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________________ જૈન આગમધર ઔર પ્રાકૃત વાલ્મય [५] जिनवल्लभगणि, अभयदेवसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, चक्रेश्वरसूरि, देवेन्द्रसूरि, सोमतिलकसूरि, रत्नशेखरसूरि, विजयविमलगणि आदि अनेक आचार्य हुए हैं. इनमेंसे आचार्य शिवशर्म, चन्द्रर्षि महत्तर, गर्गर्षि, जिनवल्लभगणि, देवेन्द्रसूरि आदि कर्मवादविषयक कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह, प्राचीन कर्मग्रंथ और नव्यकर्मग्रंथ शास्त्रोंके प्रणेता हैं. इनमें भी शिवशर्मप्रणीत कर्मप्रकृति और चन्द्रषिप्रणीत पंचसंग्रह, व इनकी चूर्णि-वृत्तियाँ महाकाय ग्रंथ हैं. ये दो शास्त्र आगमकोटिके महामान्य ग्रंथ माने जाते हैं. इनके अलावा आचार्य जिनभद्रके संग्रहणी, क्षेत्रसमास, विशेषणवती, हरिभद्रसूरिके पंचाशक, विंशतिविशिका, पंचवस्तुक, उपदेशपद, श्रावकधर्मविधितंत्र, योगशतक, संबोधप्रकरण आदि, मुनिचन्द्रसूरिके अंगुलसप्तति, वनस्पतिसप्तति, आवश्यकसप्तति तथा संख्याबंधकुलक आदि, सिद्धसेनसूरिका १६०६ गाथा परिमित प्रवचनसारोद्धारप्रकरण, अभयदेवसूरिके पंचनिम्रन्थीसंग्रहणी, प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणी, सप्ततिकाभाष्य, षट्स्थानक भाष्य, नवतत्त्व भाष्य, आराधनाप्रकरण, श्रीचन्द्रसूरिका संग्रहणीप्रकरण, चक्रेश्वरसूरिके ११२३ गाथा परिमित शतकमहाभाष्य, सिद्धांतसारोद्धार, पदार्थस्थापना, सूक्ष्मार्थसप्तति, चरणकरणसप्तति, सभापंचकस्वरूपप्रकरण आदि, देवेन्द्रसूरिके देववंदनादि भाष्यत्रय, नव्यकर्मग्रंथपंचक, सिद्धदंडिका, सिद्धपंचाशिका आदि, सोमतिलकसूरिका नव्य बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण, रत्नशेखरसूरिके क्षेत्रसमास, गुरुगुणषट्त्रिंशिका आदि प्रकरण हैं। यहाँ मुख्य मुख्य प्रकरणकार आचार्योंके नाम और उनके प्रकरणोंका संक्षेपमें दिग्दर्शन कराया गया है. अन्यथा प्रकरणकार आचार्य और इनके रचे हुए प्रकरणोंकी संख्या बहुत बड़ी है. इनमें कितनेक प्रकरणों पर भाष्य, महाभाष्य और चूणियाँ भी रची गई हैं. ___ औपदेशिक प्रकरण - औपदेशिक प्रकरण वे हैं, जिनमें मानवजीवनकी शुद्धिके लिए अनेकविध मार्ग दिखलाये गये हैं. ऐसे प्रकरण भी अनेक रचे गये हैं. आचार्य धर्मदासकी उपदेशमाला, प्रद्युम्नाचार्यका मूलशुद्धिप्रकरण, श्री शान्तिसूरिका धर्मरत्नप्रकरण, देवेन्द्रसूरिका श्राद्धविधिप्रकरण, मलधारी हेमचन्द्रसूरिका भवभावना और पुष्पमालाप्रकरण, चन्द्रप्रभमहत्तरका दर्शनशुद्धिप्रकरण, वर्द्धमानसूरिका धर्मोपदेशमालाप्रकरण, यशोदेवसूरिका नवपदप्रकरण, आसडके उपदेशकंदली और विवेकमंजरी प्रकरण, धर्मघोषसूरिका ऋषिमंडल प्रकरण आदि बहुतसे औपदेशिक छोटे-छोटे प्रकरण हैं, जिन पर महाकाय टीका भी रची गई हैं, जिसमें प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंश भाषामें अनेक कथाओंका संग्रह किया गया हैं. एक रीतिसे माना जाय तो ये टीकाएं कथा-कोशरूप ही हैं. धर्मकथा साहित्य जैनाचायोंने प्राकृत कथासाहित्यके विषयमें भी अपनी लेखनीका उपयोग काफी किया है. जैनाचायोंने काव्यमय कथाएं लिखनेका प्रयत्न विक्रम संवत् प्रारम्भके पूर्व ही शुरू किया है. आचार्य पादलिप्तकी तरंगवती, मलयवती, मगधसेना, संघदासगणि वाचक विरचित वसुदेवहिंडी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210571
Book TitleJain Agamdhar aur Prakrit Vangamaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherPunyavijayji
Publication Year1969
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size3 MB
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