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चिकित्सा के प्रति समाज-सांस्कृतिक उपागम
डॉ. रामनारायण एवं डॉ. रज्जन कुमार
प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी...ly
चिकित्सा अथवा उपचार का उद्देश्य संबंधित व्यक्ति के समाज-सांस्कृतिक उपागम के प्रति नव फ्रायडवादियों अपानुकूलक व्यवहार में ऐसा परिवर्तन अथवा सुधार लाना की भूमिका - कुछ मनोविज्ञानियों विशेषत: नवफ्रायडवादियोंहोता है, जिससे उसका व्यवहार स्वीकार्य तथा सामान्य स्थिति जैसे कैरन हार्नी, फ्राम, माडीनर व अलेक्जेंडर आदि का यह में आ सके। चूंकि अपानुकूलक व्यवहार के अनेक रूप तथा अभिन्न मत रहा है कि आधुनिक पाश्चात्य सामाजिक जीवन का विविध कारण होते हैं, अतः उनके कुशल व सफल उपचार की जैसा वर्तमान स्वरूप है, उसके अंतर्गत व्यक्ति में मूलभूत भी प्रायः अलग-अलग ही पद्धतियाँ होती हैं।
दुश्चिन्ता (Basic Anxiety) का उत्पन्न होते रहना, एक प्रकार से ___ वास्तव में प्राचीन युग से ही अपानुकूलक व्यवहार के
अपरिहार्य ही है, क्योंकि यह सामाजिक व्यवस्था एक ऐसी
आर्थिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है, जिससे जनसाधारण को सुधार के लिए कुछ अपने ढंग का उपचार अवश्य ही किया
निरंतर संघर्षरत व स्पर्धारत रहना पड़ता है व जिसमें उसे थोड़ेजाता रहा है। पाषाण युग में इसके उपचार के लिए संबंधित रोगी
थोड़े समय पर ही बेरोजगारी, भुखमरी, सामाजिक अत्याचार के सिर में एक सूराख (Trephine) ही बना दिया जाता था,
सार्वजनिक जीवन में निरंतर बढ़ते घोर भ्रष्टाचार, अपार आर्थिक जिससे कि उसके शरीर में घुसी हुई व्याधिजनक व दुष्ट आत्मा
संकट व शोषण का असहाय शिकार बनते रहना पड़ता है। उसके शरीर को छोड़कर कहीं और चली जाए। मध्यकालीन
पूँजीवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार तथा मनोविकार-स्पष्टतः युग में भी इस संबंध में जादू-टोना व झाड़-फूंक आदि के
ऐसी व्यवस्था में जमाखोरी, घूसखोरी, चोरबाजारी, तस्करी, अतिरिक्त, ऐसे व्यक्ति के प्रति प्रायः अति क्रूरता के व्यवहार
भिक्षावृत्ति, वेश्यावृत्ति, मद्यव्यसन तथा अपराध प्रवृत्ति में भी का भी प्रचलन रहा, परंतु आधुनिक वैज्ञानिक युग में इस दिशा
निरंतर वृद्धि ही होती जाती है और व्यक्ति अनेक मानसिक में निश्चित रूप से अपार प्रगति हुई है और अब अपानुकूलक
संघर्षों, ग्रंथियों व व्याधियों के अदृश्य जाल में सहज रूप में ही व्यवहार की यथार्थ हेतुकी (Etiology) के अध्यययन के संदर्भ
फँसता जा रहा है। अतः व्यक्ति की ऐसी घोर अंधकारमय में अनेक अचूक उपचारात्मक पद्धतियाँ विकसित हुई हैं तथा
समाज-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में ही एक तर्कसंगत प्रश्र निरंतर विकसित होती जा रही हैं।
यह उत्पन्न होता है कि क्या ऐसी समाज-सांस्कृतिक व्यवस्था एक रोगी की चिकित्सा के प्रति समाज-सांस्कृतिक की स्थिति जनसाधारण के लिए अपरिहार्य ही है और क्या चिकित्सा के विभिन्न रूप होते हैं तथा ये रूप लगभग एक इसका कोई अन्य स्वीकार्य तथा व्यावहारिक विकल्प संभव समस्या-बालक के लिए प्रतिपालक गृह (Foster home) से नहीं है। लेकर अन्य सामाजिक मूल संस्थाओं में आवश्यक संशोधन पूंजीमूलक (Capitalistic) अर्थव्यवस्था तथा मूल दुश्चिन्ता तथा उनमें आमूल परिवर्तन लाने तक विस्तृत हैं। इसका मुख्य (Basic Anxiety) - यहाँ इस संबंध में एक तथ्य सामान्यतः कारण यही है कि कभी-कभी एक विकृति की उत्पत्ति में संबंधित अनुभव होने लगा है कि वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था तथा इस व्यक्तित्व की निर्बलता अथवा संवेदनशीलता की भमिका न पर आधारित राजनीतिक व समाज-सांस्कृतिक संरचना ही ऐसी होकर इसके विशेष विकृतिजन्य समाज-सांस्कृतिक पर्यावरण है, जिसमें साधारणतः निर्धन व धनी व्यक्ति को भी नित की ही विशिष्ट भूमिका रहती है।
आधारभूत दुश्चिन्ता मानसिक कुण्ठा, विरोध, अवसाद तथा विषाद
से ग्रस्त रहने के लिए विवश रहना पड़ता है व जिसमें राजनीतिक anoramidnicombrowordroidroidrowdnoramadiraniranira- २८ admirabiroditonidirdiridwidwidwaaniramidndi
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