________________
Sh
0 श्री जवाहरलाल मुणोत, [जैन समाज के प्रभावशाली नेता, अमरावती
INTER जत
क्या जैन सम्प्रदायों का एकीकरण सम्भव है ?
IANS
लेख के शीर्षक से प्रतीत होता है कि जैन धर्म में भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की मौजूदगी अगर बुरी नहीं तो अप्रस्तुत तो जरूर है और इसलिये उनका एकीकरण किया जाना चाहिये । परन्तु आप गहराई से देखें तो यह स्पष्ट होगा कि संसार के प्रत्येक प्रमुख धर्म में बहुत जल्द सम्प्रदायों का उद्गम हो जाता है और इन अलग-अलग सम्प्रदायों में बंटा धर्म, उसके अनुयायियों के लिये किसी विशेष चिन्ता का कारण नहीं बनता । बौद्धों के हीनयान और महायान के मोटे विभेदों का हमें पता है परन्तु इन भेदों के अन्तर्गत अनगिनत सम्प्रदाय-विशेष वाले प्रभेद हैं। संसार के दूसरे बड़े धर्म ईसाई का भी यही हाल है। रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंटों के सम्प्रदायों ने धार्मिक असहिष्णुता का रक्तरजित इतिहास सजा है। इस्लाम के शिया-सुन्नी सम्प्रदायों से भारतवासी परिचित हैं । और हिन्दू धर्म तो असंख्य सम्प्रदायों और शाखाओं का ही एक विशाल बरगद है।
तब जैन धर्म के चार प्रमुख सम्प्रदाय-दिगम्बर, श्वेताम्बर (मू० पू०), स्थानकवासी और तेरापंथी-एकीकरण की किन आवश्यकताओं की ओर संकेत करते हैं।
____ मैं यहाँ पर उन ऐतिहासिक और शास्त्रीय कारणों का उल्लेख नहीं करूंगा जो इन विभिन्न सम्प्रदायों की स्थापना के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। और मेरे इस तटस्थ भाव के लिये सबल कारण हैं । बात साफ यह है कि कोई भी सम्प्रदाय अपने जन्म और विकास को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखने का आदी नहीं। उसके लिये अपना सम्प्रदाय ही एकमात्र अपने धर्म का सही और उचित मार्ग है। अन्य संप्रदाय या तो सच्ची धर्म-व्याख्या से अनजान हैं अथवा धर्म की विडम्बना । एक बार आपने भिन्न-भिन्न संप्रदायों की गहराई से तथा वैज्ञानिक व्याख्या करनी शुरू कर दी तो बहुत जल्द हम अलग-अलग संप्रदाय वालों को अपनी-अपनी आस्तीने च ढ़ो कर, आपस में गाली-गलौज करते पायेंगे। अनेकांत दर्शन के आधार-स्तम्भ जैन धर्म का ही जब यह हाल है-जब जैन सम्प्रदाय वाले भी, अपने सम्प्रदाय के अलावा
का
बया ज्य
पार्यप्रवआभापार्यप्रवर आ श्रीआनन्दश्रीआनन्दान्
mannyeon
A
-
RMATMammer
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org