________________ जैन आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य : एक अध्ययन सन्दर्भ-ग्रन्थ 1. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 1, पृ. 31. 2. समवायामसूत्र, भाग 1, पृ. 136. 3. प्राकृत साहित्य बृहद् इतिहास, भाग 1, पृ. 44. वही, 5. नन्दीसूत्र 43; तत्वार्थवार्तिक 1,20,13 आवश्यकनियुक्ति, गाथा 92. षट्खण्डागम -- यह 16 भागों में प्रकाशित है। इसके जीवट्ठाण, खुदाबंध, बंधसामित्तविषय, वेदना, वगणा और महाबन्ध ये 6 खण्ड है, अतः इसे षट्खण्डागम कहते हैं। इसका उद्गम स्रोत दृष्टिवाद के द्वितीय पूर्व आग्रायणीय के चयनलब्धि नामक 5वें अधिकार के चौथे पाहुड कर्मप्रकृति को माना जाता है। लेखक हैं आचार्य धरसेन। इस पर आचार्य वीरसेन ने धवलाटीका लिखी है। महाबन्ध नामक छठा खण्ड अपनी विशालता के कारण पृथक ग्रन्थ के रूप में माना जाता है। कसायपाहड -- यह 16 भागों में प्रकाशित है। इसमें राग (पेज्ज) और देष का निरूपण है। रचनाकार हैं आचार्य गुणधर जो दृष्टिवाद के 5वें ज्ञानप्रवाद पूर्व के 10वें वस्तु के उसरे कषायप्राभूत के पारगामी थे। यही अंश इसका उद्गम स्रोत है। इस पर जयधवलाटीका आचार्य वीरसेन और जिनसेन ने लिखी है। आचार्य यतिवृषभ ने चूर्णि लिखी है। 7. *रीडर, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org