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[ १ ] उपादान कारण में क्या भेद है इसकी चर्चा भी की है ११ ।
प्रमाण के लक्षण में प्रत्यक्ष प्रमाण की चर्चा में तर्क भाषाकार और प्रकाशिकाकार का अनुसरण करते हुए उन्होंने बौद्ध और मोमांसक के प्रत्यक्ष लक्षणों की भी विस्तार से चर्चा करके खण्डन किया है १२ ।
प्रत्यक्ष के अनन्तर अनुमान प्रमाण को चर्चा में 'अनुमान का कारण लिंग परामर्श हो है' इस तर्कभाषाकार ओर प्रकाशिकाकार के मत की गुणरत्न ने विशदता से नव्यन्याय के आधार पर समझाया है। इस चर्चा में व्याप्ति के लक्षण को चर्चा गोवर्धन ने अधिक नहीं को है परन्तु गुणरत्न नव्यन्याय के प्रस्थापक गंगेश उपाध्याय के व्याप्ति के लक्षण को लेकर व्याप्ति के अनेक लक्षण प्रस्तुत करते हैं और इससे उनके नव्यन्याय के ज्ञान की विशिष्टता स्पष्टतया गोचर होती है१४ । इस चर्चा में वे उपाधि, तर्क वगैरह की चर्चा करते हुए मीमांसक जैसे अन्य दार्शनिकों के मतों की भी व्याप्तिग्राह्यत्व के विषय में चर्चा करते हैं । चार्वाक जोकि प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वीकार ही नहीं करते हैं उनके मत का भी गुणरल ने नैयायिक पद्धति से खण्डन किया है १५ ।
अनुमान में व्याप्ति की चर्चा के साथ हेतु की चर्चा भी अनिवार्य है । नैयायिक अन्वयव्यतिरेकी केवलान्वयी और केवलव्यतिरेकी तीनों प्रकार के हेतुओं का स्वीकार करते हैं । इस चर्चा में गुणरत्न उदयन के मत का अनुसरण ११ तर्कतरङ्गिणी पृ० १०० और आगे
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करते हुए केवलयतिरेक व्याप्ति अन्वय रूप से भी कैसे हो सकती है उसे स्पष्ट करते हैं १६ । पक्षता की चर्चा में 'अनुमित्साविरह विशिष्ट सिद्धयभावः पक्षता' के लक्षण में विशिष्टाभाव के अर्थ को चर्चा वे विशदतासे और विस्तार से करते हैं १७ ।
अनुमान की चर्चा में हेत्वाभास की चर्चा अनिवार्य है । गुणरत्न हेत्वाभास का गोवर्द्धन से प्रस्तुत लक्षण किस तरह पांचों हेत्वाभासों को आबूत करता है यह एक प्रामाणिक टीकाकार के नाते विस्तार दिखाते हैं। वे प्रत्येक हेत्वाभास में क्या फर्क है, विशेषतः असिद्ध और विरुद्ध में क्या अन्तर है इसका सूक्ष्म निरूपण उदयन के मत का अनुसरण करते हुए देते हैं। साथ में एक ही स्थान पर हेत्वाभासों का संग्रह हो जाय, अर्थात् अनेक हेत्वाभास हों तो उसमें कोई दोष नहीं है, इस बात को भी स्पष्ट रूप से प्रतिपादित करते हैं?
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अनुमान के अनन्तर उपमान की चर्चा टीकाकार गोवर्धन के अनुसार अत्यन्त संक्षेप में करके वे शब्दप्रमाण की चर्चा करते हैं । गोवर्द्धन शब्द प्रमाण को चर्चा को अधिक विस्तार से “एतावत्प्रपंचस्थ बालबोधार्थं करणात्' ऐसा कह कर नहीं करते हैं, परन्तु गुणरत्न शब्द प्रमाण की अनेक विशेषताओं की चर्चा विस्तार से करते हैं ( पृ० ३०७ ) | वे गङ्गदेश के मत को उद्धृत करके गोवधंन के दिये हुए लक्षण को विस्तार से समझाते हैं, और आसत्व क्या है, तथा आकांक्षा, योग्यता आदि भी क्या १८ 'वायुर्गन्धवान् स्नेहान्' इस हेत्वाभास के उदाहरण में वे लिखते हैं कि एकस्यैव 'स्नेहस्य अनैकान्तिकविरुद्धेत्यादि पञ्चत्वव्यवहारः कथमित्याशङ्कायामुत्तरम् - उपाधेयसङ्करेऽप्युपाध्यसङ्कर
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न्यायाद्दोषगत संख्यामादाय दुष्टहेतौ पञ्चत्वादिसंख्या व्यवहारः ' - तर्कतरङ्गिणी सं० डॉ० परीख, हस्तलिखित प्रति पृ० ६०५-६०६ ।
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