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यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ जैन आगम एवं साहित्य
या नैषेधिकी में दी जाती थी, क्योंकि अगीतार्थ साधु उसे सुनकर कहीं विपरिणत होकर गच्छ से निकल न जाएँ। ११
छेदसूत्रों का कर्तृत्व
छेदसूत्र पूर्वो से निर्यूढ हुए अतः इनका आगम-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है । दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार एवं निशीथ - इन चारों छेदसूत्रों का निर्यूहण प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय आचारवस्तु से हुआ, ऐसा उल्लेख नियुक्ति एवं भाष्यसाहित्य में मिलता है । १२ दशाश्रुत, कल्प एवं व्यवहार का निर्यूहण भद्रबाहु ने किया, यह भी अनेक स्थानों पर निर्दिष्ट है । १३ किन्तु निशीथ के कर्तृत्व के बारे में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् निशीथ को भी भद्रबाहु द्वारा निर्यूढ मानते हैं, लेकिन यह बात तर्क-संगत नहीं लगती। निशीथ चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहु द्वारा निर्यूढ कृति नहीं है, इस मत की पुष्टि में कुछ हेतु प्रस्तुत किए जा सकते हैं
दशाश्रुतस्कंध की नियुक्ति एवं पंचकल्प भाष्य में भद्रबाहु की दशा, कल्प एवं व्यवहार इन तीनों सूत्रों के कर्त्ता के रूप में वंदना की है, वहाँ आचारप्रकल्प निशीथ का उल्लेख नहीं है । १४
व्यवहार - सूत्र में जहाँ आगम-अध्ययन की काल - सीमा के निर्धारण का प्रसंग है, वहाँ भी दशाश्रुत, व्यवहार एवं कल्प का नाम एक साथ आता है। १५ आवश्यकसूत्र में भी इन तीन ग्रन्थों के उद्देशकों का ही एक साथ उल्लेख मिलता है। १६ निशीथ को इनके साथ न जोड़कर पृथक् उल्लेख किया गया है। १७
श्रुतव्यवहारी के प्रसंग में भाष्यकार ने कल्प और व्यवहार इन दो ग्रन्थों तथा इनकी नियुक्तियों के ज्ञाता को श्रुतव्यवहारी के रूप में स्वीकृत किया है। वहाँ निशीथ / आचारप्रकल्प का उल्लेख नहीं है।" निशीथ की महत्तासूचक अनेक गाथाएँ व्यभा. में हैं, पर वे आचार्यों ने बाद में जोड़ी हैं, ऐसा प्रतीत होता है क्योंकि उत्तरकाल में निशीथ बहुत प्रतिष्ठित हुआ है । अन्यथा कल्प और व्यवहार के साथ भाष्यकार अवश्य निशीथ का नाम जोड़ते । निशीथ का निर्यूहण भद्रबाहु ने किया, यह उल्लेख केवल पंचकल्पचूर्णि में मिलता है।" इसका कारण संभवतः यह रहा होगा कि अन्य छेदग्रन्थों की भांति निशीथ का
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निर्यूहण भी प्रत्याख्यान पूर्व से हुआ । इसीलिए कालान्तर निर्यूहणकर्ता के रूप में भद्रबाहु का नाम निशीथ के साथ भी जुड़ गया।
विंटरनिट्स ने निशीथ को अर्वाचीन माना है तथा इसे संकलित रचना के रूप में स्वीकृत किया है। २०
विद्वानों के द्वारा कल्पना की गई है कि निशीथ का निर्यूहण विशाखगणि द्वारा किया गया, जो भद्रबाहु के समकालीन थे।
दशाश्रुतस्कंध के निर्यूहण के बारे में भी एक प्रश्नचिन्ह उपस्थित होता है कि इसमें महावीर का जीवन एवं स्थविरावलि है, अतः यह पूर्वो से उद्धृत कैसे माना जा सकता है ? इस प्रश्न के समाधान में संभावना की जा सकती है कि इसमें कुछ अंश बाद में जोड़ दिया गया हो।
सूत्रों का निर्यूह क्यों किया गया, इस विषय में भाष्य - साहित्य में विस्तृत चर्चा मिलती है। भाष्यकार के अनुसार नौवाँ पूर्व सागर की भाँति विशाल है। उसकी सतत् स्मृति में बार-बार परावर्तन की अपेक्षा रहती है, अन्यथा वह विस्मृत हो जाता है। २१ जब भद्रबाहु ने धृति, संहनन, वीर्य, शारीरिक बल, सत्त्व, श्रद्धा, उत्साह एवं पराक्रम की क्षीणता देखी तब चारित्र की विशुद्धि एवं रक्षा के लिए दशाश्रुतस्कंध, कल्प एवं व्यवहार का निर्यूहण किया गया । २२ इसका दूसरा हेतु बताते हुए भाष्यकार कहते हैं कि चरणकरणानुयोग के व्यवच्छेद होने से चारित्र का अभाव हो जाएगा, अतः चरणकरणानुयोग की अव्यवच्छित्ति एवं चारित्र की रक्षा के लिए भद्रबाहु ने इन ग्रन्थों का निर्यूहण किया । २३
चूर्णिकार स्पष्ट उल्लेख करते हैं कि भद्रबाहु ने आयुबल, धारणाबल आदि की क्षीणता देखकर दशा, कल्प एवं व्यवहार का निर्यूहण किया, किन्तु आहार, उपाधि, कीर्ति या प्रशंसा आदि के लिए नहीं । २४
निर्यूहण को प्रसंग को दृष्टान्त द्वारा समझाते हुए भाष्यकार कहते हैं- जैसे सुगंधित फूलों से युक्त कल्पवृक्ष पर चढ़कर फूल इकट्ठे करने में कुछ व्यक्ति असमर्थ होते हैं। उन व्यक्तियों पर अनुकम्पा करके कोई शक्तिशाली व्यक्ति उस पर चढ़ता है। और फूलों को चुनकर अक्षम लोगों को दे देता है । उसी प्रकार चतुर्दशपूर्व रूप कल्पवृक्ष पर भद्रबाहु ने आरोहण किया और अनुकम्पावश छेदग्रन्थों का संग्रथन किया । २५ इस प्रसंग में भाष्यकार
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