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________________ कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीणं वा चाउक्कालं सज्झायं करेत्तए, तंजहा - १ - पुत्वण्हे - दिन के प्रथम प्रहर में। २. अवरण्हे - दिन के अन्तिम (चतर्थ) पहर में। ३ - पओसे -रात्रि के प्रथम प्रहर (प्रदोष काल) में। ४ - पच्चू से रात्रि के अन्तिम (चतुर्थ) प्रहर में। उपर्युक्त देशना से स्पष्ट है कि साधक अहोरात्रि अर्थात् आठ प्रहर में से चार प्रहर स्वाध्याय में लगा वे तथा शेष चार प्रहर में शेष ध्याय, सेवा और भिक्षा आदि अन्य क्रियाएं पूर्ण करें। इससे स्वाध्याय का महत्व स्वतः सिद्ध हो जाता है। आगम स्वाध्याय के लिए काल मर्यादा का अवश्य ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। . .. प्राचीन आचार्यों ने “द्वादशांगी रूप” श्रुत साहित्य को ही स्वाध्याय कहा है - बाइसंगो जिणकवाओ, सज्झाओकहिओ वुहे। तं उवईसंति जम्हा, उवज्झायातेण वुच्चति॥ ५ अर्थात् जिन भाषित द्वादशांग सज्झाय है। उस सज्झाय का उपदेश करने वाले उपाध्याय कहे जाते हैं। द्वादशांग रूप साहित्य स्वाध्याय कहलाता है। स्वाध्याय का उद्देश्य - स्वाध्याय का मुख्य उद्देश्य बताते हुए भगवान कहते हैं कि ज्ञान के सम्पूर्ण प्रकाश के तथा अज्ञान और मोह को नष्ट करने के लिए और राग द्वेष का क्षय एवं मोक्ष रूप एकान्त सुख की प्राप्ति हेतु स्वाध्याय करना चाहिए। ५ दशवैकालिक सूत्र में दूसरे ढंग से स्वाध्याय का उद्देश्य प्रतिपादित किया है। वह चार प्रकार की समाधि बताई है। १- विनय समाधि, २- श्रुत समाधि, ३ माधि, ४ -आचार समाधि। विनम्रता से ज्ञान प्राप्त होता है और ज्ञान से तप में प्रवृत्ति होती है। तप से आचार शुद्धि होती है। शिष्य पूछता है -श्रुत समाधि कैसे प्राप्त होती है? आचार्य बताते हैं स्वाध्याय से श्रुत समाधि अधिगत होती है। स्वाध्याय करने के चार लाभ-उद्देश्य होते हैं। १. सुयं में भविस्सइत्ति अल्झाइयव्वं भवई। मुझे जान प्राप्त होगा, इसलिये स्वाध्याय करना चाहिए। २. एगग्गचित्ते भविस्सामित्ति, अज्झाइयत्वं भवई। मैं एकाग्रिचित होऊंगा, इसलिए अध्ययन करना चाहिए। विशेषावश्यक भाष्य गाथा- ३१९७ नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अत्राणमोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्त सोक्खं समुवेइ मोक्खं॥ उत्तरा. ३२/२ दश वैचालिक सूत्र अ. ९ उद्देश्य ४ (३२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210524
Book TitleJina aur Jinashasan Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size421 KB
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