SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन आगमों में निहित गणितीय अध्ययन के विषय बोस ने अपनी पुस्तक' में उपर्युक्त गाथा (६) को उद्धृत किया है किन्तु उसके आधार पर नीचे जो विषयों की सूची बनायी है उसमें पुद्गल को हटाकर विकल्प गणित को सम्मिलित कर दिया है अथवा यह कहा जाये कि स्थानांग वाली गाथा के विषयों को दे दिया। इसका क्या कारण है ? संभवतः त्रुटिवश ऐसा हुआ है। संस्कृत छाया को देखने से स्पष्ट है कि गणित अध्ययन के विषय ११ हैं, अर्थात् परिकर्म, व्यवहार, रज्जु, राशि, क्लासवर्ण, पुद्गल, यावत् तावत्, घन, घनमूल, वर्ग, और वर्गमूल । पुनः द्रष्टव्य है कि मूल गाथा (५) में कहीं कुछ ऐसा नहीं है जो मूल शब्द को ध्वनित करता हो । दत्त ने भी लिखा है There is nothing in the either form which could be informed a reference to roots (mūla). Above all by that interpretation, he has made the number of topics for discussion to be eleven against the express injuction of the Canonical works that they are all together ten. So we shall reject the rendering of the verse (Sanskrit version).२ अब प्रश्न यह उठता है कि क्या पुद्गल को गणित अध्ययन का विषय माना जाये ? इस संदर्भ में दत्त महोदय ने तो स्पष्ट लिखा है कि Pudgala as a topic for discussion in mathematics is meaningless. 2 अर्थात् पुद्गल को गणित अध्ययन का विषय स्वीकार करना निरर्थक है। किन्तु विचारणीय यह है कि यह निष्कर्ष आप के द्वारा तब दिया गया था जब कर्म सिद्धान्त का गणित प्रकाश में नहीं आया था। उस समय तक Relativity के संदर्भ में जैनाचार्यों के प्रयास भी प्रकाशित नहीं हुये थे। आज परिवर्तित स्थिति में यह निष्कर्ष इतनी सुगमता से गले नहीं उतरता । क्योंकि असंख्यात विषयक गणित, राशि गणित ( Set theory ) आदि का मूल तो पुद्गल ही है । मापन की पद्धतियाँ तो यहीं से प्रारम्भ होती हैं। एक तथ्य यह भी है कि शीलांक ने भी तो इसे किसी प्राचीन ग्रन्थ से ही उद्धृत किया होगा। लेकिन समस्या यह है कि पुद्गल को गणित का विषय स्वीकार करने पर विकल्प छूट जाता है। जबकि विकल्प तो अत्यधिक एवं निर्विकल्प रूप से जैन ग्रन्थों में आता है। यहां हमें बृहत्कल्प भाष्य की एक पंक्ति कुछ मदद करती है। "भंग गणिताइ गमिक"४ मलयगिरि ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है कि भंग (विकल्प) एवं गणित अलगअलग हैं। संक्षेप में यह विषय विचारणीय है एवं अभी यह निर्णय करना उपयुक्त नहीं है कि पुद्गल को गणितीय अध्ययन का विषय स्वीकार किया जाये अथवा नहीं। स्थानांगसूत्र के ही चतुर्थ अध्याय में एतद्विषयक एक अन्य गाथा प्राप्त होती है। गाथा निम्नवत् है१. देखें सं०-२, पृ० १५८ । २. देखें सं०-३, पृ० १७० । ३. वही, पृ० १२० । ४. वृहत्कल्प भाष्य, १४३ । ५. देखें सं० १०, पृ. XIII । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210579
Book TitleJain Agamo me Nihit Ganitiya Adhyayan ke Vishay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain, Sureshchandra Agarwal
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year1987
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size760 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy