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वण्ड ४ : धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म-चिन्तन
१११ (६) संज्वलन-'संज्वलनो मुहुर्मुहुः क्रोधाग्निना ज्वलनं'-बार-बार क्रोध से प्रज्वलित होनासंज्वलन है । इस प्रसंग पर संज्वलन का अर्थ संज्वलन कषाय की अपेक्षा भिन्न है। अनन्तानुबंधी आदि भेदों में संज्वलन का अर्थ अल्प है । यहाँ संज्वलन का अर्थ क्रोधाग्नि का पुनः-पुनः भड़कना है।
(७) कलह-'कलहो महता शब्देनान्योन्यमसमंजस भाषणमेतच्च क्रोधकार्य ।2-क्रोध में अत्यधिक एवं अनुचित शब्दावली प्रयोग करना। लोक-लाजभय का अभाव, शिष्टता का अभाव, गम्भीरता का अभाव हो तो व्यक्ति कलह करने में संकोच का अनुभव नहीं करता। इसे सामान्य रूप से वाक्युद्ध भी कहा जाता है अर्थात् शब्दों की बौछार से जो क्रोध प्रदर्शित किया जाय-वह कलह है।
(८) चांडिक्य--'चाण्डिक्यं रौद्राकारकरणं एतदपि क्रोध-कार्यमेव""3 क्रोध में भयंकर रौद्ररूप धारण करना चाण्डिक्य है । भयंकर क्रोध में कई व्यक्ति इतने रौद्र, क्रूर, नृशंस हो जाते हैं कि किसी के प्राण हरण करने में भी नहीं हिचकिचाते । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती जिसने एक ब्राह्मण पर क्रोध आने पर समस्त ब्राह्मणों की आँखें निकालने का आदेश दिया था। परशुराम-जिसने पृथ्वी को क्षत्रियविहीन बनाने के लिए भयंकर रक्तपात किया था । इस प्रकार के भयंकर क्रोध को चाण्डिक्य कहा गया है।
(8) भंडन-'भण्डनं दण्डकादिभिर्युद्धमेतदपि क्रोधकार्यमेव""दण्ड, शस्त्र आदि से युद्ध करना-भंडन है।
(१०) विवाद-विवादो विप्रतिपत्तिसमुत्थवचनानि इदमपि तत्कार्यमेवेति। परस्पर विरुद्ध वचनों का प्रयोग करना विवाद है।
कषायपाहुड सूत्र में भी क्रोध के समानार्थक दस नाम दिए गए हैं किन्तु उसमें समवायांग सूत्र के दस पर्यायवाची नामों में से चाण्डिक्य एवं भंडन भेद प्राप्त नहीं होते अपितु वृद्धि एवं झंझा नाम मिलते हैं । कषायपाहुड में क्रोध के दस पर्यायवाची नाम इस प्रकार हैं
(१) क्रोध (२) कोप (३) रोष (४) अक्षमा (५) संज्वलन (६) कलह (७) वृद्धि (८) झंझा (E) द्वष और (१०) विवाद ।
इनमें से वृद्धि और झंझा के विषय में कषायपाहुड के वृत्ति अनुवादक का कथन इस प्रकार है
वृद्धि-वृद्धि शब्द का प्रयोग बढ़ने के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जिससे पाप, अपयश, कलह और वैर आदि वृद्धि को प्राप्त हो वह क्रोधभाव ही वृद्धि है। यहाँ क्रोध के अर्थ में वृद्धि शब्द इतना संगत प्रतीत नहीं होता क्योंकि वृद्धि शब्द का प्रयोग क्रोध के परिणाम के रूप में हुआ है. क्रोध रूप में नहीं।
१. भगवती सूत्र, श. १२, उ. ५, सू. २ की वृत्ति २. भगवती सूत्र, श० १२, उ० ५, सू०२ की वृत्ति ३. भगवती सूत्र, श० १२, उ० ५, सू० २ की बृत्ति ४. भगवती सूत्र, श० १२, उ० ५, सू०२ की वृत्ति ५. भगवती सूत्र, श० १२, उ० ५, सू० २ की वृत्ति ६. कोहो य कोव रोसो य अक्खम-संजलण-कलह-वड्ढी य। ७. क० चू०, अ०६, गा० ८६ का अनुवाद झंझा दोस विवादो दस कोहेयट्ठिया होति ।।
(क० चू०, अ० ६, गा० ८६)
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