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पास० 1/2/15-16
वही 1/3/17-18 अर्थात् “पृथ्वी-मण्डल में प्रधान, गिरिराज (सुमेरु) अर्थात् "सुख-समृद्धि एवं यश के लिए वह गोपाचल के समान विशाल, देवताओं के मन में भी विस्मय उत्पन्न रत्नाकर के समान आकर था, बुधजनों के समूहों से करनेवाला, भवन-शिखरों से मण्डित तथा पृथ्वी-मण्डल युक्त वह नगर मानों इन्द्रपुरी ही था । शास्त्रार्थों से के श्रेष्ठ पण्डित के समान गोपाचल नामक एक नगर सुशोभित तथा जन-मन को आकर्षित करनेवाले सर्वकहा गया है।"
श्रेष्ठ नगरों का मानों यह गूरू ही था।"
सुहलच्छि जसयरु ण रयणावरु। बुहयण जुहु णं इंदउरु ॥ सत्थत्थहिँ सोहिउ जण मणु । मोहिउ णं वरणयरहँ एहु गुरु ॥
वहाँ के सामाजिक-जीवन का भी वह सुन्दर वर्णन करता है । कवि के अनुसार वहाँ के आबाल-वृद्ध, नरनारी दुर्व्यसनों से कोसों दूर थे । प्रातःकालीन क्रियाओं से निवृत्त होकर वहाँ की नारियाँ सुन्दर वस्त्र धारणकर
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गुणालंकार'' के अन्तिम पृष्ठ की फोटो कापी
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