसूत्र में ज्यामिति को रज्जु समास कहा गया है । प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन ने रज्जु के संदर्भ में लिखा है :-'इस प्रकार रज्जु के उपयोग का अभिप्राय जैन साहित्य में शुल्व ग्रन्थों से बिल्कुल भिन्न है । रज्जु का जैन साहित्य में मान राशिपरक सिद्धान्तों से निकाला गया है और उससे न केवल लोक के आयाम निरूपित किये गये हैं किन्तु यह माप भी दिया गया है कि उक्त रैखिक माप में कितने प्रदेशों की राशि समाई हुई है। उसका मम्बन्ध जगश्रेणी से जगप्रतर एवं धनलोक से भी है।" ___ आपने संदर्भित गाथा के विषयों की व्याख्या करते हुए रज्जु का अर्थ विश्व माप की इकाई लिखा है। __ वस्तुतः उस स्थिति में जबकि व्यवहार के ८ भेदों में से एक भेद क्षेत्र व्यवहार भी है और उसमें ज्यामिति का विषय समाहित हो जाता है एवं खात, चिति, राशि एवं क्राक चिक, व्यवहार के अन्तर्गत मेन्शुरेशन ( Mensuration. ) का विषय भी आ जाता है। तब क्षेत्रगणित के लिये स्वतन्त्र अध्याय की इतनी आवश्यकता नहीं रह गई जितनी लोक के प्रमाण विस्तार आदि से सम्बद्ध जटिलताओं, असंख्यात विषयक राशियों के गणित से सम्बन्धित विषय की। इन विषयों का व्यापक एवं व्यवस्थित विवेचन जैन ग्रन्थों में मिलता है। जबकि यह अन्य किसी समकालीन ग्रन्थ में नहीं मिलता। विविध धार्मिक-अर्द्धधार्मिक जैन विषयों के स्पष्टीकरण में इनकी अपरिहार्य आवश्यकता वरणानुयोग अथवा द्रव्यानुयोग के किसी भी ग्रन्थ में देखी जा सकती है। एतद्विषयक गणित की जन जगत् में प्रतिष्ठा का आकलन इस बात से भी किया जा सकता है कि हेमराज ने संख्यात, असंख्यात एवं अनन्त विषयक गणित पर १७वीं शताब्दी में गणितसार नामक स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना की । असंख्यात एवं अनन्त के जटिल विषयों को परिकर्म के अन्तर्गत मानना किंचित् भी उचित नहीं, क्योंकि परिकर्म में तो गणित ( लौकिक गणित ) की मूलभूत क्रियायें आती हैं। १. देखें सं०-१. पृ० ३६ । २. देखें सं.-१३ पृ० २६ । ३. रज्जु समास वक्ष्याम, कात्यायन शुल्बसूत्र १.१ । ४. देखें सं०-८, पृ० ४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210579
Book TitleJain Agamo me Nihit Ganitiya Adhyayan ke Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain, Sureshchandra Agarwal
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year1987
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size760 KB
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