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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म - भारतीय मनोचिकित्सा : स्वरूप एवं पद्धति देवी या भूत के प्रकोप को दूर कराने की प्राचीन युग से प्रथा
- रही है और इस संबंध में आश्चर्यजनक बात यह रही है कि इस भारतवर्ष की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियाँ के उल्लेख
प्रकार के ऊपरी उपचार के पश्चात् संबंधित रोगी अच्छा भी होता भारतीय संस्कृति के चार मुख्य वेद-ग्रन्थों विशेषतः अथर्ववेद .
हुआ पाया गया है, भले ही यहाँ उसके अच्छा होने का कोई और में मिलते हैं। इसमें अनेक मानसिक विकृतियों जैसे, उन्माद,
आधार रहा होगा। जिन मनोरोगियों पर ऐसे उपचार का कोई मूर्छा, अपस्मार, तीव्र भय, मानसपाप व पापभावना आदि का
प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता था, उन्हें प्रायः अनेक धार्मिक तीर्थों भी वर्णन है। इनके अतिरिक्त, इनमें अनेक संवेगात्मक विकृतियों
के दर्शन से लाभ उठाने की बात सोची जाती रही है। ऐसा एक जैसे क्रोध, ईर्ष्या, मोह, काम, शाप व दुःस्वप्न का भी उल्लेख है। इन मानसिक व्याधियों के उपचार के रूप में वेदों में मंत्रविद्या,
प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थान राजस्थान में है, जहाँ पर प्रतिदिन
सैकड़ों व्यक्ति आधुनिक मनोवैज्ञानिक भाषा में अपने मानसिक संकल्प, आत्म संसूचन, संवशीकरण, आश्वासन, उतारण, हवन,
रोगों, विषम जालों अथवा अपने सिर पर भूत के चढ़े होने के ब्रह्म कवच, मंगलकर्म, जप, तप व व्रत आदि पर विशेष बल
प्रकोप या फिर सिर पर आई हुई देवी की कुपित दृष्टि के कष्ट को दिया गया है।
दूर करने के उद्देश्य से बालाजी के मंदिर दर्शनार्थ आते रहते हैं। वेद में मनोविकृति का उपचार--
यहाँ आने वाले ऐसे व्यक्तियों में इतना अवश्य है कि अधिकांश अथर्ववेद में मानसिक व्याधियों से पीडित व्यक्तियों को।
व्यक्ति देश के ग्रामीण अंचलों से ही आते हैं, परंतु साथ ही
साथ बड़े नगरों से उच्च स्तर के शिक्षित व्यक्तियों, मानवशास्त्री रोग-मुक्त करने की अनेक विधियों व पद्धतियों पर भी अति
शोधकर्ताओं व पत्रकारों आदि की भी यहाँ संख्या कम नहीं विस्तृत प्रकाश डाला गया है। एक व्यक्ति को व्याधि-मुक्त
रहती है। इसमें भले ही उनका दृष्टिकोण ऐसे स्थान पर आने की करने की ये प्रमुख विधियाँ व पद्धतियाँ इस प्रकार रही हैं,
जिज्ञासा व सामान्य जानकारी कम ही रहती हो, परंतु वे यहाँ भूतविद्या, मंत्रविद्या, प्रायश्चित्त मंत्रसिद्धि, आत्मसिद्धि, हवन,
आते अवश्य रहते हैं। अनेकों मानसिक व्याधियों से छुटकारा आसन, नियम, जप, तप, व्रत, पूजा, भय, प्रार्थना, प्राणायाम,
पाने की मनोकामना से भी आते रहते हैं और उनमें से अनेक ध्यान, ज्ञान, आश्वासन, योग व समाधि आदि।
व्यक्ति यहाँ पर प्रचलित विभिन्न उपचार-पद्धतियों की विभिन्नताओं प्राचीन भारत में मनोविकृत्ति के संबंध में दो रूप की जैसे स्वयं नत्य करने, बंधनमुक्त रूप से बोलने, गाने व अधिकांशतः दृष्टिगोचर रहे हैं, जिनमें एक रूप व्यावहारिकतः ।
सिर हिलाने के एकदम प्रभावी होने की बात का दावा भी करते असाध्य मनोरोग जैसे मनोविक्षिप्ति का रहा है, तथा जिसका
जिसका देखे गए हैं। इन सब भारतीय उपचार-पद्धतियों में देवी-देवताओं उपचार या तो नहीं रहा है, या फिर उसका उपचार दीर्घकालीन व
नव की स्तुति, भक्ति, मंत्रों की शक्ति व भूत-विद्या की आलौकिक
मन धार्मिक कर्मकाण्डों की परिधि के ही अंतर्गत रहा है। अधिकांशतः
शितः शक्ति में ही निहित बताया गया है। अथर्वेद में वर्णित मनोविकृति ऐसे रोगी व्यक्ति के घर को छोड़कर बाहर कहीं चले जाने की
। के प्रति इन विभिन्न चिकित्सा-पद्धतियों की शक्ति का ज्ञान इस
भी भी प्रथा रही है। इसके अतिरिक्त उपचार का दूसरा रूप, तथ्य से पता लगता है कि आधनिक पाश्चात्य देशों में भी व्यावहारिकतः ऐसे साध्य मानसिक रोगों का रहा है, जिसके
मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुभावातीत ध्यान (Transcenप्रति यही धार्मिक भावना रहती है कि ऐसे व्यक्ति पर किसी भूत
dental Meditation) की असाधारण शक्ति को अत्यधिक मान्यता की छाया पड़ गई है, या फिर कोई देवी उसके सिर पर आ गई है
दी जाने लगी है और इन देशों में भी इस प्रकार के ध्यान-केन्द्रों
की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। रही है। ऐसी स्थितियों में संबंधित व्यक्ति का उपचार सिर पर चढ़े हुए भूत या सिर पर आई हुई देवी का किसी प्रकार से नैतिक उपचार (MoralTherapy)-- उतारना होता है। इसके लिए ही सयानों (भूतविद्या में जाने माने
Pinel, Tuke, Dorothea Dix, Benjamin Rush के महान व्यक्तियों) को बुलाया जाता रहा है, या फिर उनके पास जाकर प्रयासों से मनोविकतिविज्ञान के विकास को अत्यधिक बल
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