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-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में नेता वर्म प्रभाव रहता है। अतः कुछ साधारण मानसिक रोगियों के लिए आधार पर सुस्थापित भी किया। जलचिकित्सा भी अति उपयोगी रहती है।
व्यवहार चिकित्सा और उसका स्वरूप-इस चिकित्सा (v) व्यवहार चिकित्सा (Behaviour-Therapy)-- व्यवहार पद्धति के समर्थकों ने परंपरागत मनोविश्लेषणवादी मनश्चिकित्सा चिकित्सा का मख्य बल संबंधी रोगी के Maladaptive व्यवहार पद्धति का डटकर विरोध किया तथा वैज्ञानिक दृष्टि के संदर्भ में में प्रायोगिक आधार पर स्थापित अधिगम के नियमों द्वारा ऐसे इसके संप्रत्यों को आत्मनिष्ठ रहस्यमयी तथा असत्यापनीय अनुकूली व्यवहार की दीक्षा आरंभ की जाती है, जिससे उसका (Unverifiable) ठहराया। Eysenek 1957 ने भी मानसिक रोगियों पुराना अपानुकूलक (Maladaptive) व्यवहार विधिवत् रूप से . के उपचार में मनोविश्लेषणवादी उपचार पद्धति की घोर आलोचना निरंतर निर्बल पड़कर समाप्त हो जाता है तथा उसमें नवीन की। वस्तुतः व्यवहार-चिकित्सा पद्धति ने अपनी उपचार पद्धति अनुकूली (Adaptive) व्यवहार एवं आदत का रूप सशक्त बनता में प्रयोगशाला आधारित अधिगम के नियमों को प्रयुक्त किया जाता है। मानसिक रोगों के उपचार में मनोवैज्ञानिकों ने इस तथा कुछ स्थितियों में प्रेक्षणमूलक तथा सत्यापनीय ढंग से पद्धति के अपनाने में पिछले लगभग दो दशकों से अपनी गहरी अपनी उपचार पद्धति के पक्ष में आवश्यक प्रमाण भी प्रस्तुत रुचि दिखाई है। साधारणतः व्यवहार-चिकित्सा को कभी-कभी किए। व्यवहार-संशोधन अथवा व्यवहार-उपान्तरण (Behaviour -
व्यवहार-चिकित्सा का आलोचनात्मक मूल्यांकनModification) चिकित्सा भी कहा जाता है।
व्यवहारवादी मनोविज्ञानी अपनी उपचार-पद्धति को सरल, स्पष्ट, इस चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत Clinician की सैद्धांतिक कुशल तथा वैज्ञानिक कहते हैं। इनके अनुसार मनोरोग का अवधारणा मूलतः यह रहती है कि एक विशेष रोगी के व्यवहार कारण संबंधित व्यक्ति का एक दोषजन्य सीखा हुआ व्यवहार का आधार पुराना दोषजन्य व्यवहार ही होता है, जो अब उसकी ही होता है, जिसका नए ढंग से सीखने के द्वारा ही निर्मूलन भी एक खराब आदत बन चुका है। अत: अब उसके उपचार के लिए किया जा सकता है। परंतु मनोविश्लेषणवादी इस उपचार-पद्धति पूर्व स्थापित उन अधिगम नियमों व सिद्धांतों का सहारा लिया जाना को केवल यांत्रिक, ऊपरी, अकुशल व अमानवीय रूप से कठोर चाहिए, जिससे उसकी पुरानी रोगग्रस्त आदत धीरे-धीरे निर्बल ही बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, इस उपचार-पद्धति द्वारा अधिक पड़कर छूट जाए तथा उपयुक्त प्रशिक्षण व पुनर्बलन (re- गंभीर रूप से पीड़ित जैसे मनस्तापी (Psychotic) व्यक्ति का inforcement) द्वारा उसमें ऐसे नवीन व्यवहार व आदत का नवनिर्माण उपचार नहीं होने पाता। वस्तुतः व्यवहार-चिकित्सा के पोषक किया जाए जिसे कि उसके लिए एक प्रकार से उसकी सामाजिक व रोग के लक्षणों को दूर करने में ही उपचार के लक्ष्य को पूरा मान उपचार की दृष्टि से सामान्य तथा स्वस्थ माना जाता है।
लेते हैं, जबकि मनोविश्लेषणवादी यह विश्वासपूर्ण ढंग से कहते इस चिकित्सा-पद्धति में संबंधित रोगी के अचेतन के
हैं कि जब तक एक रोगी व्यक्ति के लक्षणों के मूल कारण को अभिप्रेरण (Unconscious Motivation) की ओर ध्यान न देकर
- ही नहीं पहचाना जाता है, तब तक उसका ठीक ढंग से सफल उसके प्रत्यक्ष स्पष्ट अथवा प्रेक्षणमूलक (observable) व्यवहार
उपचार भी संभव नहीं होता। अतः मनोविश्लेषणवादी दृष्टिकोण पर ही मुख्य बल केन्द्रित रहता है। इस उपचार-प्रक्रम के अंतर्गत
मनोरोग के उपचार में उसके रोग के वास्तविक कारणों को
जानने के लिए संबंधित व्यक्तित्व के अचेतन में गहरे धरातल Pavlov के अनुबंधन संबंधी अधिगम के सिद्धांत का भी सहारा लिया जाता है तथा आवश्यकतानुसार Skinner के नैमत्तिक तक पहुंचने का प्रयास करता है। स्पष्टतः समय व धन के (Operant) अनुबंधन के अधिगम सिद्धांत को भी अनप्रयक्त आधक व्यय के कारण इस उपचार-पद्धति का अनुप्रयोग केवल किया जाता है। इस उपचार-पद्धति के पोषक J.B.Watson रहे सामर
सीमित ही रह जाता है, जबकि व्यवहार-चिकित्सा पद्धति का हैं। उन्होंने अपने प्रयोगों के आधार पर Experimental Neuro
स्वरूप प्रायः अपने में बोधगम्य व प्रत्यक्ष तथा अपेक्षाकृत sis को स्थापित करके भी दिखाया तथा उसका उपचार भी
सरल रूप से व्यक्ति के व्यवहार को शीघ्र ही आवश्यक मोड़ प्रत्यक्षतः प्रायोगिक आधार पर अथवा प्रेक्षणमलक तथ्यों के दन म सक्षम ह।
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