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________________ जैन आगमों में निहित गणितीय अध्ययन के विषय ७९ २. ववहारो ( सं० व्यवहार ) : इस शब्द की व्याख्या अभयदेवसूरि ने श्रेणी व्यवहार आदि पाटीगणित के रूप में तथा दत्त महोदय ने अंकगणित के व्यवहार रूप में की है। ब्रह्मगुप्त ने व्यवहार के ८ प्रकार बताये हैं। १. मिश्रक व्यवहार, ५. चिति व्यवहार, २. श्रेणी व्यवहार, ६.क्रकचिका व्यवहार, ३. क्षेत्र व्यवहार, ७. राशि व्यवहार, ४. खात व्यवहार, ८. छाया व्यवहार महावीराचार्य के गणितसारसंग्रह में भी सभी प्रकरण उपलब्ध हैं उससे इनकी विषयवस्तु का सुगमता से निर्धारण किया जा सकता है। श्रेणी व्यवहार गणितके क्षेत्र में जैन-मतावलम्बियों का लाघव श्लाघनीय है तिलोयपण्णत्ति एवं धवला के साथ ही त्रिलोकसार के अन्तःसाक्ष्य के अनुसार प्राचीन काल में मात्र धाराओं पर ही एक विस्तृत ग्रन्थ उपलब्ध था। फलतः विभिन्न व्यवहारों में श्रेणी व्यवहार के प्रमुख होने के कारण शब्द के स्पष्टीकरण में उसको प्रमुखता देते हुए लिखना स्वाभाविक प्रतीत होता है। पाटीगणित शब्द तो जैन गणित सहित सम्पूर्ण भारतीय गणित में प्रचलित है । श्रीधर ( ७५० ई० ) कृत पाटीगणित, गणितसार, गणिततिलक; भास्कर (११५० ई०) कृत लीलावती नारायण (१३५६ ई०) कृत गणितकौमुदी; मुनीश्वर ( १६५८ ई० ) कृत पाटीसार इस विषय के प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बीस परिकर्म एवं आठ व्यवहारों का वर्णन है। अतः कहा जा सकता है कि गणितसारसंग्रह की सम्पूर्ण सामग्री परिकर्म एवं व्यवहार इन दोनों में ही समाहित है। वर्तमान में व्यवहारगणित शब्द का प्रयोग पाटीगणित की उस प्रक्रिया के लिए होता है जिसमें गुणक संख्या के योगात्मक खण्ड करके गुण्य से गुणा किया जाये। जिस समय बड़ी संख्याओं की गुणनविधि का प्रचलन नहीं हुआ था उस समय गुणक संख्या को कई समतुल्य खण्डों में विभा थक-पथक गणा करके उस गणनफल को जोड दिया जाता था. किन्त जैनों की गुणन क्रिया में दक्षता एवं गणितीय ज्ञान की परिपक्वता को दृष्टिगत करते यह अनुमान करना निरर्थक ही है कि व्यवहार गणित गणन के इस सन्दर्भ में आया हो सकता है। उपाध्याय, व्यवहार गणित का अर्थ Practical Arithmatics करते हैं। जब कि Srinivas Iengar ने feat & fi "Vyavahar means application of arithmatics to concrete problems (Applied Mathematics)' संक्षेप में ववहारो का अर्थ पाटीगणित के व्यवहार करना उपयुक्त है। ३. रज्जु :-इस पारिभाषिक शब्द का विषय-सूची में उपयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अभयदेवसूरि ने इसका अर्थ रस्सी द्वारा की जाने वाली गणनाओं से सम्बन्धित अर्थात् समतल ज्यामिति से किया था ।५ दत्त ने इसको किंचित् विस्तृत करते हुए इसकी परिधि में सम्पूर्ण १. श्रेणीनों व्यवहार विगेरे पाटीगणित प्रसिद्ध अनेक प्रकारे व्यवहार गणितेछ । २. त्रिलोकसार, गाथा-९१ । ३. धारा का अर्थ Sequence है । ४. देखें सं०-१३, पृ० ३२ ५. राजवड़े जे संख्यान ते रज्जु कहवाय छे-ते क्षेत्र गणित छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210579
Book TitleJain Agamo me Nihit Ganitiya Adhyayan ke Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain, Sureshchandra Agarwal
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year1987
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size760 KB
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