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एक पत्थर की वावडी पर स्थित गुहा मन्दिर में उत्खनित विशाल जन प्रतिमाओं के समूह का एक दृष्टि)
पहुँचे कि ये जैन मूर्तियाँ हैं। संभवतया यह त्रिशला इस समह में लगभग 20 प्रतिमायें 20 से 30 फट माता तथा महावीर की मूर्ति है। कला की दृष्टि से इन तक की ऊँचाई की और लगभग इतनी ही 8 से 15 फट मूर्तियों का विशेष महत्व नहीं है ।
तक की ऊँचाई लिये हुये हैं। इसमें आदिनाथ, नेमिनाथ, (3) उत्तर पश्चिम समूह :-- इसमें आदिनाथ पद्मप्रभु, चन्द्रप्रभु, संभवनाथ, कुन्तनाथ, और महावीर की एक महत्त्वपर्ण मूर्ति बनी है जिस पर सं. 1527 का आदि की मूर्तियाँ हैं । इनमें कुछ एक मतियों पर 1525 अभिलेख अकित है। यह विशेष कलात्मक नहीं है। से 1530 तक के अभिलेख खुदे हये हैं।
(4) उत्तर पूर्व समूह :-- इसमें भी छोटी-छोटी इन समहों में तीर्थकरों के अतिरिक्त अंविका, यक्ष, मतियाँ हैं और उन पर भी कोई लेख न होने से यक्षिणी तथा विभिन्न प्रतीक भी उत्कीर्ण किये गए हैं। एतिहासिक दष्टि से अधिक महत्व नहीं रखती हैं । कला इनके अतिरिक्त तेली की लाट के पास तथा गुजरी महल की दृष्टि से भी उनका कोई विशेष महत्व नहीं है। संग्रहालय में रखी प्रतिमायें भी अधिकतर इनकी सम
(5) दक्षिण पूर्व समूह :-इस समूह की मूर्तियाँ कालीन प्रतीत होती हैं। इससे प्रतीत होता है कि कला की दृष्टि से अत्याधिक महत्त्वपूर्ण हैं। ये मूर्तियाँ उपरोक्त समूहों के अतिरिक्त अन्य प्रतिमाओं का भी फूलबाग के दरवाजे से निकलते ही लगभग आधे मील निर्माण हुआ था। के क्षेत्र में खदी हुई दिखाई देती हैं। अन्य मूर्तियों की
ग्रन्थ निर्माण-मूर्ति प्रतिष्ठायें :अपेक्षा कूछ बाद में बनने के कारण ये अभ्यस्त हाथों द्वारा निर्मित होने के कारण इनमें अंगों के अनुपात इनके शासनकाल में ही कशा साह जी जैसवाल और सौष्ठव में कहीं न्यूनता नहीं दिखाई देती। इनमें वंशज ने गोपाचल पहाड़ी के बाहरी तरफ कुछ गुफाओं कला का रूप निखर उठा है।
में मूर्तियाँ खुदवाई तथा मन्दिर बनवाकर प्रतिष्ठाये
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