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________________ है । परन्तु फिर भी कभी-कभी उस समय निराश होना पड़ता है अथवा विचारणीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब उचित निदान एवं चिकित्सा द्वारा रोगीकी चिकित्साके समय लाभ होते-होते कालक्रम अनुसार या तो लाभ कम होने लगता है अथवा विपरीत स्थिति होकर हानि दृष्टिगोचर होने लगती 1 उदाहरणार्थ, जलोदर, प्रमेह, श्वास एवं अन्यान्य रोगियोंमें ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । उस समय मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होने लगते हैं कि क्या त्रिदोष के अतिरिक्त भी रोगोत्पत्तिके लिए अन्य तत्त्व उत्तरदायी हो सकता है । ऊहापोहके फलस्वरूप ज्योतिषविज्ञानका विचार आया एवं तदनुरूप सहयोग कार्य सम्पादित करनेपर उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुआ । उदाहरणार्थ, ऐसे एक आतुरका इतिवृत्त प्रस्तुत है । रोगीका नाम रामगोपाल, वय, ४० वर्ष मुख्यव्यथा— दन्दशूल, दन्तहर्ष, दन्तवेष्ट शोथ, रक्तस्राव, अग्निमांद्य इत्यादि । रोगी लगभग पाँच वर्षसे उक्त व्याधिसे पीड़ित रहा है। परीक्षण करनेपर रोगनिदान दन्तवेष्ट किया गया। इसकी समुचित चिकित्सा व्यवस्था की गई । प्रारम्भमें चिकित्सोपचारसे आशानुकूल लाभ हुआ एवं उपचार चलता रहा । कभी-कभी रोगीके प्रमादवश चिकित्सा न्यूनताके कारण तथा कभी अनायास ही प्रतीत हुआ कि लाभ अपेक्षाकृत न्यून हो रहा है । छह मास पश्चात् व्याधि वृद्धि होकर पूयस्त्राव होने लगा तथा शनैः शनैः दन्तपातन भी होने लगा । रोगी एवं चिकित्सकके लिए विचारणीय स्थिति उत्पन्न हो गई । तब ज्योतिषविज्ञानके अनुसार आतुरके जन्मांग (चित्र १ ) का अध्ययन किया गया । तदनुसार आतुरके जन्मकालमें लग्नमें वृष राशि है एवं इसपर पाप ग्रह शनिकी तीन चरण, राहुकी एक चरण, सूर्यकी दो चरण तथा मंगलकी एक चरण दृष्टि है । बृहदज्जातक अनिष्ठाध्याय २३ । १५ के अनुसार इस जन्मके व्यक्तिको दन्तरोगी होना चाहिये । इसलिये इसके स्वरूपस्वास्थ्य लाभके लिये चिकित्सोपचार के साथ ग्रह शान्तिका विधान तंत्र - सारोक्त पद्धतिसे करना चाहिये । इसके लिये निम्न पोंका विधान है : सू.चं. बु. ६ के. ३ ५ मं. Jain Education International ७ शु. शनिग्रह शान्तिहेतुः ॐ शं शनैश्चराय नमः का २३००० बार जाप । राहुग्रह शान्तिहेतु ॐ रां राहवे नमः का १८००० बार जाप । सूर्यग्रह शान्तिहेतु, ॐ घृणिः सूर्याय नमः का ७००० बार जाप । मंगलग्रह शान्तिहेतु, ॐ आं अंगारकाय नमः का १०००० बार जाप । ८ गु. For Private & Personal Use Only १ ११ श. ९ रा. १२ जैन साहित्य में भी ग्रह शान्तिका विधान पाया जाता है । कविवर मनसुखसागरजी कृत नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान के अनुसार शनि ग्रह शान्तिहेतु शनि अरिष्ट निवारक श्रीमुनिव्रत जिनपूजा, राहु ग्रह शान्ति हेतु राहु अरिष्ट निवारक श्री नेमिनाथ जिनपूजा, सूर्यग्रह शान्तिहेतु सूर्य अरिष्ट निवारक श्री पद्मप्रभु जिनपूजा, मंगल ग्रह शान्तिहेतु अरिष्ट निवारक श्री वासुपूज्य जिनपूजाका विधान किया गया हैं । पूजन पश्चात् महामन्त्र णमोकारके १००८ बार जपका भी विधान है । प्रस्तुत रोगीको इन पूजा और - ४१५ - १० www.jainelibrary.org
SR No.210483
Book TitleChikitsaya Jyotish ke Kshetra me jain Sahitya ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Jain
PublisherZ_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Publication Year1980
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size359 KB
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