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- यतीन्द्र सूरि तारकग्रन्य जैन आगम एवं साहित्य ॐ - जितने भी प्राकृत-व्याकरणशास्त्र उपलब्ध हैं, वे सभी और उसके विभिन्न भेद अर्थात् विभिन्न साहित्यिक प्राकृतें हैं। संस्कृत भाषा में हैं एवं संस्कृत व्याकरण के माडल पर निर्मित सत्य यह है कि बोली के रूप में तो प्राकृतें ही प्राचीन हैं और हैं। अतएव उनमें प्रकृतिः संस्कृतम् जैसे प्रयोग देखकर कतिपयजन संस्कृत उनका संस्कारित रूप है, वस्तुतः संस्कृत विभिन्न प्राकृत ऐसा भ्रम करने लगते हैं कि प्राकृतभाषा संस्कृतभाषा से उत्पन्न बोलियों के बीच सेतु का काम करने वाली एक सामान्य साहित्यिक हुई, ऐसा अर्थ कदापि नहीं है। प्राकृतविद्या जुलाई-सितंबर ९६, भाषा के रूप में अस्तित्व में आई। पृ. १४। भाई सुदीपजी जब शौरसेनी की बारी आती है, तब
. यदि हम भाषा-विकास की दृष्टि से इस प्रश्न पर चर्चा करें आप प्रकृति का अर्थ आधार माडल करें और जब मागधी का
तो भी यह स्पष्ट है कि संस्कृत सुपरिमार्जित, सुव्यवस्थित और प्रश्न आए तब आप प्रकृतिः शौरसेनी का अर्थ मागधी शौरसेनी
व्याकरण के आधार पर सुनिबद्ध भाषा है। यदि हम यह मानते से उत्पन्न हुई ऐसा करें यह दोहरा मापदण्ड क्यों? क्या केवल
हैं कि संस्कृत से प्राकृतें निर्मित हुई हैं, तो हमें यह भी मानना
* शौरसेनी को प्राचीन और मागधी को अर्वाचीन बताने के लिए?
होगा कि मानव जाति अपने आदिकाल में व्याकरण शास्त्र के वस्तुतः प्राकृत और सस्कृत शब्द स्वय हा इस बात के प्रमाण है नियमों से संस्कारित संस्कत भाषा बोलती थी और उसी से कि उनमें मलभाषा कौन है? संस्कृत शब्द स्वयं ही इस बात का अपभ्रष्ट होकर शौरसेनी और शौरसेनी से अपभ्रष्ट होकर मागधी.. सूचक है कि संस्कृत स्वाभाविक या मूलभाषा न होकर एक
पैशाची, अपभ्रंश आदि भाषाएँ निर्मित हुई। इसका अर्थ यह भी संस्कारित कृत्रिम भाषा है। प्राकृत शब्दों एवं शब्दरूपों का नाम जातिको
होगा कि मानव जाति की मूल भाषा अर्थात् संस्कृत से अपभ्रष्ट व्याकरण द्वारा संस्कार करके जो भाषा निर्मित होती है, उसे ही होते-होते ही विभिन्न भाषाओं का जन्म हुआ, किन्तु मानव सस्कृत कहा जा सकता है। जिस सस्कारित न किया गया हो वह जाति और मानवीय संस्कृति के विकास का वैज्ञानिक इतिहास संस्कृत कैसे होगी? वस्तुतः प्राकृत स्वाभाविक या सहज भाषा है
इस बात को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। और उसी को संस्कारित करके संस्कृत भाषा निर्मित हुई है। इस दृष्टि से प्राकृत मूलभाषा है और संस्कृत उससे उद्भूत हुई है।
वह तो यही मानता है कि मानवीय बोलियों के संस्कार
द्वारा ही विभिन्न साहित्यिक भाषाएँ अस्तित्व में आई अर्थात् हेमचन्द्र के पूर्व नमिसाधु ने रुद्रट के काव्यालङ्कार की विभिन्न बोलियों से ही विभिन्न भाषाओं का जन्म हआ है। वस्ततः टीका में प्राकृत और संस्कृत शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दिया है।
इस विवाद के मूल में साहित्यिक भाषा और लोकभाषा अर्थात् वे लिखते हैं--
बोली के अंतर को नहीं समझ पाना है। वस्तुतः प्राकृतें अपने. सकल जगज्जन्तुनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कार: सहजो मूलस्वरूप में भाषाएँ न होकर बोलियाँ रही हैं। यहाँ हमें यह भी वचनव्यापार: प्रकृतिः तत्र भवं सैव वा प्राकृतम्। आरिसवयणे ध्यान रखना चाहिए कि प्राकृत कोई एक बोली नहीं अपितु सिद्धं, देवाणं अद्धमागहा वाणी इत्यादि,वचनाद्वा प्राक् पूर्वकृत् बोली-समूह का नाम है। जिस प्रकार प्रारंभ में विभिन्न प्राकृतों प्राकृतम्। बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिन्धनभूत अर्थात् बोलियों को संस्कारित करके एक सामान्य वैदिक भाषा वचनमुच्यते। मेघनिर्मुक्तजलमिवैकस्वरूपं तदेव च का निर्माण हुआ, उसी प्रकार कालक्रम में विभिन्न बोलियों को देशविशेषात्संस्कारकरणात् च समासादित विशेष सत् संस्कृतादुत्तर अलग-अलग रूप में संस्कारित करके उनसे विभिन्न साहित्यिक भेदोनाप्नोति। काव्यालंकार -टीका, नमिसाधु २/१२
प्राकृतों का निर्माण हुआ। अत: यह एक सुनिश्चित सत्य है कि अर्थात् जो संसार के प्राणियों का व्याकरण आदि संस्कार
बोली के रूप में प्राकृतें मूल एवं प्राचीन है और उन्हीं से संस्कृत से संहित सहज वचन व्यापार है उससे निःसत भाषा प्राकत है का विकास एक कामन भाषा के रूप में हुआ। प्राक़तें बोलियाँ जो बालक, महिला आदि के लिए भी सबोध है और पर्व में और संस्कृत भाषा है। बोली को व्याकरण से संस्कारित करके निर्मित होने से (प्राक + कृत) सभी भाषाओं की रचना का
___ एकरूपता देने से भाषा का विकास होता है। आधार है वह तो मेघ से निर्मुक्त जल की तरह सहज है उसी का भाषा से बोली का विकास नहीं होता है। विभिन्न प्राकृत देश-प्रदेश के आधार पर किया गया संस्कारित रूप संस्कृत बोलियों को आगे चलकर व्याकरण के नियमों से संस्कारित anitariasardarosamirmirandiindaindiandutorsrini११३dioidiosaritambarsamirsidasardaroramidarsrande
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