________________ दर्शन-दिग्दर्शन किसी को दुःख पहुंचाया अथवा हिंसा हुई तो प्रायाश्चित्त लेकर स्वयं को शुद्ध करते हैं / नैतिकता के दायरे का अतिक्रमण रोकने हेतु अणुव्रत आंदोलन की महती भूमिका है। श्रावक के लिए पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत में हुए अतिक्रमण में प्रावधान इस प्रकार है - 'पांच अणुव्रत सात शिक्षा व्रत यही जीवन विधि। सतत संयम साधना से पूर्ण हो श्रावक निधि / / साधना में अति-व्यतिक्रम, अति अनाचरणं कृतं। विफल हो सब पाप स्वीकृत करूं मिथ्या दुष्कृतं / / ' यह हार्दिक शोधन क्रिया है। शुद्धिकरण है। किंतु वर्तमान की दुःखद स्थिति यह है कि कानून से स्वयं को ऊपर समझने की भावना बढ़ रही है। सत्तासीन उनका अतिक्रमण करने में गौरव का अनुभव करते हैं। इन्सान को इन्सानियत के घेरे में तभी लाया जा सकेगा जब हर आत्मा में एक तडफ जागेगी कि अतिक्रमण स्वयं के लिए और राष्ट्र के लिए घातक है। भय और आशंका रहित जीवन जीने हेतु प्रतिक्रमण की संस्कृति में जीना होगा। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org