SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विद्यालय में संगीत शिक्षा ग्रहण की थी। इसके द्वारा उक्त शिलालेख से प्रकट होता है कि मानसिंह के बनवाया गया महल मान मन्दिर (चित्र महल) हिन्दू काल में भी कुछ जैन प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई थीं। स्थापन्य कला का अदभुत नमूना है । बाबर ने भी इस उक्त प्रतिमा की स्थापना सरस्वती गच्छ के भद्रारकों ने महल की कारीगरी की प्रशंसा की है । इसके अतिरिक्त कराई थी। इसने मृगनयनी गूजरी के लिये गूजरो महल बनवाया । द्य पद गीतों का आविष्कार भी सर्वप्रथम महाराजा भट्टारक मणिचन्द्र देव के पश्चात् जो मुनि हए मानसिंह द्वारा ही हआ। इन्होंने "मान कुतुहल" के । उनका नाम उक्त शिलालेख में नहीं पढ़ा जा सका, तथापि नाम से एक संगीत ग्रन्थ की रचना की। परन्तु इन उन्हें भट्टारक के स्थान पर मुनि कहने से प्रकट होता है सबके बावजूद इसके शासनकाल में इसके द्वारा किसी कि मूलसंघ की इस शाखा का मूल पट्ट ग्वालियर के बादर कहीं स्थापित हो गया था। 37 प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार को प्रश्रय नहीं दिया जाने से, इस समय तक उपलब्ध अपभ्रंश की रचनाओं की प्राचीन साहित्य के अभाव में यह कहना कठिन है परम्परा समाप्त हो गई जिसके कारण आज अन्य अनेकों कि महाराजा डूगरसिंह एवं कीर्तिसिंह के राज्यकाल तथ्य अँधेरे के गर्त में डूब गये हैं। में समादृत जैन साधुओं एवं भट्टारकों के प्रति उनका व्यवहार कैसा था तथापि इस बात की संभावना कम - महाराजा मानसिंह के काल का सन् 1495 ई. का ही है कि संगीत, भवन निर्माण, कला को संरक्षण देनेएक शिलालेख अवश्य ग्वालियर गढ़ की एक जैन प्रतिमा की चरण चौकी पर मिला था, जिससे इस प्रदेश की वाले तथा युद्धों में व्यस्त महाराजा धार्मिक विवेचन के जैन धर्म की तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। लिये समय दे सके होंगे। साहित्यिक प्रमाणों के अभाव ' उसकी प्रथम तीन पंक्तियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। ... में इनके काल के संबंध में कोई शोध-कार्य नहीं हो पाया है । फिर भी एक-दो उल्लेख मिलते हैं जिनके अनुसार श्रीमद गोपाचलगढ़ महाराजाधिराज सन् 1501 में चैत्र सुदी 10 सोमवार के दिन कामठासंघ श्री मल्लसिंहदेव विजयराज्ये प्रवर्तमाने । संवत 1552 नंदिगच्छ विद्यागण के भट्टारक सोमकीर्त और भ. वर्षे ज्येष्ठ सुदि 9 सोमवासरे श्री मूलसंघे वलत्करगणे विजयकीति के शिष्य व्रह्यकाला द्वारा गोपाचल दुर्ग में सरस्वतीगच्छे । कुदकुदाचार्यान्विये । भ. श्री पद्म- आत्म पठनार्थ अमर कीति के "षट्कर्मोपदेश' की प्रति नन्दिदेव तत् पट्टालंकार श्री शुभचन्द्र देव । तत्पट्ट लिखवाए जाने का उल्लेख मिलता है । इसके अतिभ. मणिचन्द्र देव । तत्पट्टे पं. मुनि ...' गणि कचर रिक्त सन् 1512 में गोपाचल में श्रावक सिरीमल के देव तदन्वये बारह श्रेणी वंशे सालम भार्या व ..... पूत्र चतरू ने 44 पद्यों के "नेमीश्वर गीत""की रचना 36. ग्वालियर राज्य के अभिलेख, क० 341, पूर्णचन्द्र नाहर, जैन अभिलेख-भाग 2, क्र० 1429 । 37. ग्वालियर के तोमर-हरिहर निवास द्विवेदी, प्र० 1। .8. अथ नपति विक्रमादित्य संवत् 1558 वर्ष चैत्र सुदी 10 सोमवासरे अश्लेखा नक्षत्रे गोपाचलगढ़ दुग महाराजाधिराज श्री मानसिंह राज्ये प्रवर्तमाने श्री काष्ठासंघे नंदिगच्छे विद्यागणे भ० श्री सोमकीर्ति देवास्तत्पटे भ. श्री विजयसेन देवास्तत शिष्य ब्रह्मकाला इद षट्कर्मोपदेशशास्त्र लिखाप्ये आत्मपटना। -प्रशस्ति सं० आमेर पृ० 173 ३५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.210470
Book TitleGwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy